क्या हम असहिष्णु देश हैं?
अपने व्यस्त दिनचर्या की चर्चा के साथ आज के स्पॉट में सद्गुरु बता रहे हैं कि कैसे मीडिया कई छोटी बातों को बड़ी और बड़ी बातों को मामूली घटना बना कर रख देती हैः
पिछले कुछ सप्ताहों में मीडिया की भारी चहल-पहल रही। ये सब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियों और संयुक्त राष्ट्र में 20 व 21 जून को होने वाले आयोजनों की भूमिका की तरह था। अब मानो मुख्य समारोह से पर्दा उठ चुका है। अलग-अलग राज्यों, भाषाओं और विधाओं की मीडिया का सामना करना भी अपने-आप में काफी दिलचस्प रहा। उनमें कुछ हुनरमंद थे तो कुछ अनाड़ी भी थे, कुछ नेकदिल थे तो कुछ तंगदिल भी थे, कुछ ओछे इरादे वाले थे तो कुछ अच्छे इरादे वाले भी थे।
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यह कितनी अविश्वसनीय बात है कि हमारे पास छोटी बातों को बड़ा और सही मायनों में बड़ी बातों को छोटा और मामूली बनाने का हुनर है। मैं मीडिया के बीच, पिछले वर्ष हज़ारों की संख्या में आत्महत्या करने वाले बच्चों के मुद्दे को उठाने की कोशिश करता रहा, पर अधिकतर मीडिया वालों की दिलचस्पी तो एक साल पहले उत्तर प्रदेश में हुई किसी एक व्यक्ति की हत्या में थी। कुछ तो मुझे यह विचार बेचने की कोशिश भी कर रहे थे कि भारत एक असहिष्णु देश है। जो लोग विश्व को यह दिखाना चाहते हैं कि हम एक असहिष्णु देश हैं, उन्हें दुनिया के दूसरे देशों में भी जाकर देखना चाहिए। जरुरी नहीं कि सोमालिया या विपरीत हालात से घिरे देशों में ही जाएं, बल्कि उदार और प्रगतिशील देशों का भी दौरा करके देख सकते हैं, ताकि उन्हें सही रंग का एहसास हो सके।
पिछले दिनों जब मैं दिल्ली की भारी यातायात के बीच यात्रा कर रहा था, तो औरंगजे़ब रोड के निकट पवित्र दिखने वाले सिक्खों का छोटा सा जत्था दिखाई दिया। वे एक सिक्ख संत और सेना नायक बाबा बंदा सिंह बहादुर के शहीदी दिवस को याद कर रहे थे, जिन्होंने मुगल साम्राज्य से युद्ध लड़े थे। उन्हें और कई अन्य सिक्ख योद्धाओं को बंदी बना लिया गया था। जब उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया था, तो मुगल सम्राट फार्रूख़ सियर के आदेश से, मुगलों ने उनकी आंखें नोच लीं, जीते-जी सारी खाल उतार ली, उनके हाथ-पांव काट दिए और फिर उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। अन्य सैंकड़ों सिक्खों को भी कड़ी यातनाएं देने के बाद, जान से मार दिया गया। यह सब कुछ शायद इसी जगह पर घटित हुआ था।
मैं उस समय एक भले सिक्ख और उसकी पत्नी (जो बहुत भली नहीं थी) के साथ था। क्या वे इतिहास की इन बेरहम घटनाओं के बारे में जानते थे? जी हां! क्या वे इस बात क्रोधित थे? नहीं! पर कहीं गहरे वे बुरी तरह से आहत थे।
जब मैं सात बरस का था, तो एक दिन मेरे पिता जी, अपने चार बच्चों को, जिनमें मैं सबसे छोटा था, एक गुट-निरपेक्ष राष्ट्र के गुण समझा रहे थे। वे मेरे सवाल को सुन कर भौंचक्के रह गए, जब मैंने उनसे पूछा कि क्या इसका मतलब होगा कि हमारा कोई मित्र नहीं होगा। जैसा कि एक बार शशि (थरूर) ने खेद प्रकट किया था, भारत की विदेश नीति, लगातार हर दूसरे देश पर एक ‘नैतिक टिप्पणी’ ही रही है। पहली बार, प्रधानमंत्री के प्रयासों के फलस्वरूप, भारत एक ऐसी साझेदारी की ओर बढ़ रहा है, जो देश को एक मजबूत पायदान तक पहुंचा सकती है और गरीबी के दुर्भाग्यपूर्ण स्तरों से मुक्त करवा सकती है। समय आ गया है, अब हम गरीबी को कोई गुण मान कर उसकी स्तुति करना बंद करें। सादगी बिल्कुल ठीक है, लेकिन गरीबी नहीं।
मैं इस समय, युगांडा के एंटीबी (जो हाईजैक के लिए कुख्यात है) के लिए उड़ान पर सवार होने जा रहा हूं। यह तीन देशों और नौ दिनों की अंतहीन व्यस्त दिनचर्या होगी, जिसका समापन कंपाला में इनर इंजीनियरिंग रिट्रीट के साथ होगा।
अपनी ओर से अथक प्रयासों में जुटा हूं। मेरी हालत उस मोमबत्ती सी है जो दोनों सिरों से जल रही हो। आशा करता हूं कि मैं आप सबके लिए उपयोगी हूँ।