हिंदुस्तान
इस हफ्ते के सद्गुरु स्पॉट में सद्गुरु बता रहें है के उन्होंने एमोरी यूनिवर्सिटी के अध्यापकों व छात्रों को संबोधित किया। "मेरा यह भाषण वहाँ रह रहे एक भारतीय परिवार द्वारा आयोजित किया गया था। उस परिवार के ज्यादातर सदस्य प्रोफेसर थे, जो वहां पूर्वी एशिया या भारतीयता से जुड़े विषयों के विशेषज्ञ थे। ...
एक प्राचीन भूमि
जहां सीखा मानव ने श्रेष्ठ होना
उन सिद्धांतों पे अविचल चलते रहना
जो रचते जीवन प्रक्रिया को
और करते सृष्टि का सृजन।
एक ऐसी भूमि
जहां मानव ने नहीं की अपनी मनमानी
उसने तो हमेशा परमेश्वर की मानी
फला-फूला ज्ञान, उपजी विद्याएं
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प्रखर हुई बु़द्धि और पुलकित भावनाएं
दैहिक व दैविक को पवित्र माना
सृष्टि के गहन अंतर में जाकर
आदि-मूल का उसने राज जाना
गणित, स्वर, संगीत व माधुर्य
के समस्त रूपों में हुआ दक्ष
खोजा मुक्ति का द्वार, पाया मोक्ष
पहुंचा वहां
था जहां सुकून और बहार
जीवन न था कोई बोझ,
बल्कि एक वर व उपहार।
तब अवतरित हुई अगणित आत्माएं
प्रबुद्ध, शुद्ध व अदृप्त
नर और नारी तत्व खिलकर हुए तृप्त
और किए भौतिक सीमाओं को पार
पर बन गये एक उत्तम शिकार
उन निर्दयी ताकतों के
जो थे उस पार.......उस पार।
इस हफ्ते मुझे एमोरी यूनिवर्सिटी (अमेरिका के अटलांटा में स्थित एक यूनिवर्सिटी) के अध्यापकों व छात्रों को संबोधित करना था। यूनिवर्सिटी परिसर के एक चैपल (गिरजाघर में प्रार्थना करने की जगह) में आयोजित भाषण के कार्यक्रम में तकरीबन 1200 लोग थे, जिनमें यूनिवर्सिटी के लोगों के अलावा आम जनता को भी आमंत्रित किया गया था। मेरा यह भाषण वहाँ रह रहे एक भारतीय परिवार द्वारा आयोजित किया गया था। उस परिवार के ज्यादातर सदस्य प्रोफेसर थे, जो वहां पूर्वी एशिया या भारतीयता से जुड़े विषयों के विशेषज्ञ थे। मेरा मानना है कि भारत का अध्ययन नहीं हो सकता, इसे जानने के लिए व्यक्ति को इसे आत्मसात करना पड़ता है या सबसे अच्छा तरीका खुद को उसमें डुबो देना पड़ता है। इसे जानने का सिर्फ यही एक तरीका है। भारत के बारे में पश्चिमी विश्लेषण हकीकत से काफी परे हैं, और भारत का लक्षणात्मक विश्लेषण केवल गलत निष्कर्षों की ओर ले जाएगा क्योंकि भारत चैत्न्यता और उल्लासिता की अव्यवस्था में आमोद-प्रमोद करने वाला और फलने-फूलने वाला देश है।
यह इस धरती का सबसे पुरातन देश है, जो किन्हीं सिद्धांतों या विश्वासों अथवा यहाँ के लोगों की महत्वाकांक्षाओं पर नहीं बना है। यह देश जिज्ञासुओं का है। उनकी जिज्ञासा धन या कल्याण को लेकर नहीं, बल्कि मुक्ति को लेकर है और मुक्ति भी आर्थिक या राजनैतिक न होकर परम मुक्ति है।
