है यह चयन तुम्हारा
इस बार के स्पॉट में सदगुरु हमें बता रहे हैं कि किस तरह हमारे विचार, भावनाएं वंश सी आने वाले गुण और साथ ही सांस्कृतिक प्रभाव हमारे साथ हमेशा हैं लेकिन इन सभी चीज़ों के होते हुए भी हम खुद को किस तरह बनाते हैं यह हमारा अपना ही चुनाव है..
इस बार के स्पॉट में सदगुरु हमें बता रहे हैं कि किस तरह हमारे विचार, भावनाएं, वंश सी आने वाले गुण और साथ ही सांस्कृतिक प्रभाव हमारे साथ हमेशा हैं लेकिन इन सभी चीज़ों के होते हुए भी हम खुद को किस तरह बनाते हैं यह हमारा अपना ही चुनाव है...
हमारे विचार और हमारी भावनाएं
जनमते हैं
हमारी इंद्रियों द्वारा
समेटी गई अनुभूतियों व तस्वीरों से
पीढ़ियों से चली आ रही परम्पराओं से
सांस्कृतिक जटिलताओं से।
इन्द्रियां परोसती हैं
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असंबंधित सी प्रतीत होने वाली
आधी - अधूरी तस्वीरें
और आवाजें उन पूर्वजन्मों की
जो भूली हुई हैं।
जिनका नहीं है शब्दों में वर्णन
ना तब और ना अब
भूले बिसरे वक्त की
कई जिंदगियां
ले सकती हैं करवटें
अथवा कर सकती हैं नृत्य।
वंशावली नहीं चलती
केवल अनुवांशिक बीज से
बल्कि चलती है
सांस्कृतिक जटिलताओं से।
विचार हैं घुलेमिले,
भावनाएं हैं गुंथी हुईं
और जिंदगियां हैं जुड़ी हुई।
ये सब मिलकर क्या बनाएंगे तुम्हें
एक बड़ी अव्यवस्था
या एक अनोखा आकर्षण
है यह चयन तुम्हारा।