बस जीवन है और जीना है
इस हफ्ते के स्पॉट में, सद्गुरु ने एक कविता लिखी है, जिसका शीर्षक है "बस जीवन है और जीना है"। सद्गुरु लिखते हैं - "फूल को देखकर खयाल आया वो कुछ दे रहा है मगर यह क्या, वह तो सिर्फ जी रहा है, देने के खयाल तो उनके मन में उपजे, भागे..."
फूल को देखकर खयाल आया वो कुछ दे रहा है
मगर यह क्या, वह तो सिर्फ जी रहा है
देने के खयाल तो उनके मन में उपजे, भागे
जो घुटने टेक देते हैं दिमागी खुराफात के आगे
जीने से भी अहम हो गये हमारे खयाल और विचार
जीना कोई खयाल नहीं है, यह तो है शाश्वत सार
क्षुद्र मन की उपज हैं सभी लेन-देन के व्यवहार
समय की कसौटी और शाश्वत के फैलाव में एक सा
बस एक इकबाल है जीवन, जो बना रहेगा हमेशा
ये सभी बस कोशिशें हैं जीवन को जारी रखने की
जीवन और सिर्फ जीवन बन जाने में ही है
बाहरी और भीतरी, सकल जीवन की कामयाबी
क्या ब्रह्म को खंडित और नकार दिया जाए?
जीवन को त्याग वैचारिक नौटंकी को अपना लिया जाए?
बात जीने और देने की नहीं है, बस जीना है और सिर्फ जीना है
जीवन कमाने और बटोरने की कोई प्रक्रिया नहीं है
एक धड़कन व स्पंदन बनकर सिर्फ जीवन को जिया जाय
जिससे जीव और ब्रह्म में कोई फ़रक न रह जाय।
Subscribe