क्या है मन के आइने के पीछे?
मन को दर्पण कहा जाता है। लेकिन इस दर्पण के दूसरी तरफ क्या है? आज के स्पाॅट में सद्गुरु यही बता रहे हैं, साथ ही यह भी कि आखिर कैसे जाएं आइने के दूसरी तरफ।
एक अनुभव के रूप में समय हम सभी के लिए प्रासंगिक है क्योंकि हम सभी मरणशील हैं। शरीर, मन और भावनाओं के संदर्भ में आप खुद को जो भी समझते हैं, वह सब बस आपकी याद्दाश्त की उपज है। स्मृति के हर स्तर को चाहे वह विकासपरक हो, आनुवंशिक हो, चेतन हो, अवचेतन हो या अचेतन हो, समय के पैमाने से नापा जा सकता है। एक तरह से देखें तो सौरमंडल की भी अपनी स्मृति होती है, जो हर शरीर में प्रतिबिंबित होती है चाहे वह चेतन हो या अचेतन। इस तंत्र ने हर चीज को उसकी संपूर्णता में गढ़ा है।
चेतन होने का अर्थ है समय से परे जाना
अगर आप अपनी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में पूरी तरह से डूबे हुए हैं, तो आप बस समय का प्रतिफल हैं। समय का प्रतिफल होने का मतलब है, बार-बार दुहराया जाने वाला होना, जिसमें आपकी वास्तविक प्रकृति कभी अभिव्यक्त नहीं हो पाएगी। यही वजह है कि आदियोगी के समय से हम चेतना की बात कर रहे हैं।
आपका मन और शरीर इस दुनिया और इसके लोगों की देन है। आपकी वास्तविक प्रकृति, आपके अनुभव में है ही नहीं, क्योंकि यह मन के दूसरी तरफ है। एक तरह से आपका मन दर्पण की तरह है। हो सकता है कि यह एक विकृत दर्पण हो, लेकिन फिर भी है तो दर्पण ही। आप दुनिया को देखते हैं, क्योंकि यह आपके मन में प्रतिबिंबित होती है। लेकिन मन खुद को कभी प्रतिबिंबित नहीं करता। ‘खुद’ से मेरा मतलब आपके शरीर या विचारों से नहीं है। आप अपने विचारों और भावनाओं को देख सकते हैं, उनका अवलोकन कर सकते हैं, लेकिन आप खुद का अवलोकन नहीं कर सकते, आत्म दर्शन नहीं कर सकते। आपके अस्तित्व को नहीं देखा जा सकता, इसे केवल महसूस किया जा सकता है। मन आपके आसपास की दुनिया को तो प्रतिबिंबित कर रहा है, लेकिन खुद को एक जीवन के रूप में अनुभव नहीं कर पा रहा है। इस दुनिया में अभी आपके लिए सबसे अहम चीज यह है कि आप यहां हैं।
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जीवन का सार आईने की दूसरी तरफ है
अगर आपको खुद का कोई अनुभव नहीं है, अगर आपने जीवन को गहराई में जाकर स्पर्श नहीं किया है, तो अपने स्रोत का अनुभव करने का तो कोई सवाल ही नहीं है। आपने क्लाइडोस्कोप देखा है न? तो ज्यादातर लोग बस क्लाइडोस्कोप की तरह जीवन का अनुभव करते हैं, जो मन के आईने पर घटित हो रही हैं। वे लगातार अपनी स्मृति की खुदाई करने में व्यस्त रहते हैं। इस तरह वे कभी खुद को खुश करते हैं तो कभी दुखी करते हैं। आनंद हो या कश्ट, उसका स्रोत वही है, जो मन में घटित हो रहा है।
