सीमित से अनंत का सफ़र
समय-समय पर आयोजित ‘इन कान्वर्सेशन विद द मिस्टिक’ में बॉलिवुड के जाने-माने फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने सीमित और अनंत के सम्बन्ध पर सद्गुरु से बातचीत की। पेश है उस बातचीत का एक अंश आपके लिएः

समय-समय पर आयोजित ‘इन कान्वर्सेशन विद द मिस्टिक’ में बॉलिवुड के जाने-माने फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने सीमित और अनंत के सम्बन्ध पर सद्गुरु से बातचीत की। पेश है उस बातचीत का एक अंश आपके लिएः
सीमित और अनंत के बीच सम्बन्ध
शेखर कपूरः
हेलो, मैं शेखर कपूर आप सभी का स्वागत करता हूं। मैं फिल्म निर्देशक हूं। आपके मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक फिल्म निर्देशक यहां क्या कर रहा है।
सीमित से अनंत तक ले जाने वाले साधन
सद्गुरु:
आप कह रहे थे कि फिल्म निर्माण सीमित और अनंत के बीच के संबंध को खोजने जैसा है। वैसे मेरा काम भी लोगों को सीमित से अनंत की तरफ ले जाना है। इस काम के लिए जरूरी तरीकों को ईजाद करके हम लोगों के लिए कुछ ऐसे साधन तैयार करते हैं, जो उन्हें सीमित से अनंत की ओर ले जाते हैं। पूरी की पूरी आध्यात्मिक प्रक्रिया ऐसी ही है। दूसरे शब्दों में इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि चाहे वह फिल्म निर्माण का काम हो, बागवानी हो या खाना बनाने का काम हो या फिर ऐसा ही कोई और काम, अगर आप गहराई में जाकर देखें तो आपको वही प्रक्रिया नजर आएगी। बस इतना है कि कुछ खास तरह के काम में यह ज्यादा प्रभावशाली तरीके से सामने आती है और कुछ कामों में उतनी प्रभावशाली नहीं होती। एक इंसान की यात्रा बस यही है। आज अभी आप जो भी हैं, आप उससे थोड़ा बेहतर होना चाहते हैं। अगर ऐसा हो जाए तो आपको लगता है कि थोड़ा और होता। देखा जाए तो इस ‘थोड़ा और’ की कोई सीमा ही नहीं है। इस ‘थोड़ा और’ के मायने ही हैं - अनंत की इच्छा करना। यानी किश्तों में धीरे-धीरे कदम बढ़ाना।
Subscribe
तो मेरा काम इस बात को समझने में लोगों की मदद करना है कि धीरे-धीरे किश्तों में चलना आपको अनंत की तरफ नहीं ले जा पाएगा। हालांकि आपकी दिशा ठीक है, लेकिन जिस साधन का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, वह बेहद सीमित है। वह आपको अनंत तक नहीं पहुंचा पाएगा। इसे हासिल करने के कई और तरीके हैं। इच्छा तो हर किसी में होती है, लेकिन आवश्यक साधन नहीं होते। बस मेरा काम हर इंसान को ऐसे साधन और विधियां उपलब्ध कराना है, जिनकी मदद से वह सीमित से अनंत तक का सफर सफलतापूर्वक पूरा कर सके।
जीवन के किसी एक अंश में हल नहीं मिल सकता
शेखर कपूरः
जब भी मैं कोई कहानी लिखता हूं, वह हमेशा दो चीजों के बीच के द्वंद्व पर आधारित होती है। ये दो चीजें अच्छाई और बुराई हो सकती हैं, पुरुष और स्त्री हो सकते हैं या भाग्य और कर्म हो सकते हैं। इसलिए कहानी बनाने में मैं किसी द्वंद्व का हल निकालने के लिए दूसरा द्वंद्व पैदा करता हूं।
सद्गुरु:
देखिए, जब आप कोई फिल्म बनाते हैं या उसके लिए कोई कहानी लिखते हैं, तो आप जीवन के एक अंश को उस तरह दिखा रहे हैं, जैसा कि आपने उसे देखा और महसूस किया है।
धरती में तो जबर्दस्त द्वंद्व है। एक कृमि को कोई बड़ा कीड़ा खा जाता है, इस कीड़े को पक्षी खा जाते हैं, पक्षी को कोई जानवर खा जाता है और इस जानवर को कोई और बड़ा जानवर खा जाता है। यह प्रक्रिया जारी है। एक तरह से देखने पर यह एक द्वंद्व जैसा लगता है, लेकिन अगर आप दूसरे तरीके से देखें तो आप इस प्रक्रिया को पूरी तरह व्यवस्थित पाएंगे। यानी एक तरह से हर कोई अपने आप को ही खा रहा है।
योग विज्ञान की कथाएं
योगिक विद्या में इससे संबंधित कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से एक इस तरह है। जब आप किसी मंदिर में प्रवेश करते हैं तो दरवाजे पर ही आपको एक राक्षस का चेहरा दिखाई देता है, जिसके दोनों हाथ मुंह से चिपके रहते हैं। इसे कीर्तिमुख कहा जाता है, जिसका मतलब होता है यशस्वी चेहरा। एक बार शिव किसी से नाराज हो गए और उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने एक राक्षस की रचना कर दी और कहा, जाओ और जरा इस शख्स को देखो। जैसे ही इस राक्षस की रचना की गई, वह शख्स शिव के पैरों में गिर पड़ा और दया की भीख मांगने लगा। इस पर शिव ने कहा, अच्छा चलो, इसे छोड़ दो। इस पर राक्षस बोला, आपने मेरी रचना इस शख्स को खाने के लिए की है और मैं भूखा भी हूं। बताइए, मैं अब क्या करूं?
शिव उस वक्त कुछ खास तरह के मूड में थे और उन्होंने यूं ही कह दिया कि तुम अपने आप को ही खा लो। और उस राक्षस ने अपने आप को खाना शुरू कर दिया। जब शिव की निगाह उस पर पड़ी तो वह खुद को लगभग पूरा खा चुका था। बस उसके हाथ और मुंह बचे थे। यह देखकर शिव ने कहा कि तुम्हारा चेहरा सबसे यशस्वी और शानदार है। इसलिए तुम्हें सभी देवताओं से ऊपर रहना चाहिए। यही वजह है कि जब भी आप किसी मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आपको भगवान की प्रतिमाओं के ऊपर एक राक्षसी चेहरा दिखाई देता है, जिसके हाथ मुंह पर चिपके होते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि जो कोई भी खुद को खाने की हिम्मत रखता है, वही सबसे खूबसूरत और यशस्वी है। जीवन ऐसा ही है। या तो आपको कोई और खा जाएगा या फिर अगर आपके अंदर थोड़ी अक्ल और जागरूकता है तो आप खुद को ही इस्तेमाल कर लेंगे। अगर आप खुद को इस्तेमाल कर लेते हैं तो आप एक यशस्वी चेहरा बन जाते हैं और अगर कोई और आपका इस्तेमाल करता है तो जाहिर है आप किसी और का भोजन बन जाते हैं।
मेरा काम इस बात को समझने में लोगों की मदद करना है कि धीरे-धीरे किश्तों में चलना आपको अनंत की तरफ नहीं ले जा पाएगा। हालांकि आपकी दिशा ठीक है, लेकिन जिस साधन का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, वह बेहद सीमित है।