एक खोजी शेरिल सिमोन ने अपनी रोचक जीवन-यात्रा को ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ नामक किताब में व्यक्त किया है। इस स्तंभ में आप उसी किताब के हिंदी अनुवाद को एक धारावाहिक के रूप में पढ़ रहे हैं। पेश है इस धारावाहिक की अगली कड़ी जिसमें शेरिल ने सद्गुरु से प्रश्न पूछा कि क्या भाग्य जैसी कोई चीज़ होती है, और क्या जीवन पहले से तय है। सद्गुरु बता रहे हैं कि कैसे हम अपने भाग्य पर पूरा नियंत्रण पा सकते हैं।
मुझे खुशी थी कि सद्गुरु की यादें उनके बचपन की एक दुर्लभ झलक पेश कर रही थीं। वे अपनी बात को आगे बढ़ा रहे थे, ‘बाकी बच्चे मुझे तरह-तरह की चीजें करने को उकसाते रहते थे, मैं किसी भी चीज पर चढ़ सकता था। दस साल के एक बच्चे के लिए यह एक बहुत बड़ी बात थी। खुले आकाश के नीचे तरह-तरह के साहसिक कार्य करने में मेरी बड़ी रुचि थी। कभी रेस्तराओं में नहीं गया और न ही नये कपड़ों के पीछे भागा।’
सद्गुरु की पहली उड़ान
कारों के प्रति अपने प्रेम को सद्गुरु ने एक और रूप में दिखाया ‐ सड़क पर गुजरती तरह-तरह की कारों के बारे में जानकारी देकर।
‘जाहिर है आपके पास कारों की एनसाइक्लोपीडिया जैसा ज्ञान है’, तेजी से सर्राती अपनी कार में बैठे मैंने कहा। इस टिप्पणी पर कुछ न बोलकर उन्होंने विषय बदल दिया।
मेरे पिता हमेशा परेशान रहते थे कि इसके मन में किसी भी चीज को लेकर कोई डर नहीं है
‘मुझे हवाई जहाज भी बहुत अच्छे लगते थे,’ उन्होंने कहा। ‘मैं उड़ान भरने को बेचैन था। उडऩे को लेकर मैं भारतीय वायुसेना में लगभग शामिल ही हो गया था। हममें से कुछ लोगों ने मिलकर एक हैंग ग्लाइडर बनाया था। मैंने उसमें पहली उड़ान भरी। उसमें बैठकर पास की एक पहाड़ी से कूद गया। आकाश में खूब ऊंचे उडऩे के बजाय मेरा ग्लाइडर बहुत जल्दी नीचे की एक खाई में गिर पड़ा। हैंग ग्लाइडर तो टूटा ही इससे मेरे दोनों टखने भी टूट गये,’ वे बोले और फिर उन्होंने सबके दिल में उतर जाने वाला एक जबरदस्त ठहाका लगाया।
‘क्या बात है! आपके माता-पिता को तो यह देखकर बहुत मजा आया होगा,’ मैंने बात घुमाकर कहा। ‘हां, मेरे पिता हमेशा परेशान रहते थे कि इसके मन में किसी भी चीज को लेकर कोई डर नहीं है।’
तेज गाड़ी चलानेवाले इस दिव्यदर्शी को कौन-सी प्रेरणा आगे बढ़ाती रही होगी? क्या भाग्य का इसके साथ कोई नाता था? वैसे क्या भाग्य किसी को प्रेरणा देता है?
क्या जीवन पहले से तय है?
मैंने पूछा, ‘सद्गुरु, क्या भाग्य जैसा कुछ है?’ अपना जीवन लक्ष्य-केंद्रित होने पर गर्व महसूस करती हूं। लेकिन मैं यह भी जानती थी कि एकाग्रता के बावजूद मेरे जीवन में काफी कुछ है जो मेरे काबू में नहीं है।
यह प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि आपके जीवन में कुछ ऐसा हो रहा है जो आपकी लाख कोशिश के बावजूद अक्सर आपके मन मुताबिक न होकर उल्टा हो रहा है।
मैं जानना चाहती थी कि ऊर्जा की कौन-सी अनदेखी शक्तियां कुछ विशेष घटित होना या घटित न होना तय करती हैं, इसमें कर्म का कितना योगदान होता है? ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली कहावत किस हद तक हमारे जीवन-घटनाओं को तय करती हैं? क्या हम अपने भाग्य के भरोसे हैं या उसे भी बदल सकते हैं?
