हमें और भी भारत रत्नों की जरूरत है
अपने लंबे सफर से लौटने के बाद दिल्ली में सद्गुरु को मिली राजनीति की जहरीली सरगर्मी, लेकिन उस सरगर्मी में भी दिखी उन्हें उम्मीद की किरण जिसे वो साझा कर रहे हैं आज के स्पॉट में...
अपनी लगभग दो महिनों की लंबी यात्रा समाप्त कर अब मैं नई दिल्ली की धरती पर सकुशल पहुंच गया हूँ। पिछले 25 दिनों में करीब छह देशों में गया और बहुत से कार्यक्रमों में शामिल हुआ। दिल्ली में मुझे वाईपीओ अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में और साथ ही कुछ खास जनसमूहों को भी संबोधित करना है। लेकिन दिल्ली में रह कर आप देश में बढ़ रही राजनीतिक ताप की जहरीली आंच से नहीं बच सकते। राजनीतिक माहौल इतना दूषित हो रहा है, जितना पहले कभी नहीं था। बड़े दल कोई सार्थक बहस करने की बजाय बस अपने ही अधिकारों और खानदानी रूतबे की बात कर रहे हैं जैसे उन्हें इस देश पर राज करने का जन्मसिद्ध अधिकार मिला हो। उन्हें तो यह बहस करनी चाहिए कि चुने जाने पर वे विकास के कौन से अलग-अलग विकल्प तलाशेंगे। लोकतंत्र का मतलब है कि किसी भी पृष्ठभूमि का कोई भी आदमी इतने आगे तक जा सके कि वह देश का नेतृत्व कर सके, उसके लिए किसी खास परिवार में जन्म लेना या विशेषाधिकार प्राप्त होना जरूरी नहीं है। राजनीति में ये आम बात हो गई है कि लोग एक-दूसरे को झूठा, लुटेरा, चोर कहें।
लेकिन भारत के अपने रत्न भी हैं। मैं उस भावस्पर्शी और विलक्षण क्षण में मुंबई में ही था जब सचिन तेंदुलकर का शानदार क्रिकेट जीवन एक कहानी की किताब की तरह अपने अंतिम पन्ने पर था। कम से कम यह तो कहना ही पड़ेगा वो अद्वितीय हैं। बड़े काम करने वाला यह छोटे से कद का इंसान इस बात का आदर्श उदाहरण है कि एक संतुलित दिमाग और विनम्र रवैया किसी व्यक्ति को कहां तक ले जा सकता है। दुनिया में क्रिकेट के बहुत से प्रतिभाशाली खिलाड़ी हुए हैं, लेकिन किसी की तुलना सचिन से नहीं हो सकती, इस खेल के महान खिलाड़ी भी इस छोटे आदमी के सामने बौने लगते हैं। यह महान आदमी उस धरती के आगे शीष झुकाता है जिसे वह रौंदता रहा है, और आकाश की ओर सिर उठाकर अपना आभार प्रकट करता है।
उसे किसी से भी कोई पुरस्कार नहीं चाहिए क्योंकि इस खेल के सभी प्रेमियों और विशेषज्ञों ने उसकी उपलब्धियों के लिए एक स्वर में उसे महान माना है। लेकिन भारत रत्न सम्मान देने को लेकर राजनीतिक गलियारे में शोरगुल मचने लगा है। क्या हमारे राजनेता अपने इस छोटे से रत्न से विनम्रता, संतुलन, उद्देश्य की समझ और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण जैसे गुणों में से कुछ सिखेंगे? क्या हमारे नेता अकड़ और अज्ञानता की सीमाओं को पार करके कुछ जीत दिलाने वाले स्ट्रोक अपने देश के लिए नहीं खेल सकते हैं?
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