क्या नशा और ड्रग्स लेकर आत्म-ज्ञान पा सकते हैं?
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कुछ लोग नशे के सेवन के लिए यह तर्क देते हैं कि शिव भी तो नशा करते हैं। तो क्या नशे से शिव मिल सकते हैं? आज के स्पाॅट में सद्गुरु इसी बात को स्पष्ट कर रहे हैंः
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क्या आप अपना नशा खुद बनाना चाहते हैं?
अगर किसी तरह के अनुभव के लिए हम किसी भी तरह के रसायन अपने शरीर के भीतर लेते हैं तो वह रसायन हमारे भीतर किसी चीज को छेड़ता है, किसी चीज को बस उत्तेजित कर देता है, जिसकी वजह से हम किसी खास तरह का अनुभव महसूस कर पाते हैं।
जो लोग शिव का अनुसरण करना चाहते हैं, क्या वे बाकी सब कुछ भी कर सकते हैं जो शिव ने किया? सबसे पहले तो आप बिना हिले तीन महीने तक एक जगह बैठकर दिखाइए, उसके बाद आप चाहें तो नशा या धूम्रपान कर सकते हैं। आदिशंकराचार्य ने जब पूरे भारत का भ्रमण किया था तो उनका जबरदस्त अनुसरण हुआ था। बत्तीस साल की उम्र में दुनिया छोड़ने से पहले उन्होंने दक्षिण में केरल से लेकर उत्तर में बदरीनाथ और पूरब से लेकर पश्चिम तक भारत का भ्रमण किया। इसके बीच में उन्होंने हजारों पृष्ठ का साहित्य भी रच डाला। भ्रमण के दौरान वह काफी तेज चल रहे थे। उनके पीछे-पीछे अनुयायियों का समूह भी दौड़ लगा रहा था।
तभी उन्हें किसी गांव के बाहर एक शराब की दुकान दिखाई दी। कुछ लोग वहां खड़े थे और शीरब पी रहे थे। शंकराचार्य ने उन्हें देखा, वे सब नशे में धुत्त थे। उन लोगों ने शंकराचार्य को देखा। आप तो जानते ही हैं कि पियक्कड़ों को लगता है कि सबसे अच्छा समय उनका ही गुजर रहा है, जबकि दूसरे लोग इससे वंचित हैं। उन्होंने शंकराचार्य पर कुछ टिप्पणी की। शंकराचार्य बिना कुछ बोले दुकान के भीतर आए और उन्होंने अरक से भरा एक पात्र उठाया और मुंह से लगाकर गटागट खाली कर दिया। उसके बाद वे आगे चल दिए।
इंसान बेहतर चीज़ें कर सकता है
इसमें कोई शक नहीं कि शिव हमेशा नशे में धुत्त रहते थे, लेकिन इसके लिए उन्हें गांजा या चिलम जैसी छुद्र चीजों की जरूरत नहीं। गांजा पीने से सिर्फ इतना होता है कि आपको धूम्रपान का अहसास होता है और आपके सिर में एक अस्पष्टता, एक उलझन या एक धूंधलापन छा जाता है। अगर उलझनों में घिरना ही आध्यात्मिकता है तो मैं आध्यात्मिक होना ही नहीं चाहूंगा। मेरे लिए सबसे बड़ी चीज स्पष्टता में रहना है। स्पष्टता भी मादक हो सकती है। जब आप कोई ऐसा काम करते हैं, जिसमें आपको अतिरिक्त रूप से सजग रहना पड़ता है तो उसमें भी एक तरह की मादकता होती है। इसीलिए लोग हवाई जहाज से छलांग लगाने जैसे अनोखे जोखिम भरे काम कर पाते हैं।
आज अमेरिका के कई राज्यों में मारिजुआना या भांग- धतूरे का सेवन कानूनी हो गया है और बड़े निकाय इसके कारोबार में उतर रहे हैं। अगर किसी दिन वे कोका कोला की तरह ‘कोका स्मोक’ जैसी कोई चीज बाजार में ले कर आएं तो आप हैरान मत होइएगा। कार्बन डाई आॅक्साइड युक्त पेय से आगे बढ़कर मारिजुआना युक्त पेय बेचने को आप तरक्की कह सकते हैं। लेकिन इससे आपका दिमाग सिकुड़ जाएगा। दरअसल, आप जानते नहीं कि जो दिमाग आपका बनाया हुआ नहीं है, उसे कैसे संभाला जाए। आपका दिमाग आज जिस अवस्था तक पहुंचा है, वहां तक विकसित होकर पहुंचने में कई पीढ़ियां लगी हैं। आप इसके विकास को धूम्रपान से कम करना चाहते हैं, ताकि यह शांति महसूस कर सके। यह तो समाधान नहीं हुआ।
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अगर आपको भांग या गांजे की धुन में मस्त होने के अलावा, अपने दिमाग का कोई बेहतर इस्तेमाल नहीं सूझ रहा तो आप बस एक जगह सहज रूप से बैठ जाइए और कम से कम किसी को परेशान मत कीजिए।
कुछ साल पहले, एक इस्रायली वैज्ञानिक और उसकी टीम ने इंसानी शरीर में एक ‘आनंद कण’ की खोज की। उन्होंने पाया कि मानव मस्तिष्क में कुदरती तौर पर केनाबिस रिसेप्टर मौजूद होते हैं। जब उन्होंने इसके कारणों की खोज की तो उन्होंने पाया कि कई बार मानव शरीर खुद ही अपना नशा पैदा करता है। उसे आनंद के लिए किसी बाहरी प्रेरणा की जरूरत नहीं होती। शराब, ड्रग्स और दूसरे उत्तेजक पदार्थों की लत लग जाती है, सेहत संबंधी समस्याएं होती हैं और वे आपकी जागरूकता को कम कर देते हैं। मगर आप अपने ही शरीर को इस तरह से जाग्रत कर सकते हैं कि आप हर समय आनंद में डूबे रहें और उसका कोई हैंगओवर नहीं होता। बल्कि यह आपकी सेहत और खुशहाली के लिए काफी फायदेमंद होता है। उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को ‘आनंदामाइड’ नाम दिया, जो संस्कृत के ‘आनंद’ शब्द से बना है।
नशाखोरी
नशा न करने वाला सादा और उदास है -
किन्तु नशा ले जाता है दूर तुम्हें सच्चाई से।
जीवन को न समझने वाले हैं ऐसा कहते -
कैसे रहें सूखे निर्जीव तर्क के खाली कमरे में।
कर लेंगे काम दिन में विवेक-बुद्धि से किन्तु
चाहिये नशा दिन के ख़त्म होने पर
कर लेंगे इस्तेमाल विवेक-बुद्धि का सप्ताह भर किन्तु
चाहिये नशा - सप्ताह ख़त्म होने पर
विवेक–बुद्धि काम-धाम में और नशा छुट्टियों में।
आओ! है मेरे पास एक ऐसी चीज़
जो देगी पहुंचा तुम्हें
परमानन्द की ऊंचाई पर
और साथ ही चेतना के शिखर पर -
एक साथ।
गोपनीयता की नहीं आवश्यकता कोई
क्योंकि
नहीं कोई ढूंढ सकता हमें हमारे भीतर।
आओ लें हम मज़ा इस पदार्थ का
जिसका कोई आयाम ही नहीं
किन्तु है यह हमारे भीतर
आओ हम हो जाएं परम जाग्रत
और परम आनंद से परिपूर्ण भी।