मां बच्चे पाले या नौकरी करे?
करीब-करीब हर घर में इस बात पर सोच-विचार किया जाता है, कि क्या घर की महिलाओं को घर पर ही रहकर घर संभालना चाहिए? या फिर वे पुरुषों की ही तरह घर से बाहर जा कर अपना कैरियर चुनने के लिए आज़ाद हैं? पढ़िए और जानिये सद्गुरु का इस परिस्थिति के बारे में क्या कहना है...

पिछले दिनों ‘इन कन्वरसेशन विद द मिस्टिक’ श्रृंखला में फिल्म अभिनेत्री जूही चावला ने ‘प्रेम और जीवन’ विषय पर सद्गुरु से बातचीत की। इस बातचीत के दौरान पुछा गया एक प्रश्न महिलाओं के सामने घर संभालने और अपना कैरियर बनाने को लेकर दुविधा पर आधारित है, सद्गुरु इसके उत्तर में बता रहे हैं कि घर संभालना कैरियर बनाने से कम महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं है...
जूही चावलाः
आज के आधुनिक समाज में कई महिलाएं घर से निकल कर अपना कैरियर बना रही हैं। आप महिलाओं द्वारा अपने कैरियर बनाने, घर को संभालने से लेकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के बारे में क्या सोचते हैं?
Subscribe
सद्गुरु:
एक इंसान के तौर पर हर महिला को वही करना चाहिए, जो वह करना चाहती है। इसे न तो समाज में ट्रेंड बना लेना चाहिए और न ही दुनिया में एकमात्र करने योग्य काम मान लेना चाहिए। मेरा मानना है कि अगर कोई महिला अपने दो बच्चों को जन्म देकर उन्हें पाल पोसकर बड़ा करती है, तो वही अपने आप में एक फुलटाइम काम है। मैं यह नहीं कह रहा कि उसे बाहर जाकर काम नहीं करना चाहिए। अगर एक इंसान के तौर पर वह ऐसा करना चाहती है तो वह इसके लिए आजाद है। लेकिन दो बच्चे पैदा करने का मतलब सिर्फ अपना वंश बढ़ाना नहीं है, बल्कि इसका मतलब है कि आप समाज की अगली पीढ़ी का निर्माण कर रही हैं। कल को आने वाली दुनिया कैसी होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आज समाज में माताएं कैसी हैं।
कई बार मैं महिलाओं से पूछता हूं कि आप क्या करती हैं तो अकसर उनका जवाब होता है कि मैं सिर्फ एक हाउसवाइफ या गृहिणी हूं। इस पर मैं उनसे कहता हूं, ‘आप यह क्यों कहती हैं कि आप सिर्फ एक गृहिणी हैं।’ दो या तीन नए जीवन को पालपोस कर बड़ा करने की काबिलियत का महत्व वो शायद ठीक से नहीं समझ पातीं। यह एक बेहद महत्वपूर्ण काम है। मेरी मां ने ‘मैं तुम्हें प्यार करती हूं’ या इस तरह के जुमले कभी मुझसे नहीं कहे। वह सहज भाव से अपना जीवन जीती रहीं और हमारे मन में कभी यह बात आई ही नहीं कि वह हमें प्यार करती हैं या नहीं। इन सवालों के कभी उठने की नौबत इसलिए नहीं आई क्योंकि उनका पूरा जीवन हम लोगों के लिए समर्पित था। हमें पता है कि वह सिर्फ हमारे लिए ही जीती रहीं। मैं अपने जीवन के उस दौर में अपने पास उनकी गैरमौजूदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता।
आज हमने पूरी दुनिया को ही अर्थशास्त्र में उलझा दिया है। पैसा एक साधन भर होता है जिससे आप अपनी मनचाही चीजें ले सकें। पुराने समय में पुरुष पैसा कमाते थे, जबकि महिलाएं जीवन के तमाम सुंदर पहुलओं के बारे में सोचा और बात किया करती थीं। आज महिलाएं भी पैसा कमाना चाहती हैं। अगर यह परिवार की आर्थिक जरूरत है तो उसे जरूर पैसा कमाना चाहिए, लेकिन इसे एक अच्छा विकल्प मान कर नहीं चलना चाहिए। अगर वह गाती है, संगीत बजाती है, अच्छा खाना पकाती है, अपने बच्चों से प्यार करती है, वह खुद एक फूल की तरह बेहतरीन तरीके से जीवन जीती है तो यह भी अपने आप में काफी है।
ऐसा कतई नही सोचना चाहिए कि किसी महिला का योगदान मूल्यवान तभी है जब वह पैसा कमाती है। अगर पैसे की जरूरत है या कैरियर को लेकर उसमें जबरदस्त लगाव है तो वह पैसा कमा सकती है। लेकिन हमें समाज में बतौर ट्रेंड ऐसे मूल्यों की स्थापना नहीं करनी चाहिए। इस तरह से समाज का विकास नहीं होगा। जीवन की खूबसूरती या कलात्मकता की बजाय, महज अपने जीवन की बुनियादी जरूरतों को महत्व दे कर, हम जीवन में आगे बढ़ने की बजाय पीछे की ओर जा रहे हैं।