मन के आईने में जो कुछ भी हो रहा है, वह आपको जीवन भर या उससे भी ज्यादा समय तक उलझाए रखता है। वही विचार, वही भाव बार बार आते रहते हैं। आपको याद रखना है कि आपकी कोई एक्सपायरी डेट भी है। ऐसे में कोशिश करें कि अगला पल, अगला दिन, अगला साल बिना जीवन को जाने न गुजरे। आप जीवन को भोजन, पानी, प्रेम या मजे के जरिये नहीं जान सकते। उसे जानने का एकमात्र तरीका यही है कि आप आईने के दूसरी तरफ देखें। आईने के इस तरफ तो आपको केवल नाटक दिखाई देगा, जीवन का सार आपको नहीं मिलने वाला।
यह सब करने के कई तरीके हैं। एक आसान सा तरीका यह है कि आप ईशा क्रिया करें। जब आप कहते हैं कि मैं शरीर नहीं हूं, जब आप कहते हैं कि मैं मन नहीं हूं, तो असल में आप यह कह रहे होते हैं कि मैं स्मृति की उपज नहीं हूं। मैं तमाम चीजों का ढेर नहीं हूं। मैं निश्चित रूप से उससे कहीं ज्यादा हूं। आपकी जीवंतता मूल स्रोत से आती है, जो आपके मन के आईने के दूसरी तरफ है।
अनुभव आत्म तत्व पैदा करता है
मैं चाहता हूं कि आप लगातार कोशिशें करें। आप अभी जहां भी हैं, अपनी आंखें बंद करें और देखें कि क्या आप वाकई यहां हैं। विचार और भाव वहां है, शरीर वहां है, लेकिन क्या आप वहां हैं ? इसका अनुभव करने के लिए आप कुछ आसान से तरीके अपना सकते हैं। सदियों से ऐसी परंपरा रही है कि जो कोई भी आध्यात्मिक होना चाहता है, वह लंबे समय के लिए भोजन त्याग देता है।
इस सुखद अहसास को महसूस करें। यह कोई पेट भरने या प्यास बुझने का मामला नहीं है, यह अनुभव की सुखदता है, जो आपके भीतर से पैदा होती है। मन अनुभव का चुनाव तो करता है, लेकिन यह अनुभव का कारण नहीं बन सकता। आपके भीतर कुछ होता है, जिसे आप ‘आत्म’ कहते हैं, यही अनुभव पैदा करता है।
कैसे जाएं आईने के दूसरी तरफ?
इस संदर्भ में दो पहलू हैं - संवेदना ओर अनुभूति। इंद्रिय सुख असली चीज नहीं है क्योंकि इंद्रियां अनुभव पैदा नहीं करतीं।
ऐसी चीज को चुनें जो आपके भीतर सुखदता पैदा करती है, चाहे वह हवा हो, सांस हो, पानी हो, भोजन हो या ऐसी ही कोई और चीज। भले ही कुछ सेकंड के लिए सही, सुखदता के इस अनुभव के साथ ठहरें और इस दौरान इस सुखदता को बिना किसी विचार या भाव के महसूस करें। धीरे-धीरे आप आईने की दूसरी तरफ की ओर जाने लगेंगे। ज्ब वक्त गुजरता है तब आप अपनी स्मृति और वक्त की उपज होते हैं। संध्या या रूपांतरण के समय एक खास किस्म का अंतराल आता है, एक खास शून्यता पैदा होती है, जिससे परे जाना है। संध्या काल ऐसा ही मौका है। आपके अपने सिस्टम के लिए सबसे अहम रूपांतरण का जो समय होता है वो है - जब आप सोते हैं और जब आप जागते हैं। इस रूपांतरण में एक छोटा सा अंतराल होता है। हम इस अंतराल का इस्तेमाल करना चाहते हैं।
