प्रतीक: सद्‌गुरु, ध्यानलिंग को स्थापित करने के लिए आपने वेलिंगिरि पर्वत को चुना। क्या इसके पीछे कोई वजह थी?

सद्‌गुरु: अपने बचपन से ही मैं जो कुछ भी देखता था उसकी पृष्ठभूमि(बैकग्राउंड) में मुझे हमेशा पहाड़ दिखाई देते थे। सोलह साल की उम्र तक मैं सोचता था कि हर किसी की दृष्टि में पहाड़ ही मौजूद हैं। मेरा भ्रम तब टूटा जब मैंने अपने दोस्तों से इस बारे में जिक्र किया और उन्होंने कहा, ‘तुम्हारा दिमाग खराब है। पहाड़ कहां हैं?’ लेकिन मेरे लिए, मेरी आंखों में वे हमेशा मौजूद थे। तो सोलह साल के बाद, मैं जानता था कि मुझे उस जगह की तलाश करनी चाहिए। लेकिन फिर मैंने वह विचार छोड़ दिया, क्योंकि मेरी दृष्टि में वे हमेशा थे। अगर कोई चीज हमेशा मौजूद हो, तो आप उसके आदी हो जाते हैं।

जब ध्यानलिंग का काम शुरू करने का वक्त आया, मैं इन पहाड़ों की तलाश करने लगा। मैं एक पागल की तरह सब जगह घूमा। मैंने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और इन पहाड़ों की तलाश में, गोवा से कन्याकुमारी तक भटका और फिर वापस लौटा। ‘कहां हैं वे पहाड़?’ जब मैं यहां आया, तब जाकर मैंने ‘सेवेन्थ हिल्स’ को देखा और मैं तुरंत जान गया कि यही वह जगह है। हम नहीं जानते थे कि यह जमीन किसकी है, हम बस वहां गए और कहा, ‘यह जमीन हमें चाहिए।’ लगभग नौ-दस दिन के अंदर हमने इस जमीन की रजिस्ट्री करा ली। हमारे साथ यह बस इस तरह से हुआ।

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मंदिर बनाने की बात सुन लोग सकपका गए

प्रतीक: सद्‌गुरु, ध्यानलिंग को प्रतिष्ठित करने में क्या-क्या करना पड़ा था?

सद्‌गुरु: देखिए, शुरू-शुरू में जब मैंने लोगों से यह कहा कि मैं एक मंदिर बनाने जा रहा हूं, तो कोई उस पर विश्वास नहीं कर रहा था, क्योंकि लोग मुझे एक नास्तिक, बहुत तार्किक और हर चीज पर सवाल उठाने वाले की तरह देखते थे। इसके पहले मैंने अपने जीवन के सत्रह साल समाज में सिर्फ सद्भावना पैदा करने में बिताए। इसलिए जब पहली बार मैंने मंदिर बनाने की बात कही तो किसी को भी यकीन नहीं हुया। हालांकि मैं इसी एकमात्र मकसद से अपना जीवन जी रहा था, मैंने अपने आसपास के लोगों को यह बात एक बार भी नहीं बताई। यह मैंने सिर्फ तभी कहा जब मैंने देखा कि पर्याप्त समर्थन मौजूद है और स्थिति काफी तैयार है। तब भी लोग मेरे ऊपर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। उन लोगों ने कहा, ‘आप मंदिर बनाने जा रहे हैं! आपकी वजह से तो हमने मंदिर जाना बंद किया है। अब आप मंदिर बनाने जा रहे हैं?’

प्राण-प्रतिष्ठा में तीन लोग शामिल थे

आपको ध्यानलिंग प्रतिष्ठा की प्रक्रिया के बारे में बताता हूं। इस पूरी प्रक्रिया में ध्यानलिंग की ऊर्जा इतनी सूक्ष्म बनानी थी, जिसके बाद कोई आकार संभव न हो।

ऐसे लोगों को तैयार करने के लिए जो प्रतिष्ठा में शामिल हो सकें, हमने नब्बे दिन का होलनेस प्रोग्राम आयोजित किया। इसमें लगभग सत्तर लोगों ने हिस्सा लिया।
सूक्ष्मता की एक खास सीमा के बाद ऊर्जा किसी आकार को बरकरार नहीं रख सकती। तो आप ऊर्जा को सूक्ष्मता की चरम सीमा तक ले जाकर उसे एक खास तरह से बंद कर देते हैं, ताकि वह वहां हमेशा बनी रहे। इसे एक खास तरह से बंद किया जाता है। इस प्रतिष्ठा प्रक्रिया में किसी तरह के मंत्र या विधि-विधान का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह पूरी तरह से एक ऊर्जा प्रक्रिया है, जिसमें लोग शामिल होते हैं।

