ईशा योग केंद्र में कालभैरव अष्टमी

हर साल आश्रम में निर्वाण षट्कम के जाप के साथ अष्टमी मनाई जाती है - इस अद्भुत स्तुति को एक हज़ार साल पहले आदि शंकराचार्य ने रचा था। ईशा योग केंद्र में, सुबह के समय ‘निर्काया स्थान’ सरोवर के निकट, कालभैरव के विशेष भजन गाए जाते हैं। निर्काया स्थान’ एक सरोवर है, जिसे सद्‌गुरु ने विशेष रूप से मृतकों के अंतिम संस्कार व अनुष्ठान पूरे करवाने के लिए तैयार करवाया है। इसके बाद दिन में एक विशेष आरती का आयोजन होता है और फिर ‘एलुप्रसादम्’ (तिल का प्रसाद) बाँटा जाता है। कोयंबतूर के ‘कायांत स्थान’ में, शाम साढ़े चार से छह बजे तक ऐसे ही कार्यक्रम का आयोजन होता है। ‘कायांतस्थान’ एक श्मशान भूमि है, जिसका संचालन ईशा फाउंडेशन के पास है। इस जगह मृतकों के अंतिम संस्कार व अनुष्ठान सही तरीक़े से पूर्ण किए जाते हैं।

 

 

मृतकों के अंतिम संस्कारों का महत्व

पिछली सदी के दौरान, मरने के बाद की जाने वाली यात्रा से जुड़े अनुष्ठानों ने अपना मूल अर्थ व सार कहीं खो दिया है। ईशा ये अनुष्ठान भेंट करती है और इन्हें शक्तिशाली ऊर्जा के आधार के साथ सेवा भाव से किया जाता है। यह कोई आर्थिक गतिविधि नहीं है। ये प्रक्रियाएँ पूरी संवेदनशीलता और सजगता के साथ पूरी की जाती हैं जिससे मृतक के शोक से भरे परिवार को मानसिक शांति मिल सकती है।

 

‘निर्काया स्थान’ और ‘कायांतस्थान’ इन्हीं प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं। कायांतस्थान कोयंबटूर नगर निगम की संपत्ति है, जिसका संचालन ईशा फाउंडेशन की ओर से किया जाता है। श्मशान भूमि में दो गाड़ियाँ हैं जो चालीस किलोमीटर के दायरे में अपनी सेवाएँ देती हैं। यह मुंडन, सोलहवें दिन के कर्म अनुष्ठान, तत्काल अस्थि वापस देने की सुविधा तथा स्वच्छ सुविधाएं भी प्रदान करता है। इसके अलावा, ईशा योगा केंद्र में ‘कालभैरव कर्म’ जैसी प्रक्रियाएँ भी मौजूद हैं। जो लोग चाहते हैं वे इस सुविधा का भी लाभ लेते हैं।

पिछली सदी के दौरान, मरने के बाद की जाने वाली यात्रा से जुड़े अनुष्ठानों ने अपना मूल अर्थ व सार कहीं खो दियाहै। ईशा अपनी ओर से इन्हें पूरा करवाती है और इन्हें शक्तिशाली ऊर्जा के आधार के साथ सेवा भाव से किया जाता है।

 

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