उन्होंने थोड़ा सोचकर इस प्रश्न का उत्तर दिया, ‘अब आप दरअसल यह पूछ रही हैं कि क्या जीवन पहले से तय है। यही प्रश्न है न? यह प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि आपके जीवन में कुछ ऐसा हो रहा है जो आपकी लाख कोशिश के बावजूद अक्सर आपके मन मुताबिक न होकर उल्टा हो रहा है।
‘तो क्या यह भाग्य है? आप जानती ही हैं कि बाहरी हालात कई तरह की शक्तियों के नियंत्रण में होते हैं। ऐसी भी शक्तियां काम करती रहती हैं जो हमारे बोध और समझ से परे हैं। हम उनको कुछ हद तक समझते हैं और उसी हद तक हम उन पर काबू कर सकते हैं। लेकिन पिछले पचास वर्षों में स्थितियों की हमारी समझ में बहुत सुधार हुआ है। अब हम भाग्य के बारे में कम और हमारी इच्छा से होने वाली चीजों के बारे में अधिक सोचते हैं। आप समझ रही हैं न?’ वे मेरी प्रतिक्रिया के लिए थोड़ा रुक गये। स्पष्ट रूप से यह कोई सजावटी सवाल नहीं था। मैंने कहा, ‘हां, निश्चित रूप से मैं अपनी दादी की तरह नहीं सोचती कि यदि ऐसा होना है तो ऐसा ही होगा।’
बोध का विकास होने पर भाग्य में विशवास कम हो जाएगा
उन्होंने अपनी बात जारी रखी, ‘अगले सौ सालों में यदि हमारे बोध और समझ में विकास होता है तो भाग्य के भरोसे होने की हमारी प्रवृत्ति कम होती जाएगी। अधिकतर स्थितियां हमारे नियंत्रण में होंगी।
अगले सौ सालों में यदि हमारे बोध और समझ में विकास होता है तो भाग्य के भरोसे होने की हमारी प्रवृत्ति कम होती जाएगी।
इसकी शुरुआत हो चुकी है। जब हम किसी विशेष स्थिति पर काम करने वाली सभी शक्तियों को नहीं समझ पाते, तो उसको
परमात्मा की इच्छा कह देते हैं। जिस किसी चीज को आप नहीं समझ पातीं उसके लिए यह एक बचकानी सफाई है। इस मुद्दे को दबा देने का यह एक आसान तरीका है। हम इस पर यह पर्दा इसलिए डाल देते हैं, क्योंकि हमने जीवन की वास्तविकता को ठीक तरह से समझा ही नहीं है। ‘मैं आपको दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों के बारे में बता रहा हूं। आप जानती हैं कि मैं बचपन से ही ग्रामीण लोगों के साथ जुड़ा रहा हूं। लेकिन जब मैंने वहां जाकर वहां हो रही हर चीज को देखा तो चौंक गया कि इस इक्कीसवीं सदी में, जबकि सरकारी दवाखाने किसी भी गांव में पांच किलोमीटर से अधिक दूर नहीं हैं, हर साल सत्तर हजार से अधिक बच्चे आसानी से ठीक हो जाने वाली आंखों की बीमारी कंजंक्टिवाइटिस से पीड़ित होकर अपनी आंखों की रोशनी खो रहे हैं।
असल में कंजंक्टिवाइटिस आंखों की रोशनी नहीं छीनती, बल्कि बच्चे अपनी आंखों को मसल-मसलकर नुकसान पहुंचाते हैं। अगर बच्चे चार दिन तक अपनी आंखों को न मसलें तो बिना किसी दवा के ठीक हो सकते हैं, लेकिन बच्चे आंखों की खुजली को बरदाश्त नहीं कर पाते। ऐंटीबायोटिक की दो बूंदें उनकी आंखें बचा सकती हैं। आपको क्या लगता है, यह भाग्य है या कोई ऐसी चीज जिसको हम बदल सकते हैं?’
