गुरु पूर्णिमा 2019 - आप भी लाभ उठाएं
गुरु पूर्णिमा वो दिन है, जब आदि योगी ने आदि गुरु में रूपांतरित होकर विश्व को आध्यात्मिक प्रक्रिया भेंट की। इस दिन पहली बार मनुष्यों को यह याद दिलाया गया कि अगर वे मेहनत करने के लिए तैयार हैं, तो अस्तित्व का हर दरवाज़ा खुला है।
गुरु पूर्णिमा 2019 (16 जुलाई)
गुरु पूर्णिमा की रात - आदिगुरू की रात है
गुरु पूर्णिमा की यह रात हमारे प्रथम गुरु, आदिगुरु की रात के रूप में जानी जाती है। मानव इतिहास में पहली बार आज के ही दिन मानव जाति को याद दिलाया गया था कि उनका जीवन पहले से तय नहीं हैं। अगर मेहनत करना चाहे तो अस्तित्व का हर दरवाजा इंसान के लिए खुला है। ज़रूरी नहीं कि इंसान साधारण-से कुदरती नियमों के दायरे में बंद रहे। सीमाओं का बंधन इंसान की सबसे बड़ी तकलीफ है। हिंदुस्तान और कुछ हद तक अमेरिका में हम जेलों में बंदियों के लिए प्रोग्राम करते रहे हैं और हर बार जेल के अंदर घुसते ही मुझे वहां की हवा में दर्द का अहसास हुआ है। ऐसा अहसास जिसका मैं कभी बयान नहीं कर सकता। मैं बहुत भावुक किस्म का इंसान नहीं हूं लेकिन ऐसा एक बार भी नहीं हुआ कि वहाँ जाकर मेरी आंखों में आंसू न उमड़े हों क्योंकि वहां की हवा में बेइंतहा दर्द है। यह सीमाओं में बंद रहने का दर्द है।
सीमाओं में कैद इंसान को किसी भी अन्य प्राणी से ज़्यादा तकलीफ होती है। इस बात को जान कर और इंसान के इस बुनियादी गुण को समझ कर ही आदियोगी ने मुक्ति की बात कही थी। हमारी संस्कृति ने मुक्ति को सबसे ऊंचा और एकमात्र लक्ष्य माना है। ज़िंदगी में आपके हर काम का मकसद सिर्फ परम मुक्ति होता है। चाहे कोई भी कारण आपको सीमाओं में बंद रखे– जेल के सुरक्षाकर्मी, शादी, स्कूल के शिक्षक या बस कुदरती नियम- सीमाओं में बंद रहना इंसान को ज़रा भी नहीं सुहाता, क्योंकि उसकी सहज चाहत मुक्ति की ही होती है। कुछ हज़ार साल पहले आज ही के दिन आदियोगी ने पहली बार सभी बंधनों से परे जाने के रास्ते दिखाये।
क्या थी आदियोगी की शिक्षा?
हम जो भी सीमा रेखा खींचते हैं शुरू में उसका लक्ष्य होता है सुरक्षा, लेकिन आगे चल कर अपनी सुरक्षा और आत्मरक्षा की ये सीमाएं हमारे ही कैद की दीवार बन जाती हैं। इन सीमाओं का कोई एक रूप-रंग नहीं है; इन सीमाओं ने बहुत-से जटिल रूप ले लिये हैं। ये महज मनोवैज्ञानिक सीमाएं नहीं हैं बल्कि आपकी हिफाज़त और खुशहाली के लिए बनी कुदरती सीमाएं हैं। इंसान की प्रकृति ऐसी है कि उसको बंधन की सीमाओं के परे गए बिना उसे सच्ची खुशहाली का अहसास नहीं होता। इंसान की दशा अजीब है – मुसीबत में होने पर वह अपने चारों ओर किले की सुरक्षा चाहता है, लेकिन खतरा टलते ही चाहता है कि ये किले गिर जायें, ग़ायब हो जायें। अपनी हिफाज़त के लिए अपने ही द्वारा खड़े किये गये किले जब हमारे चाहने पर गिर कर गायब नहीं होते तब हम इनके अंदर बंदी जैसा महसूस करने लगते हैं और हमारा दम घुटने लगता है।
