अब अकेले हवाई जहाज चला सकता हूं
इस हफ्ते के स्पॉट में सद्गुरु न्यूयॉर्क शहर के सेंट्रल पार्क को देखते हुए लिख रहे हैं। "अमेरिका प्रवास के दौरान ह्यूस्टन के बाद एटलांटा में भी गतिविधियों की बौछार लग गई...
अमेरिका प्रवास के दौरान ह्यूस्टन के बाद एटलांटा में भी गतिविधियों की बौछार लग गई, जिसमें भाव स्पंदन, सत्संग और फेडरल एविएशन अथॉरिटी द्वारा प्रदत्त प्रमाणपत्र मिलने के साथ-साथ क्रॉस कंट्री और चेक राइड जैसी चीजें भी शामिल थीं। अब अमेरिका में तो कम से कम मैं बिना प्रशिक्षक को साथ लिए अकेले हवाई जहाज चला सकता हूं। हालांकि भारत में ऐसा करने के लिए फिलहाल कुछ गतिरोध बाकी हैं। यहां चेतना में निवेश करने वालों का एक सम्मेलन भी आयोजित किया गया था, जो साधकों के लिए ईशा के कार्य के साथ-साथ व्यापार धंधों में निवेश करने का अच्छा अवसर था। यह एक अवसर था, जिसमें आपको योगदान करने के साथ-साथ आपको लाभ भी मिलता है। दुनिया आज उस स्थिति में पहुंच चुकी है, जहां चेतना को जगाना पार्ट टाईम काम नही रह गया है। मानव चेतना को जगाने के लिए लाखों लोगों को फुल टाईम कार्य करना होगा, क्योंकि आज मानव में उच्चतर चेतना ही गायब है। इस पीढ़ी के लोग खुशकिस्मत हैं कि उन्हें हर तरह का आराम और सुविधा हासिल है, लेकिन इसी के साथ मानवता आज एक दोराहे पर खड़ी है, जैसी पहले कभी नहीं थी। अनजाने में हमारी पीढ़ी ने इस धरती का इतना नुकसान किया है, जितना अब तक किसी भी पीढ़ी ने नहीं किया होगा। ऐसे में हो सकता है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इस धरती का एक बचा हुआ टुकड़ा ही विरासत में दे पाएं। कहने को तो हम इसे धरती मां कहते हैं, लकिन वास्तवीकता में हमने उसे एक वस्तु या किराने की दुकान समझ लिया है।
एक ऊंची मंजिल पर बैठ कर मैं ऊपर से न्यूयॉर्क शहर के सेंट्रल पार्क को देख रहा हूं, जीवन का एक आयाताकार टुकड़ा अपने चारों तरफ सींमेंट से घिरा हुआ नजर आता है। सुविधाओं को जुटाने की हमारी अपार क्षमता हमारे कल्याण में तब्दील नहीं हो पाई। सुविधाओं के इस स्तर ने मानवता को नई संभावनाओं को पाने में सक्षम नहीं बनाया, लेकिन हमारी एक पूरी पीढ़ी को सबसे कमजोर शरीर का बनाकर विकलांग जरूर कर दिया। यह शरीर सिर्फ हाड़ मांस ही नहीं है, एक दिमाग भी है, और अपने आप में तमाम नई संभावनाओं का निवास भी। यह शरीर ट्रेड मिल पर चलकर या वातानुकूलित जिम में व्यायाम कर अपनी खोई हुई नैसर्गिक ताकत को तो नहीं पा सकेगा। यह शरीर तत्वों का रस है, इस पृथ्वी का एक अंश भी है, इसलिए जब यह उन तत्वों और पृथ्वी के साथ जुड़ेगा और उनके संपर्क में आएगा, तभी यह जीवन के पूर्ण वैभव और परमानंद को पा सकेगा।
आज पहली बार हमारे पास सब चीजें व्यवस्थित हैं । हमारे पास संसाधन हैं, तकनीकी ज्ञान है और इस विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान करने की क्षमता है, बस अगर कुछ कमी है तो जागृत चेतना की। हम सभी को पता होना चाहिए कि सीमाओं का महत्व सिर्फ भौतिक तत्वों, वस्तुओं या शरीर के लिए ही होता है। दुर्भाग्य से ये सीमाएं मानव मस्तिष्क तक जा पहुंची हैं और एक अलौकिक अनुभूति की संभावना को समाप्त कर दिया है। जब मानव उस चेतना को पा लेगा, तभी उसकी ये सीमाएं टूटेंगी और तभी वह सही मायनों में उस असीम विस्तार को पा सकेगा। इस असीम विस्तार में ही उन तमाम समस्याओं और परेशानियों का हल छिपा है, जो मानव की पीड़ा का कारण बनती हैं। यदि हमें आनंदमय मानवता चाहिए तो हमें निवेश करना होगा।
आइए, इसे कर दिखाएं।
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