ऐसे लोगों को तैयार करने के लिए जो प्रतिष्ठा में शामिल हो सकें, हमने नब्बे दिन का होलनेस प्रोग्राम आयोजित किया। इसमें लगभग सत्तर लोगों ने हिस्सा लिया। इसके पीछे बुनियादी सोच यह थी कि इन सत्तर में से चौदह लोगों को चुना जाए, जो ध्यानलिंग प्रतिष्ठा में काम आ सकें। लोगों को बहुत तीव्र साधना से होकर गुजारा गया। हम कुछ खास कर्मों को विसर्जित करने की जल्दी में थे, उनके जीवन में यह सब अपने आप हो, इतना इंतजार करने के लिए हमारे पास वक्त नहीं था, इसलिए उनके लिए हर चीज बहुत तेजी से की गई। ऐसे चौदह लोगों को तैयार करना, जो एक ऐसी अवस्था में हों कि उनका शरीर के साथ कम-से-कम संपर्क हो, लेकिन फिर भी वे इतने स्थिर हों कि वहां बैठकर वह सब कर सकें, जो किया जाना है - यह नहीं हो सका। हालांकि इसके लिए जबरदस्त कोशिश की गई थी। ऐसे चौदह लोगों को तैयार करना, जो शरीर, मन, भावना और हर चीज में एक हो जाएं, यह आसान काम नहीं है। हालांकि इसके लिए काफी कोशिश की गई, लेकिन यह नहीं हो सका। फिर हमने एक ज़्यादा कठोर प्रक्रिया अपनाने का फैसला किया, जिसमें केवल दो लोग शामिल थे। यह एक ज़्यादा खतरे वाली प्रक्रिया थी, लेकिन दो लोगों को नियंत्रण में रखना, चौदह लोगों को नियंत्रण में रखने के बजाय कहीं ज़्यादा आसान था।

तीन लोगों के त्रिभुज से दिया चैतन्य को निमंत्रण

इस सब पर विश्वास करना कठिन है। जब दो लोगों को मेरे साथ ऊर्जा का एक त्रिभुज बनाने के लिए लाया गया, जिसमें मैं एक धुरी की तरह था, तो इसके लिए भी जरूरी था कि वे अपने मन, भावना और ऊर्जा में एक हो जाएं।

ऊर्जा का एक त्रिभुज बनाना चैतन्य को निमंत्रण देने की तरह था। वह त्रिभुज एक भंवर की तरह होता है।
अब अगर एक इंसान अपने बाएं घुटने में कुछ महसूस करता है तो बाकी दो लोग भी अपने बाएं घुटने में वही महसूस करते, चाहे वे जहां कहीं भी हों। जो आपका जीवन है और जो उनका जीवन है, सब कुछ आपके दिमाग में गड्डमड्ड हो गया। मान लीजिए कि अभी आप, मैं और एक दूसरा इंसान एक त्रिभुज में हैं। आप नहीं जानते थे कि दस साल पहले मेरे जीवन में क्या हुआ था, लेकिन अचानक, अब आप जानते हैं, और आपके जीवन में पच्चीस साल पहले क्या हुआ था, मैं नहीं जानता था, लेकिन अचानक, अब मैं जानता हूं। सब कुछ इतना गड्डमड्ड हो गया कि हम नहीं जानते थे कि किसकी याद्दाश्त किसकी है। वहां पर सब कुछ एक साथ मौजूद था। दिमाग एक हो गए, भावनाएं एक हो गईं, भौतिक शरीर भी ऊर्जा के स्तर पर एक हो गए। कोई भी चीज जो इस शरीर में होती थी, उस शरीर में भी होती थी। यह उस तरह से हो गया। चौदह लोगों को ऐसे तैयार करने के बजाय इन तीन लोगों को तैयार करना बहुत ज़्यादा आसान था, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत कठोर थी। जो लोग उसमें शामिल थे उनके लिए यह बहुत ज़्यादा जोखिम का काम था। ऊर्जा का एक त्रिभुज बनाना चैतन्य को निमंत्रण देने की तरह था। वह त्रिभुज एक भंवर की तरह होता है। यह एक प्रचंड संभावना है जो हर चीज को बस अंदर खींच लेती है। तो ध्यानलिंग को इस प्रक्रिया के द्वारा प्रतिष्ठित किया गया।

संपादक की टिप्प्णी: ईशा योग केंद्र, कोयंबतूर में स्थित ध्यानलिंग में, आज प्राण-प्रतिष्ठा दिवस का उत्सव मनाया जा रहा है, जिसमें विभिन्न धर्मों के अनुयायी अपने-अपने भजन और गीत भेंट कर रहें हैं। देखें इस उत्सव का सीधा प्रसारण।