संगीत और अध्यात्म
सद्गुरु बता रहे हैं कि किस तरह संगीत और नृत्य समेत भारतीय संस्कृति का हर तत्व आध्यात्मिक प्रक्रिया की ओर ले जाता था।
संगीत और अध्यात्म
सद्गुरु:सद्गुरु:बहुत लम्बे समय तक भारत देश को एक संभावना के रूप में देखा जाता रहा है, क्योंकि पूरे देश की संस्कृति को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया में बदलने के मामले में भारत में महानतम प्रयोग किए गए हैं। यहां कि संस्कृति को ऐसे रचा गया था - कि एक बार इस स्थान पर जन्म पाने के बाद, आप कई तरह के कार्य कर सकते हैं - आप अपने कैरियर की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, अपने परिवार और काम के साथ, जीवन के अन्य पक्षों को भरपूर बना सकते हैं, परंतु मूल रूप से, आपके जीवन की बुनियादी चाह मुक्ति है। यही आपके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। इसी तरीके से इस संस्कृति की रचना की गई थी। आपके द्वारा किये जाने वाले हर कार्य का उद्देश्य यही था, कि आपकी चेतना को ऊँचा उठाया जा सके।
इस प्रकार, इस संस्कृति का नृत्य, संगीत और अन्य कोई भी काम केवल मनोरंजन की श्रेणी में नहीं आता था, यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया भी थी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में ध्वनियों, रागों व धुनों आदि को ऐसे रचा गया है कि अगर आप उनमें पूरी तरह से तल्लीन होना सीख लें, तो ध्यानावस्था को पा सकते हैं। नृत्य कोई ऐसा साधन नहीं था, जिसे केवल मनोरंजन के लिए प्रयोग में लाया जा रहा हो। उचित मुद्राओं और भाव-भंगिमाओं के साथ इससे भी आप ध्यानावस्था पा सकते हैं। अगर आप शास्त्रीय संगीत में गहराई से जुड़े किसी व्यक्ति को देखें तो आपको वह किसी संत सा दिखेगा। अगर आप शास्त्रीय नृत्य में गहराई तक अपनी पहल रखने वाले किसी व्यक्ति को देखें तो आपको वह किसी संत सा दिखेगा। संगीत कोई ऐसी ध्वनियाँ मात्र नहीं थीं, जिनका किसी ने आविष्कार किया हो। मनोरंजन जीवन की प्रवृत्ति नहीं थी। सब कुछ चेतना के उच्चतम स्तर तक जाने का साधन मात्र था।