जब आप जागते हैं तो एक खास किस्म का सुख आपके पूरे शरीर में फैल जाता है। अगर आप उस पल और पूरे दिन उसी सुखद अहसास के साथ रहें, आपका मन सुख में डुबा रहेगा। अगर आपका मन आपके लिए सुखद चीजें करता है, तो आप भी अपने आस पास की दुनिया के लिए सुखद चीजें करते रहेंगे। ठीक इसी तरह से जब आप सोने वाले होते हैं, सुख आपके पूरे शरीर में फैलता है। अगर आप इस सुखद अहसास को गौर से महसूस करें तो आप देखेंगे कि आपकी नींद की क्वालिटी शानदार हो गई है, आपको सपने आने बंद हो गए हैं क्योंकि आप आईने की दूसरी तरफ हैं।
ज्यादातर लोग केवल इंद्रिय सुख को ही जानते हैं। वे उस सुख के बारे में जागरूक नहीं होते, जो उनके भीतर कहीं गहरे में है। आमतौर पर ध्यान आदि करने के लिए आंखें बंद करके बैठने को बोला जाता है। ऐसा इसीलिए है कि आईने को बिंब नहीं मिले, उसकी सतह पर पड़ने वाली बातें कम हो जाती हैं। अगर लंबे समय तक ऐसी कोई फालतू बातें नहीं मिलेंगी, तो मन किसी भी चीज को प्रतिबिंबित नहीं करेगा। फिर आईने की दूसरी तरफ जाना आसान होगा। आप अभी जो महसूस कर रहे हैं, वह केवल प्रतिबिंब ही है। वास्तविकता तो आइने के दूसरी तरफ है। जो दूसरा पक्ष है, वह वक्त और स्थान का उपज नहीं है। सब कुछ अभी और यहीं है। पूरा का पूरा जगत यहीं है, यह एक आसान सा तरीका है, लेकिन चूंकि आप अपने मनोवैज्ञानिक नाटक में ही व्यस्त हैं, आप जीवन को पूरी तरह से खो देते हैं। चूंकि जीवन को खो दिया जाता है, इसलिए वह लोगों को बार-बार के चक्रों से दंडित करता रहता है।
जीवन को शक्तिशाली तरीके से अनुभव करें
दुनिया में सबसे अहम यह है कि आप जीवन का एक शक्तिशाली अनुभव लें। अभी आप जीवन को छोड़कर सब कुछ अच्छी तरह से जानते हैं। हर आती जाती सांस के साथ, हर कदम के साथ, आप बैठते हैं तब, आप खाते हैं तब, आप पीते हैं तब, आपके पास एक तरह की सुखदता को महसूस करने का मौका होता है, जो आपके पूरे शरीर में फैली होती है। इस सुखदता को इंद्रियों के स्तर पर नहीं, बल्कि गहराई में जाकर महसूस करने की जरूरत है।
ज्यादातर लोग इस अनुभव के प्रति जागरूक नहीं होते क्योंकि उनका मनोवैज्ञानिक नाटक, उनके भाव, उनके विचार इस पर पूरी तरह से हावी हो जाते हैं। हम जो शक्तिशाली क्रियाएं आपको बताते हैं, उनका मकसद आपको मन के आईने की दूसरी तरफ ले जाना होता है जिससे आप जीवन का स्वाद ले सकें। ऐसा जीवन समय की देन नहीं है, वह स्मृति की भी देन नहीं है और न ही कुछ चीजों का संग्रह है। वह जीवन का आधार है। जीवन और जीवन के स्रोत में कोई फर्क नहीं है। जीवन ही जीवन का स्रोत है। इस जगत में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां इस जगत और जगतकर्ता का अस्तित्व अलग अलग हो। जीवन और ईश्वर के बीच का फर्क सिर्फ इंसानी मन में होता है।
जीवन किसी भी कष्ट को जानता ही नहीं
आप जिस भी कष्ट से गुजर रहे हैं, वह आपका खुद का बनाया हुआ है। गहराई में मौजूद जीवन परेशानी जैसी किसी चीज को जानता ही नहीं है। परेशानी इंद्रियों के स्तर पर हो सकती है। कई बार यह मन के स्तर पर होता है।