सद्गुरु अकसर कहते हैं, ‘बी विद मी’ यानि ’मेरे साथ रहिये’। तो क्या इसका मतलब है कि शारीरिक तौर पर उनके साथ रहा जाए। आज के स्पॉट में वे यही समझा रहे हैं कि बस ‘होने’ या उनके साथ ‘होने’ का मतलब क्या है।
ArticleApr 18, 2018
इंसान धरती की एकमात्र प्रजाति है, जिसे अंग्रेज़ी में ‘बीइंग’ यानी अस्तित्व कहा जाता है। आपने कभी ‘टाइगर बीइंग’, ‘एलिफ़ेंट बीइंग’, ‘कॉकरोच बीइंग’ नहीं सुना होगा, सिर्फ ‘ह्यूमन-बीइंग’ही कहा जाता है।
काम करते समय, आप ये कर सकते हैं या वो कर सकते हैं। ‘होने’ में कोई ‘ये’, ‘वो’ नहीं होता।
किसी प्रजाति के लिए अस्तित्व (यानी बीइंग) होने से बड़ा कोई सम्मान नहीं है। इसका मतलब है कि अगर वह कुछ न करे तब भी महत्वपूर्ण है। इंसान जो करता है, वो उसकी वजह से महत्वपूर्ण नहीं हैं, वह अपने अस्तित्व के गुण के कारण महत्वपूर्ण हैं। मगर दुर्भाग्य से कितने इंसान वाकई एक अस्तित्व के रूप में जीते हैं, यह एक बड़ा सवाल है। ईशा में हम जो कुछ भी करते हैं, मुख्य रूप से उसका मकसद आपके अंदर ‘होने’ की इस भावना को लाना है। अगर मैं कहता हूं, आपको सिर्फ ‘होना’ है, तो आप नहीं समझ पाते कि उसका क्या मतलब होता है। या अगर मैं कहता हूं, ‘कुछ मत कीजिए’ – तो यही एक चीज है जो आप नहीं कर सकते। आपको शरीर, मन, भावना या ऊर्जा के स्तर पर कुछ न कुछ करना होता है। इसलिए मैं आपसे कहता हूं, ‘मेरे साथ रहिए।’ काम करते समय, आप ये कर सकते हैं या वो कर सकते हैं। ‘होने’ में कोई ‘ये’, ‘वो’ नहीं होता। मेरे साथ होने की कोशिश में भी कुछ करना शामिल है। उस अर्थ में ‘मेरे साथ होने’ की बात भी बस एक चाल है। दरअसल आपको बस ‘होने’ की जरुरत है। लेकिन जो ‘सिर्फ होना’ लोकप्रिय संस्कृति में प्रचारित(फैलाया) किया जा रहा है, वह दिमागी सर्कस के अलावा कुछ नहीं है – लोग सिर्फ सोचते हैं कि वे जीव या अस्तित्व हैं।
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सद्गुरु के साथ ‘होने’ का मतलब
आप किसी भी चीज के साथ ‘हो’ सकते हैं, लेकिन हो सकता है कुछ चीज़ें या इंसान आपकी खुशहाली में सहायक न हों। अगर आप किसी के साथ होने की कोशिश करेंगे, किसी कुत्ते-बिल्ली या किसी के भी साथ – तो उन्हें नहीं पता कि वे आपके अस्तित्व के लिए मददगार कैसे हो सकते हैं, क्योंकि वे खुद नहीं जानते कि कैसे ‘होना’ चाहिए। अगर आप सिर्फ ‘होने’ की कोशिश करते हैं, तो लोग आपसे कुछ ‘करने’ की उम्मीद करेंगे, ‘तुम मुझे इस तरह घूर क्यों रहे हो? कुछ बोलो भी!’ लेकिन मेरे साथ ‘होने’ में, अगर आप पूरी तरह ध्यान देंगे तो मैं आपके ‘काम’ को नष्ट कर दूंगा। आप ऐसे पलों का अनुभव करेंगे जहां आप किसी स्तर पर कुछ नहीं कर रहे होंगे। भौतिक घटनाओं के मामले में इसे ‘इंडक्शन’ कहते हैं। आपकी स्थिति वही है। आप एक संपूर्ण मानव-अस्तित्व की तरह पैदा हुए हैं। जरूरत की हर चीज आपके अन्दर है, मगर फिर भी आप नहीं जानते कि ‘बस होना’ कैसे है। उसके लिए ‘इंडक्शन’ की जरूरत होती है, इंडक्शन के लिए ऊर्जा की और ऊर्जा की कीमत जीवन चुकाता है।
‘होने’ और ‘करने’ का अंतर
अगर आप कुछ करने की किसी भावना के बिना सिर्फ ‘हो’ सकते हैं, तो “किसी के साथ होना” ऐसी कोई चीज नहीं होती। ‘मैं किसी के साथ हूं’ बस एक मुहावरा है। शारीरिक रूप से आप किसी के साथ हो सकते हैं।