जीवन ऊर्जा पर काबू होने पर भाग्य पर पूरा काबू होगा
‘स्पष्ट है कि इस चीज को बदला जा सकता है और हमें इसको बदलना ही चाहिए,’ मैंने जवाब दिया। उन्होंने बात जारी रखी, ‘आपका भाग्य चाहे जो हो, यह खुद का लिखा हुआ है।
यदि आपकी जीव-ऊर्जा आपके काबू में है, तो आप अपने जीवन और भाग्य की शत-प्रतिशत स्वामिनी होंगी।
लेकिन दुर्भाग्य से आप इसको अचेतन अवस्था में लिख रही हैं। इसको आपने खुद लिखा है, किसी और ने नहीं। सृष्टिकर्ता ने आपको पूरी स्वतंत्रता दे रखी है। उसने खुद को आपमें मिला दिया है। अपना भाग्य आपने स्वयं लिखा है। असहाय होकर लोग भाग्य के बारे में इतनी बातें करते हैं। आप अपना भाग्य सचेतन अवस्था में भी लिख सकती हैं। मैं चाहता हूं कि आप एक दूसरे प्रकार के विज्ञान यानी आंतरिक विज्ञान की शक्ति और मुक्ति को समझें, इस योग विज्ञान के जरिए आप खुद अपने भाग्य की रचयिता बन सकती हैं।’ ‘आपने अभी तक मनुष्य होने की विशालता को नहीं समझा है। यदि आप इंसान को उसकी पूरी ऊंचाई तक ले जाएं, तो उसके जीवन में चैतन्य का आगमन होगा। यदि भौतिक शरीर पूरा आपके काबू में है तो आपके जीवन और भाग्य का दस-पंद्रह प्रतिशत आपके हाथ में होगा। यदि आपका मन काफी हद तक आपके काबू में है, तो आपके जीवन और भाग्य का चालीस से साठ प्रतिशत आपके हाथ में होगा। यदि आपकी जीव-
ऊर्जा आपके काबू में है, तो आप अपने जीवन और भाग्य की शत-प्रतिशत स्वामिनी होंगी।’
जन्म का गर्भ भी तय कर सकते हैं
‘योग का पूरा विज्ञान बस इन्हीं तीन स्तरों पर अभ्यास के लिए है - तन, मन और ऊर्जा। कोई भी मनुष्य अपनी सामर्थ्य का पूरा उपयोग तभी कर सकता है, जब वह अपनी उलझनों में न फंसा हो।
इसकी मदद से आप अपने भाग्य की स्वामिनी बन सकती हैं। आप कैसे पैदा होंगी, किस गर्भ में जन्म लेंगी उसका चुनाव भी आप अपनी चेतना से कर सकेंगी।
जब शरीर, विचार या भावनाओं की कोई आंतरिक उलझनें न हों। इस स्थिति में वह खुद को संपूर्णता में प्रकट कर सकता है। हम आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में जो कुछ भी कर रहे हैं वह यही है। आप निर्णय करें कि आपको कहां जाना है, अगला मार्ग और मंजिल कहां है। यह आप ही के हाथ में है। जिस प्रकार बाहरी सुख के लिए भौतिक विज्ञान है उसी प्रकार आंतरिक कल्याण के लिए योग विज्ञान है। इसकी मदद से आप अपने भाग्य की स्वामिनी बन सकती हैं। आप कैसे पैदा होंगी, किस
गर्भ में जन्म लेंगी उसका चुनाव भी आप अपनी चेतना से कर सकेंगी।’ ‘आपके जन्म, आपके जीवन और मृत्यु की पूरी प्रक्रिया आपकी इच्छा के अनुसार हो सकती है। आप अपना जीवन जैसा चाहें वैसा बना सकती हैं। अभी भी यह वैसा ही है जैसा आप चाहती हैं पर यह आप अचेतन अवस्था में चुन रही हैं। आप सचेतन होकर भी चुनाव कर सकती हैं। यदि आप अपने भाग्य पर काबू नहीं करतीं तो आप संयोग से जीती हैं। जब आप संयोग से जिएंगी तो चिंता तो होनी ही है। संसार के नब्बे प्रतिशत लोग हर समय चिंतित रहते हैं। ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि वे अपना जीवन अपने हाथ में लेने की बिल्कुल कोशिश नहीं करते, जो भी होता है, होता चला जाता है।’