कीर्तिमुख : एक दानव, जो देवताओं से भी ऊपर है
बहुत से भारतीय मंदिरों में मुख्य द्वार के ऊपर या गर्भगृह के द्वार पर धड़रहित एक डरावना सिर आपको घूरता या मुस्कुराता मिलेगा। क्या है इस मुख के पीछे की कहानी - बता रहे हैं सद्गुरु –
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इसके पीछे एक शानदार कहानी है। एक बार एक योगी थे जिनको साधना से कुछ शक्तियां मिल गई जिनसे वह बहुत सी चीजें कर सकते थे। वह किसी चीज को जला कर भस्म कर सकते थे, अगर चाहें तो पानी के ऊपर चल सकते थे, वह ऐसी चीजें कर सकते थे जो दूसरे लोग नहीं कर सकते थे।
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दानव बोला, ‘आपने मुझे बनाया ही इस योगी को खाने के लिए था। अब आप उसे खाने से मना कर रहे हैं। तो मैं क्या करूं? मुझे बनाया ही इस मकसद से गया था।’ लेकिन शिव फिर से अपनी उन्मत्त अवस्था में पहुंच गए थे, उसी मनोदशा में उन्होंने कह दिया, ‘अपने आप को खा जाओ।’ जब वह पीछे मुड़े, उस समय तक दानव ने खुद को खा लिया था, उसने अपने शरीर का सारा हिस्सा खा लिया था। केवल चेहरा बचा हुआ था और दो हाथ उसके मुंह में जा रहे थे, सिर्फ दो हाथ ही खाने के लिए बचे हुए थे। शिव ने यह देखा और कहा, ‘अरे रुको, तुम तो एक यशस्वी मुख हो।’ बाकी सब कुछ समाप्त हो चुका था, सिर्फ चेहरा बचा हुआ था, इसलिए उन्होंने कहा, ‘तुम इस धरती, इस पूरे अस्तित्व के सबसे यशस्वी मुख हो।’ क्योंकि शिव द्वारा उन्मत्त अवस्था में कहे जाने पर कि ‘अपने आप को खा लो’, उसने तत्काल आज्ञा पालन किया था। इसलिए शिव ने कहा, ‘तुम सभी देवताओं से ऊपर हो।’ यही वजह है कि आज अगर आप किसी भी भारतीय मंदिर में जाएं, तो आप देवताओं के ऊपर इस मुख को देखेंगे, जिसमें दो हाथ मुंह के अंदर जा रहे होते हैं। उसे कीर्तिमुख के रूप में जाना जाता है। कीर्तिमुख का मतलब है एक यशस्वी चेहरा। इसलिए वह एक बहुत ही यशस्वी मुख है जो अपने आप को खाने के लिए उत्सुक है।
माना जाता है कि वह समय और आकाश और सभी कुछ से ऊपर है। देवताओं से ऊपर होने का मतलब है कि वह इन सभी आयामों से ऊपर उठ चुका है क्योंकि देवता भी कुछ हकीकतों के अधीन होते हैं। वह इन सब के ऊपर है।
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