सुबह-शाम छह बजकर बीस मिनट का समय सबसे अच्छा है। अगर जरूरी हो, तो चित्र का इस्तेमाल कीजिए या बस अपनी आंखें बंद कर लें और मेरे साथ ‘रहें’।
लेकिन जब आप वास्तव में ‘होते’ हैं, तो सिर्फ एक ही होता है। इस अस्तित्व में सब कुछ ‘मैं, मैं और सिर्फ मैं’ हैं। ‘होने’ की ख़ूबसूरती यही है। जब आप कुछ करते हैं, तो आपको किसी चीज या किसी इंसान के साथ कुछ करते हैं। अगर एक्शन होना है - चाहे शरीर में हो या मन, भावना या ऊर्जा में हो – उसके लिए दो या अधिक हस्तियां जरूरी होती हैं। सिर्फ ‘होने’ में बस एक हस्ती होती है। सिर्फ ‘होकर’, आप हर चीज के साथ एक हो सकते हैं। अस्तित्व का अर्थ मुख्य रूप से योग है। योग का अर्थ है मेल। जैसे-जैसे ‘योग’ शब्द लोकप्रिय हुआ है, लोगों ने इसका इस्तेमाल किसी चीज को बताने के लिए करना शुरू कर दिया है। योग का संबंध किसी चीज से नहीं है। जब कोई चीज नहीं होती, कोई ‘यह’ या ‘वह’ नहीं होता, जब सब कुछ एक हो जाता है, उसे योग कहते हैं। चरम अर्थ में योग का मतलब है, हर चीज के साथ एक हो जाना। हमें लोगों के दिमाग से यह ख्याल निकालना है कि योग का मतलब कोई मुश्किल सा आसन है। जब हम कुछ कर रहे होते हैं, तो हमारा दायरा सीमित होता है, चाहे हमारा कार्य कितना ही विशाल क्यों न हो। जब हम सिर्फ ‘होते’ हैं, तो कोई सीमा नहीं होती, हम असीम होते हैं। अगर आप सिर्फ ‘होने’ की कोशिश कर रहे हैं तो यह जरूरी है कि आप किसी ऐसी चीज के साथ ‘हों’, जो आपके लिए ऊर्जा के स्तर पर मददगार हो। जो आपको बांटे नहीं। जो आपकी पहचान को और मजबूत न करे, जो चीज आपकी पहचान को ख़त्म कर दे। पहचान का मतलब है, ‘इंडिविजुअलिटी’ यानी ‘वैयक्तिकता’। ‘वैयक्तिकता’ का मतलब है सीमाएं। ‘यह मेरी पर्सनालिटी है’ का मतलब है कि ‘यह मेरी सीमा है।’ लोग अनजाने में गर्व से यह बात कहते हैं। कुछ ने आपसे यह भी कहा होगा कि ‘अज्ञानता वरदान है’। लेकिन यदि ऐसा होता, तो अब तक पूरी दुनिया की आबादी पूरी तरह धन्य हो चुकी होती। अज्ञानता वरदान है, तब तक, जब तक कि कठोर सत्य से आपका सामना नहीं होता। अगर आप किसी ऊंची इमारत से कूद जाएं, तो तब तक वह बहुत बढ़िया लगेगा, जब तक कि आप जमीन से नहीं टकराते। अज्ञानता में कुछ पल ऐसे होते हैं, जो वाकई शानदार होते हैं, जब आप वास्तविकता को देख नहीं पाते। ‘होने’ का मतलब है कि आप पूरी तरह वास्तविकता(असलियत) में हैं। कुछ करने, सोचने का मतलब है कि आप कोई ख्याली पुलाव पका रहे हैं। सिर्फ ‘होने’ में आप कोई कल्पना नहीं करते।
सद्गुरु के साथ ‘होने’ का समय
सिर्फ ‘होना’ इतना आसान नहीं है। इसलिए किसी ऐसी चीज के साथ ‘हों’, जो आपके ‘होने’ में मददगार हो। कोई ऐसी चीज जो हमेशा ऊर्जा के स्तर पर आपकी सीमाओं को ख़त्म करने की कोशिश करती है। उसी अर्थ में मैं आपसे कहता हूं, ‘मेरे साथ रहिए।’ आप जहां भी हों, एक खास समय के लिए मेरे साथ ‘होने’ की कोशिश कीजिए। सुबह-शाम छह बजकर बीस मिनट का समय सबसे अच्छा है। अगर जरूरी हो, तो चित्र का इस्तेमाल कीजिए या बस अपनी आंखें बंद कर लें और मेरे साथ ‘रहें’। इस मकसद के लिए मैंने पहले ही बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा लगा रखी है, इसलिए आप इसे मददगार, आनंददायक, यहाँ तक कि मदहोश करने वाला पाएंगे। मुझे आजमा कर देखिए।