बंधन के इन किलों को अपने लक्ष्य के पाने में इस्तेमाल करना और ज़रूरत न होने पर इनको गिरा देने की काबिलियत रखना – यही शिव की शिक्षा थी। कैसे बनायें ऐसा जादुई किला जिसको कोई दुश्मन भेद न सके पर आप जब चाहें इस पार से उस पार आ-जा सकें? शिव ने बहुत-से आश्चर्यजनक तरीके बताये। बदकिस्मती से मुट्ठी-भर इंसान भी ऐसे नहीं हैं जो अपनी बंधनों की प्रकृति को समझने और उससे बाहर निकलने के तरीकों की खोज करने के लिए ज़रूरी एकाग्रता, धैर्य और दिलचस्पी रखते हों। लोग सोचते हैं कि नशीली दवाएं ले कर, सिगरेट पी कर, अच्छा खा कर या फिर अच्छी नींद ले कर इस बंदिश से छूट जायेंगे। सृष्टि के तरीके इतने सरल नहीं है। यह हिफाज़त का कितना अनोखा डिज़ाइन है! पर जो इंसान नहीं देख पाता कि यह अंदर और बाहर दोनों तरफ से बंधन है वह इसका मकसद नहीं जान पाता, क्योंकि वह कभी बाहर जा ही नहीं पाया है।
सप्त ऋषि भी सराहनीय हैं
गुरु पूर्णिमा का दिन इस बात का उत्सव मनाने के लिए है कि आज के ही दिन पहली बार मानव जाति के लिए ऐसी नयी सोच, ऐसा असाधारण काम शुरू हुआ। मैं आदियोगी के आगे उनकी महानता के लिए सिर झुकाता हूं पर आदियोगी की सराहना से ज़्यादा मेरी सराहना उन सात ऋषियों के लिए है जिन्होंने खुद को इतना ऊंचा उठाया कि आदियोगी उनको नज़र-अंदाज़ न कर सके। मुझे नहीं लगता कि किसी दूसरे गुरु को ऐसे सात लोग मिल पाये जिनके साथ वे हर मनचाही चीज़ साझा कर पाते और जो इतने काबिल होते कि उनकी बतायी हर चीज़ को ग्रहण कर पाते। अनेक योगियों और गुरुओं को बहुत अच्छे शिष्य मिले जिनके उपर उन्होंने अपनी कृपा बरसा कर उनको तृप्त किया। लेकिन किसी भी गुरु को वैसे सात शिष्य नहीं मिल पाये जिनके साथ वे अपना ज्ञान साझा कर पाते। ऐसा अब तक नहीं हुआ है…….हम अब भी कोशिश कर रहे हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन शुरू हुआ था ज्ञान का प्रसार
इस साल, 21 जून का ग्रीष्म अयनांत (उत्तरायण से दक्षिणायन में प्रवेश का दिन) पूर्णिमा को था। 19 जुलाई को आने वाली पूर्णिमा का दिन, वही दिन था, जब आदियोगी ने लगभग 15,000 वर्ष पूर्व, पहले योग कार्यक्रम का आरंभ किया था। आदियोगी यानी ‘पहला योगी’। उन्होंने कभी अपना परिचय देने की ज़रूरत नहीं समझी, न ही लोग उनका नाम जानते थे इसलिए वे उन्हें आदियोगी के नाम से पुकारने लगे।
उन्होंने अपने पहले सात शिष्यों को उपेक्षित करने की पूरी कोशिश की। आज भारत, उन सातों शिष्यों को सप्तर्षियों के नाम से जानता है। ये वे सात ऋषि हैं, जिन्हें सारे आध्यात्मिक ज्ञान का आधार माना जाता है - उन्होंने ही इसका संप्रेषण किया। उन्होंने गुरु का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बहुत प्रयास किए - गुरु ने अपनी ओर से उनकी पूरी उपेक्षा की। वे अपने योग से मिले परमानंद का उपभोग करना चाहते थे। वे उन्हें शिक्षा नहीं देना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि कोई उनके आनंद में बाधा दे, पर ये ऋषि अनेक वर्षों तक अपने हठ पर अडे़ रहे। परंपराओं से मिले ज्ञान के अनुसार, वे लगभग 84 वर्ष वहीं रहे। हम नहीं जानते, पर निश्चित रूप से वे लंबे समय तक उनके इंतज़ार में रहे।
गुरु पूर्णिमा से पहले के कुछ दिन
21 जून को ग्रीष्म अयनांत के दिन, आदियोगी ने अपने भीतर कुछ निश्चित व्यवस्थाएँ कीं। ग्रीष्म अयनांत (उत्तरायण से दक्षिणायन में प्रवेश का दिन) और विषुव (दिन और रात के बराबर होने का दिन) के दौरान, पृथ्वी और सूर्य के बीच के संबंध में कुछ बदलाव आते हैं। जब वे उन परिवर्तनों पर काम कर रहे थे, तो उन्होंने उन सात लोगों को वहाँ बैठे देखा। वे बहुत ग्रहणशील हो चुके थे; वे इस प्रतीक्षा में थे कि गुरु अपना ज्ञान उन तक प्रसारित कर दें। जब आदियोगी ने उनकी ओर देखा, तो वे अपनी दृष्टि को हटा नहीं सके। वे सातों शिष्य ऐसे चमकीले पात्रों के रूप में ढल गए थे, कि अब वे उन्हें और नहीं टाल सके। उन्होंने उनकी ओर ध्यान दिया और अगले 28 दिनों तक उनका निरीक्षण किया।