यह एक ईश्वर विहीन, मगर धर्मनिष्ठ देश है। जब मैं ईश्वर विहीन कहता हूँ तो समझने की कोशिश कीजिए कि यह दुनिया की एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जो न सिर्फ अपने लोगों को अपनी पंसद से देवता या भगवान चुनने की आजादी देती है, बल्कि उन्हें अपना भगवान बनाने तक की छूट देती है, ताकि वे उससे खुद को जोड़ सकें। जब आदि-योगी शिव से ज्ञानोदय के तरीकों के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि अगर आप अपने शारीरिक तंत्र के अधिकार में हैं तो 112 तरीकों से ज्ञानोदय पाया जा सकता है, लेकिन आप अगर भौतिकता से परे चले जाते हैं तो फिर इस सृष्टि का हर अणु आपके लिए ज्ञानोदय की संभावना बन जाता है। एक देश के तौर पर भारत हजारों सालों से इन विभिन्न आध्यात्मिक संभावनाओं का एक जटिल संगम रहा है। अगर आपको महाकुंभ में जाने का मौका मिला होगा तो वहां आपने इसके इस रूप को देखा होगा। भारत की खूबियों को बयां करती सबसे अच्छी टिप्पणी मार्क ट्वेन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान की थी। उन्होंने कहा था- ‘जहां तक मैं समझ पाता हूं कि इस धरती पर भारत को सर्वाधिक असाधारण बनाने में न तो इंसान और न ही कुदरत किसी ने भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है। यहां पर न तो कोई कुछ भूला है और न ही किसी चीज की अनेदखी की हैै।’
भारत अध्ययन की वस्तु नहीं, वरन् संभावनाओं का अद्भुत घटनाक्रम है, हालांकि यह पारंपरिक, धार्मिक व भाषा आधारित बहु संस्कृतियों का संगम भी है। ये सारी चीजें सिर्फ जिज्ञासा के एक मात्र सूत्र से बंधी हुई हैं। इस धरती के लोगों में मुक्ति की जबरदस्त कामना विकसित की गुई है और यह कामना जीवन और मृत्यु के फेरे से मुक्त होने की है।
हमें एक चीज नहीं भूलनी चाहिए कि व्यक्ति की अज्ञानता का अहसास ही उसकी जिज्ञासा का आधार होता है। व्यक्ति को अपने अस्तित्व की प्रकृति का अहसास ही नहीं है। यहां के लोग अपनी प्रकृति को जानने के लिए सांस्कृतिक रूप से स्थापित विश्वासों पर चलने की बजाय अपने पराक्रम और प्रतिबद्धता से अपने अस्तित्व की असलियत जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। यही भारत की सबसे मूलभूत विशेषता है। भा का मतलब है- संवेदना जो सभी अनुभवों व अभिव्यक्तियों का आधार है, र का मतलब है- राग, जो जीवन का सुर व संरचना है और त का मतलब है- ताल यानी जीवन की लय, जिसमें मानव तंत्र और प्रकृति दोनों की ही लय शामिल है।
इस देश का निर्माण महत्वकांक्षियों के मन की उपज नहीं, बल्कि साधुओं की देन है, यह फायदे के लिए नहीं, बल्कि गहराई के लिए है। भारत को मात्र एक राजनैतिक व्यवस्था की हैसियत से देखने की बजाय उसे मानव की आंतरिक आकांक्षा की पूर्ति के प्रवेशद्वार के रूप में देखना चाहिए। भारत के मूलभूत सदाचार को बचाकर, संरक्षित और पोषित करना चाहिए, क्योंकि ज्ञान और निरंतर खोज की यह विरासत मानवता के लिए एक सौगात है। एक पीढ़ी के तौर पर यह हमारा महत्वपूर्ण दायित्व है, जो हमें पूरा करना चाहिए। इस धरती के हमारे ज्ञानियों व संतों द्वारा खोजी और परिभाषित की गई असीम संभावनाओ को धार्मिक कट्टरता और निरर्थक एकांगी मतों में खोने न दें।