हो जा भार–मुक्त

सदगुरु आज के स्पॉट में एक सुंदर कविता के द्वारा बता रहे हैं कि हमारे जीवन में दो द्वार हैं। तो सवाल है कि कौन सा द्वार हमें कहां ले जाएग?
हो जा भार–मुक्त
द्वार हैं उपल्ब्ध
अवसरों के - संभावनाओं के
और द्वार हैं - गहन अनुभूतियों के।
खोलते हो द्वार अगर तुम
अवसरों के – तो पाओगे
नए तरीके - जीवन जीने के।
खोलते हो द्वार अगर तुम
अनुभूतिओं के – तो महसूस कर पाओगे
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सृष्टि की प्रचुरता को, संपन्नता को।
अवसर के द्वार से
मिल सकता है तुम्हें
धन, सुविधा व सम्मान,
अनुभूतियों के द्वार से
मिलेगी सृष्टि तुम्हें बेपर्दा
अपनी मूल प्रकृति में
और मिलेगा स्वयं स्रष्टा।
अवसरों के द्वार
करवाते हैं तुमसे
कठिन परिश्रम – तुच्छ प्राप्ति के लिए
दीखता है जो काफी बड़ा
निरीह मानव की पीड़ाओं की वजह से।
कर पाते हो जब तक तुम
इतना संचित - जो लगता हो पर्याप्त
आ जाता है समय –
नश्वरता की सामान-रहित यात्रा का।
अनुभूति के द्वार नहीं देंगे कुछ भी,
छोड़ जाएंगे तुम्हें -
तुम्हारे अस्तित्व को संपन्न कर के।
कुछ भी नहीं होगा उसमें - संग्रह योग्य
जिससे रहोगे तुम
भार-मुक्त और सदैव तैयार –
जीवन और मृत्यु की यात्रा के लिए।