कंपैशन का अर्थ करुणा है, कम पैशन नहीं
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु बताते हैं करुणा के बारे में और कैसे पनपती है यह हमारे अंदर...
आमतौर पर कंपैशन यानी करुणा को लोग सहानुभूति या दया के रूप में समझते हैं। दया तो वह भाव है जो केवल उस हालत में पैदा होती है, जब हम किसी को असहाय देखते हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों को, जो अपने पांवों पर खड़े हैं, उन्हें दया या तरस की जरूरत नहीं होती। वे चाहते हैं कि उन्हें स्वीकार किया जाए, उन्हें सम्मान मिले, लोगों का प्यार मिले, न कि किसी तरह की दया। करुणा तो एक जज्बा है, एक जूनून है, सबको समा लेने का, अपना बना लेने का। केवल जूनून या जज्बा की बात करें जिसे अंग्रेजी में पैशन कहा जाता है, तो यह बुनियादी तौर पर आपको विशिष्ट बनाने की प्रक्रिया है। आपने देखा होगा कि जब दो लोग आपस में बहुत जज्बाती होते हैं, तो उनको दुनिया से कोई मतलब नहीं रह जाता। उनके लिए बाकी दुनिया गायब हो जाती है। जज्बातों की यही तो खूबसूरती है कि यह विशिष्ट या खास बनाती है और आपके जज्बातों की गर्मी से दुनिया भाप बन कर उड़ जाती है।
करुणा सबको शामिल करने का, सबको समाहित करने का जज्बा है। यह किसी दूसरे भाव या जज्बात से कई गुना ज्यादा व्यापक है। करुणा कोई रूखी-सूखी दया नहीं है, जिसमें आप खुद को दूसरों से ऊपर समझते हैं और उनके ऊपर दया करते हैं। इसमें आपको पूरी सक्रियता से शामिल होना पड़ता है, यह एक जूनून है। आप जो कुछ भी देखते हैं, उसके प्रति आपके मन में एक भावना जगती है। जिस हवा में आप सांस लेते हैं, जिस जमीन पर आप चलते हैं, जो भोजन आप करते हैं और जिन लोगों से आप मिलते हैं या नहीं भी मिलते, उन सबके प्रति आपके मन में एक जज्बात पैदा होने लगता है। यही करुणा है जहां हर चीज के लिए एक जज्बात है। तो करुणा यानी कंपैशन का मतलब कम पैशन नहीं होता, बल्कि यह तो पैशन (जूनून) का व्यापक रूप है। सवाल: सद्गुरु, सबको समाहित करने वाले इस जज्बे तक आखिर पहुंचा कैसे जाए? क्या इसके लिए कोई हनुमान-कूद लगानी होगी? क्या कुछ ऐसा है कि किसी इंसान के चित्तवृत्ति में कुछ घटित होने से वह इंसान सबके लिए खुल जाता है?
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सद्गुरुः यह जज्बातों का ज्वार या उबाल तो हर्गिज नहीं है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है कि आज आप सिर्फ एक इंसान के प्रति लगाव महसूस कर रहे हैं, कल किन्हीं दो लोगों के प्रति और उसके अगले दिन दस या बीस लोगों के प्रति। ऐसा नहीं है। जब आप किसी खास मनोदशा में होते हैं, आपके विचार और आपकी भावनाएं आपके अस्तित्वगत अनुभवों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। उस हालत में आपमें सिर्फ भावना या जुनून ही हो सकता है। दुर्भाग्य से ज्यादातर लोग जूनून यानी पैशन को उसकी संपूर्णता में ठीक से समझ ही नहीं पाते हैं। जूनून एक बेहद शानदार चीज है। अगर आपकी समझ या धारणा आपके मनोवैज्ञानिक सीमा से आगे निकल जाती है और आपका जीवन बहुत ज्यादा अस्तित्वगत हो जाता है तो आप इसे अपने अनुभवों में साफ तौर पर महसूस कर सकते हैं कि यहां जो कुछ भी है वह महज जीवन का एक अंश है और आप महज पानी के एक बुलबुले की तरह हैं। तो जब आप ये बात समझते हैं कि आप एक बुलबुला हैं और फिर आप सोचते हैं कि आप एक खास व्यक्तित्व वाला बुलबुला हैं, जब आपकी विशिष्टता की धारणा मिट जाती है- आपके अनुभव में, आपकी समझ में, तो फिर स्वाभाविक रूप से आप करुणामय हो जाते हैं। तब आप किसी और तरीके से रह ही नहीं सकते। क्योंकि तब आप हर चीज को ‘स्वयं’ के रूप में महसूस करने लगते हैं। यह कोई मूल्य या गुण नहीं है, जिसे आप अपने अंदर विकसित करते हैं।
हम लोग जो सांस छोड़ रहे हैं, वह पेड़ ले रहे हैं और पेड़ जो सांस छोड़ रहे हें, वो हम ले रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आपके सांस लेने का जो साधन है, उसका एक हिस्सा बाहर पेड़ों पर लटक रहा है। अगर यह बात आपके अनुभव का हिस्सा बन जाए तो फिर मुझे आपको बताना नहीं पड़ेगा कि चलते वक्त रास्ते में किसी पेड़ की पत्ती न तोड़ें। आप खुद कभी ऐसा नहीं करेंगे। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई आपके पास से निकलते वक्त अचानक आपका एक बाल तोड़ता हुआ चला जाए। यह आपके विचार, इरादे या नैतिकता की बात नहीं होगी कि ‘मैं पेड़ की पत्तियों को नहीं तोड़ूंगा या पेड़ को तकलीफ नहीं दूंगा, बल्कि ऐसा आपके जीने का तरीका हो जाएगा। यह मानव का स्वभाव है। अपनी पहचान अपने विचार, भावना या शरीर के साथ बना लेने की वजह से ही आप चेतना की सहज अवस्था को खो रहे हैं।
प्रेम व प्रसाद,