हम अभी, उसी 28 दिन के दौर से गुज़र रहे हैं - मैं आपको देख रहा हूँ। अगली गुरु पूर्णिमा को, जिसे कि गुरु पूर्णिमा यानी पहले गुरु के अवतरण के दिन के रूप में मनाया जाता है, वह इस वर्ष 19 जुलाई को होगी - वे अपने-आपको रोक नहीं सके और अपनी सारी ज्ञान संपदा शिष्यों को सौंपने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने शरीर के आयामों, ऊर्जा तंत्र, उन 112 चक्रों, जिनके साथ आप काम कर सकते हैं, पाँचों प्राणों, जिनके साथ आप अपने तंत्र में रूपांतरण ला सकते हैं और मन के सोलह आयामों का अन्वेषण किया। ये बातें समझाने में काफ़ी समय लगा। जब उन्हें पता चला कि सातों ऋषियों में से, किसी के पास भी 112 पद्धतियों को ग्रहण करने योग्य बुद्धि नहीं थी, तो उन्होंने सोलह-सोलह पद्धतियों के सात हिस्से बना दिए। उन्होंने हर ऋषि को सोलह पद्धतियाँ दीं ताकि वे ज्ञान के उस हिस्से को अपने भीतर समा सकें।
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इस साल गुरु पूर्णिमा की विशेषता
ज्ञान का संचरण अगली पूर्णिमा से आरंभ हुआ था, पर अब वह समय है, जब उन्होंने अपने सातों शिष्यों पर पूरा ध्यान दिया। यह वर्ष बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि एक बार फिर ग्रीष्म अयनांत और पूर्णिमा, एक ही दिन आ रहे हैं। यह एक दुर्लभ संयोग है। योग गाथाओं के अनुसार उन्होंने शिष्यों को 28 दिनों तक ध्यान से देखा। इसका अर्थ हुआ कि उस काल में उत्तरायण से दक्षिणायन का परिवर्तन पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस साल भी ऐसा ही हुआ है। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि इस वर्ष, हम सब एक साथ हैं। आपके शिक्षा तंत्र व आपकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमियाँ आपको भीतर की ओर मुड़ने के लिए कोई शिक्षा नहीं देतीं। वे सब आपको बाहरी तौर पर कुछ करना सिखा रही हैं - यह सब कुछ संसार कोे ठीक रखने के लिए है। हमने इस संसार को इतना ठीक कर दिया है कि अगर अब थोड़ा सा भी और प्रयास हुआ, तो यह संसार ही नहीं रहेगा। हमने इस संसार में जो कुछ भी प्रयत्न किए, वह मनुष्य के कल्याण के लिए थे। संसार तो ठीक हुआ पर हमें खुशहाली नहीं मिली। क्योंकि जब तक आप अपने भीतर नहीं झाँकेंगे, तब तक यह संभव नहीं हो सकता।
गुरु पूर्णिमा अवसर है - भीतर मुड़ने का
भीतर की ओर मुड़ने से मेरा मतलब है - देखिये इस समय आप जिस भी चीज़ का बोध हो रहा है - वो पांच इन्द्रियों के माध्यम से ही हो रहा है। इस समय, आपके जीवन का सारा अनुभव देखने, सुनने, सूँघने, चखने और छूने से जुड़ा है। जीवन की प्रकृति ही ऐसी है, कि इंद्रियाँ केवल बाहरी बोध ही रखती हैं। आप अपने आसपास देख सकते हैं - आप अपनी आँखों की पुतलियाँ घुमा कर, भीतर की ओर नहीं देख सकते। अगर कोई चींटी आपके हाथ पर चले तो आप उसे महसूस कर सकते हैं। पर अपने भीतर भरे रक्त के प्रवाह को महसूस नहीं कर सकते। पाँचों इंद्रियाँ तभी खुलती हैं, जब आप