ध्यानलिंग की सोलहवीं वर्षगांठ: एक नज़र
आज ध्यानलिंग की प्राण प्रतिष्ठा को सोलह साल पूरे हो गए। आज के दिन साल 1999 में सद्गुरु ने इसकी प्रतिष्ठा पूरी की थी। यह प्रतिष्ठा उनके जीवन का लक्ष्य

आज ध्यानलिंग की प्राण प्रतिष्ठा को सोलह साल पूरे हो गए। आज के दिन साल 1999 में सद्गुरु ने इसकी प्रतिष्ठा पूरी की थी। यह प्रतिष्ठा उनके जीवन का लक्ष्य भी थी।
ध्यानलिंग की खासियत यह है, कि वे लोग जो ध्यान के अनुभव से वंचित हैं, वे भी ध्यानलिंग की स्पंदित ऊर्जा में ध्यान की गहरी अवस्थाओं का अनुभव करते हैं।
ध्यानलिंग किसी भी धर्म या मत से जुड़ा हुआ नहीं है, और आज के दिन सभी मतों, धर्मों को मानने वाले अतिथियों और निवासियों की ओर से, ध्यानलिंग को मंत्र अर्पित किए जाते हैं। आइये देखते हैं आज के दिन विशेष समारोह की कुछ तस्वीरें और साथ ही जानते हैं ध्यानलिंग के बारे में...
ध्यानलिंग के गुंबद के निर्माण की खासियत
ध्यानलिंग मंदिर के गुंबद की अनूठी बात यह है कि उसमें सीमेंट या स्टील का इस्तेमाल नहीं हुआ है। वह सिर्फ ईंट और मिट्टी से बना है। इसकी साधारण टेक्नोलॉजी यह है कि एक ही समय सभी ईंटें गिरने की कोशिश कर रही हैं और इसलिए वे कभी नहीं गिर सकतीं। यह ऐसा ही है, मानो पांच लोग एक साथ किसी दरवाजे से घुसने की कोशिश कर रहे हों- ऐसे में कोई अंदर नहीं जा सकता जब तक कि कोई पीछे हटने की शिष्टता नहीं दिखाएगा। अगर कोई ऐसा नहीं करता, तो वे सब सिर्फ धक्का देते रहेंगे। अगर वे धक्का देते रहेंगे, तो वे तब तक वहीं बने रहेंगे, जब तक पृथ्वी है।
सद्गुरु का अनुमान है कि यह मंदिर कम से कम 5000 सालों तक बना रहेगा क्योंकि इस भवन में कहीं भी कोई तनाव नहीं है। यह निर्माण की साधारण, सटीक ज्यामिति के कारण खड़ा है।
ध्यानलिंग हर दिन अलग भौतिक पहलू उपलब्ध कराता है
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शनिवार
महातत्व होने के कारण, यह सभी द्वैत से परे है। यह ज्ञान और मुक्ति की तरफ अग्रसर करता है। शान्ति इस दिन का प्रबल गुण है। जो लोग आत्मज्ञान पाना चाहते हैं, उनके लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है। यह पंच तत्वों से ऊपर उठने में सहायक है तथा व्यक्ति को विवेक प्राप्ति में मदद करता है। यह ब्रह्मांड और उसके नियमों के साथ हमें जोड़ता है।

रविवार
सभी इंद्रियों से परे यह जीवन का उत्सव मनाता है। यह गुरूकृपा पाने के लिए और स्वयं की सीमाओं को तोड़ने के लिए सर्वोत्तम दिन है।