जादू जिंदगी का
हम अपने जीवन के हर खास पाल को तस्वीरों में कैद कर लेते हैं कि उसे दुबारा याद कर सकें, लेकिन कैसा हो अगर हम उसे तस्वीरों की जगह अपने अनुभव में कैद कर सकें। जीवन के इल पहलू पर सद्गुरु का मार्गदर्शन आज के स्पॉट में-
जीवन को जानने के दो तरीके है- प्रज्ञा या समाधि। प्रज्ञा, जागरुकता का रास्ता है और समाधि त्याग और बेफिक्री का। अगर आप पूरी जागरुकता के साथ बारिश में चलेंगे, तो आप बारिश को एक तरह से जान पाएंगे। लेकिन अगर आप बारिश में पूरी बेफिक्री और उल्लास के साथ चलेंगे, तो उसको एक दूसरे ही रूप में जानेंगे। बेफिक्री की हालत में आप बारिश को पूरी तरह से जान तो लेंगे लेकिन उसके मकसद से आप चूक जाएंगे, क्योंकि तब आप मकसद की परवाह नहीं करते।
‘इस जिंदगी का मकसद क्या है’, यह सवाल सिर्फ उसी के लिए मायने रखता है, जो अपनी जिंदगी में बेफिक्री से, चारों ओर हो रही हर घटना का आनंद लेते हुए आगे बढ़ना नहीं जानता। वह जिंदगी का मतलब ढूंढने की कोशिश में लगा रहता है, क्योंकि उसने जिंदगी के जादू को नहीं जाना है। जागरुकता से आप जिंदगी का अर्थ समझ जाएंगे और बेफिक्री से आप उस जादू को जानेंगे जो है यह जिंदगी। क्या ये दोनों रास्ते आगे जा कर कहीं आपस में मिल जाते हैं? हां, अगर आप किसी भी एक रास्ते पर पूरी लगन से आगे बढ़ेंगे, तो महसूस करेंगे कि दोनों अलग नहीं, एक ही हैं। ये एक ही कमरे के दो दरवाजे हैं, पर दोनों दरवाजे बिलकुल अलग किस्म के हैं। फिलहाल आपके साथ ऐसा है कि अगर आप एक पर अपना ध्यान लगाते हैं, तो बाकी सब छूट जाता है और अगर बाकी सब पर ध्यान लगाते हैं, तो किसी भी चीज पर ध्यान नहीं टिकता। इसलिए किसी एक चीज पर ध्यान लगाना बेहतर है। कम-से-कम एक चीज तो होगी। वरना कुछ भी नहीं होने वाला – जिंदगी किसी सपने की तरह बस यूं ही खत्म हो जाएगी।
कल जो हुआ उस पर अगर आप बारीकी से गौर करें तो आप देखेंगे कि आपके अधिकतर अनुभवों पर हम आपको आसानी से भ्रम में डाल सकते हैं कि यह सब सचमुच में हुआ या बस एक सपना था। आपको भ्रम में डालने के लिए बस थोड़ी-सी बात करने की जरूरत होगी, क्योंकि आपने किसी चीज को अपने अंदर गहराई में अनुभव नहीं किया। बस आपकी पांच इंद्रियां घटनाओं की रेकार्डिंग कर रही हैं, लेकिन आपको कोई अनुभूति नहीं हो रही है।
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आप एक इंसान हैं या इतिहासकार? आप जिंदगी की घटनाओं को इतिहास में दर्ज करना चाहते हैं या उनको महसूस करना चाहते हैं? अगर आप जिंदगी को जानना चाहते हैं, कम-से-कम एक चीज में अपना सब-कुछ लगाते हैं, तो आप जिंदगी को कुछ हद तक जान पाएंगे। वरना आप जिंदगी को सिर्फ रेकार्ड करते रहेंगे। यही कारण है कि आज आप जहां कहीं भी जाते हैं, चाहे वह सत्संग ही क्यों न हो, आप देखेंगे कि कुछ लोग अपने कैमरे निकाल रहे हैं। वे हर चीज को रेकार्ड कर लेना चाह्ते हैं, क्योंकि कुछ साल बाद खुद के वहां मौजूद होने की याद दिलाने के लिए बस यह तस्वीर ही बची होगी, और कुछ नहीं। अगर आप किसी चीज को एक विस्फोट की तरह अनुभव करते हैं, तो क्या आपको कोई तस्वीर खींचने की जरूरत होगी?
मैं टर्की गया हुआ था। एक हॉट एयर बैलून में सवार था। साथ में एक और हॉट एयर बैलून था जिसमें जापानी पर्यटक भरे हुए थे; उनमें से हरेक के हाथ में कैमरा था। एक जापानी शख्स बैलून की तस्वीर लेने के लिए बास्केट से बाहर झुकता जा रहा था, पलक झपकते ही वह पचास फीट की ऊंचाई से नीचे गिर पड़ा। मैंने सोचा, ‘उसको इस अनुभव की तो तस्वीर लेने की जरूरत नहीं है।’ उसका कॉलर बोन और एक एड़ी टूट गई। मुझे यकीन है कि बिना तस्वीर के भी उसको यह अनुभव हमेशा याद रहेगा। मेरे ख्याल से बैलून के बाहर के नजारे को देखना हड्डी तोड़ने जैसा बड़ा अनुभव ही होता। लेकिन चूंकि कोई चीज आपके लिए अनुभव नहीं है, इसलिए आप हर चीज रेकार्ड कर लेना चाहते हैं।
आप यह काम अपने कैमरे से करें या अपनी आंखों से, ज्यादातर लोग बस यही कर रहे हैं – जिंदगी की रेकार्डिंग। वे जिंदगी को महसूस नहीं कर रहे हैं। अगर आप कम-से-कम किसी एक चीज में मन से लगे रहें, तो शायद कुछ महसूस कर लें, वरना सिर्फ रेकार्डिंग होती रहेगी। रेकार्डिंग की सारी जमा-पूंजी को ही हम कर्म कहते हैं। इसका मतलब यह कि आप अतीत के प्राणी बन जाएंगे। आपकी जिंदगी के हर पल में यही सारी रेकार्डिंग बार-बार बजती रहेंगी, आपको वही पुरानी कहानियां सुनाती रहेंगी जिनके अब वैसे भी कोई मायने नहीं हैं।
मैं चाहता हूं कि आप दस दिन पीछे मुड़ कर देखें और याद करें कि सुबह उठने से ले कर रात को सोने के वक्त तक क्या-क्या हुआ था। उस पर गौर कीजिए और देखिए। यह किसी और की कहानी जितनी ही मजेदार लगेगी; है कि नहीं? उनमें अनुभूति के कुछ पल हो सकते हैं, लेकिन बाकी सब महज एक रेकार्ड की गई कहानी है। योग का मतलब यही है कि जीवन, एक जबर्दस्त जीवंत अनुभव में बदल जाए, महज उसकी रेकार्डिंग न रह जाए।