माँ के गर्भ से बाहर आते हैं, क्योंकि यह आपके जीवित रहने के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर आप इससे अधिक कुछ चाहते हैं, जो कि इंसानी स्वभाव है, तो आपको अपने भीतर की ओर मुड़ना होगा। यह आपसे कितना दूर है? क्या आपको इसे पाने के लिए हिमालय की गुफाओं की ओर जाना चाहिए? मैं आपको बताना चाहूँगा कि हिमालय की सभी गुफाएँ भर गई हैं, अब वहाँ कोई जगह नहीं बची। अच्छा ये होगा कि आप इसे बर्लिन में ही करना सीख लें।
गुरु पूर्णिमा संदेश - बर्लिन वासियों के लिए
मैंने सुना कि आपको सीमेंट की दीवार तोड़ने का बहुत गर्व है, और मैं बहुत खुश हूँ कि आप ऐसा कर सके पर अब बाहरी और भीतरी के बीच की दीवारें तोड़ने का समय आ गया है। लंबे अरसे तक, जब आप बर्लिन शब्द का प्रयोग करते थे तो लोगों के मन में दीवार की ही छवि आती थी। अब बर्लिन शब्द का प्रयोग होते ही उन लोगों की छवि बनती है जिन्होंने दीवार तोड़ दी। यह अच्छी बात है, पर बाहरी और भीतरी के बीच की दीवारों का क्या करें? भीतर की ओर मुड़ने के लिए आपको थोड़ा प्रयत्न करना होगा। समाजों में, उसी थोड़ी सी कोशिश की कमी है। अगर आप सिर्फ़ इतना जान लें कि आपका अनुभव कहाँ पैदा होता है और आप उसकी ज़िम्मेवारी अपने पर ले लें, तो आप निश्चित तौर से, वैसा अनुभव रच सकते हैं, जैसा आप अपने लिए चाहते हैं।
आप कहते हैं कि आप अपने लिए अप्रसन्नता नहीं बल्कि खुशहाली का सबसे ऊँचा स्तर चाहते हैं। यह सभी इंसानों के लिए सच है। हमने संसार में कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। अगर हम खुशहाल और समझदार इंसान बना सकें, तो यह संसार कितना अच्छा हो जाएगा। अपने भीतर मुड़ना बहुत कठिन नहीं है। यह मुश्किल नहीं - बात केवल इतनी है कि आपका प्रशिक्षण दूसरी दिशा में जाने के लिए किया गया है। आपको सदा यही प्रशिक्षण दिया गया है कि बाहरी चीज़ों या परिस्थिति को कैसे ठीक किया जाए। आप ब्रह्माण्ड में हर चीज़ को ठीक कर सकते हैं, पर जब तक आप स्वयं को नहीं ठीक करते, आप इस जीवन की सुंदरता को नहीं जान सकेंगे।
एक मात्र उपाय - खुशहाली को पाने का
मैं अपनी बात दोहरा रहा हूँ, ”इन इज़ द ओनली वे आउट“ यानी ‘भीतर की ओर मुड़ना ही एकमात्र उपाय है। गुरु पूर्णिमा से पहले के समय के दौरान, स्वयं को एक चमकीले पात्र के रूप में बदलें। अपने-आप को इस तरह तैयार करें, ताकि आपके मन, शरीर और भाव आपके लिए बाधा न बनें। मैं आपके भीतर समाया हूँ। चलिए इसे कर दिखाएँ।
पर्वत पर बैठे उस वैरागी
से दूर रहते थे तपस्वी भी
पर उन सातों ने किया सब कुछ सहन
और उनसे नहीं फेर सके शिव अपने नयन
उन सातों की प्रचंड तीव्रता
ने तोड़ दिया उनका हठ व धृष्टता
दिव्यलोक के वे सप्त-ऋषि
नहीं ढूंढ रहे थे स्वर्ग की आड़
तलाश रहे थे वे हर मानव के लिए एक राह
जो पहुंचा सके स्वर्ग और नर्क के पार
अपनी प्रजाति के लिए
न छोड़ी मेहनत में कोई कमी
शिव रोक न सके कृपा अपनी
शिव मुड़े दक्षिण की ओर
देखने लगे मानवता की ओर
न सिर्फ वे हुए दर्शन विभोर
उनकी कृपा की बारिश में
भीगा उनका पोर-पोर
अनादि देव के कृपा प्रवाह में
वो सातों उमडऩे लगे ज्ञान में
बनाया एक सेतु
विश्व को सख्त कैद से
मुक्त करने हेतु
बरस रहा है आज भी यह पावन ज्ञान
हम नहीं रुकेंगे तब तक
जब तक हर कीड़े तक
न पहुंच जाए यह विज्ञान