आज्ञा का मतलब, ज्ञान का स्रोत है। यह विवेक का चरम बिंदु है। जैसा कि आप जानते हैं कि प्रकाश अपने में सात रंग संजोए होता है। अगर रोशनी का कोई खास रंग हो, जैसे बैंगनी, लाल या कोई और रंग, तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ एक ही मकसद के लिए काम आ सकती है। यह हर मकसद के लिए काम नहीं करेगी। लेकिन आज्ञा रंगहीन प्रकाश है, हम लोग इसे सफेद प्रकाश कह रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह रंगहीन प्रकाश है, क्योंकि आप इसे देख नहीं सकते। अगर आप प्रकाश के स्रोत को देखें तो आप प्रकाश को देख पाते हैं, अगर आप उस वस्तु को देखें, जिसपर यह पड़ रहा है तो आप इसे देख पाते हैं, लेकिन अगर आप इन दोनों बिंदुओं के बीच इसे देखने की कोशिश करें तो आप इसे नहीं देख सकते। आप केवल प्रकाश को तभी देख पाते हैं, जब कोई चीज उसे रोकती है, इसलिए प्रकाश रंगहीन है।

जब आपको हर चीज जस की तस नजर आने लगे तो संभव है कि आपकी दिलचस्पी हर चीज से पूरी तरह खत्म हो जाए। 
तो जिस तरह से रंगहीन प्रकाश को तोड़ने पर यह सात रंगों में बंट जाता है, इसी तरह, ये सात चक्र सात रंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन आज्ञा रंगविहीन है। इसलिए आज्ञा का संबंध वैराग्य से है, जिसका मतलब है रंगविहीन या रंगों से परे की अवस्था। क्योंकि प्रकाश रंगविहीन होता है, इसलिए आप हर चीज को उसी तरह देख पाते हैं, जैसे कि वह है। मान लीजिए कि अगर एक कमरे में लाल रोशनी जला दी जाए तो सब लोग कुछ अलग ही नजर आएंगे। इसी तरह से अगर हम नीली रोशनी जला दें तो भी आप सब अलग नजर आएंगे।

भावनाओं की मिठास जरुरी है

जबकि रंगविहीन रोशनी में ही चीजों को जस का तस देखा जा सकता है। जब आपको हर चीज जस की तस नजर आने लगे तो संभव है कि आपकी दिलचस्पी हर चीज से पूरी तरह खत्म हो जाए। अगर आप उस स्पष्टता को भावनाओं की मिठास से संतुलित नहीं करेंगे तो आप इस दुनिया के प्रति दिलचस्पी रख ही नहीं पाएंगे और न ही इसमें भागीदारी कर पाएंगे। आप हर चीज पर नजर डालेंगे और आपके लिए किसी भी चीज का कोई मतलब नहीं होगा। इसे ऐसे ही देखा व समझा गया। लोगों को लगा कि वैराग्य का मतलब किसी चीज में दिलचस्पी या भागीदारी न लेना है। लोगों ने कुछ चीजों को जस का तस देखना शुरू किया, लेकिन उनमें भावनाओं की मिठास नहीं थी। आप लोगों को देखते हैं, अगर आपको उनमें कुछ नहीं मिलता तो आपकी उनमें दिलचस्पी ही नहीं जागती।

बुद्धि के स्तर पर सिद्धि

अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में काफी प्रबल है या आपने आज्ञा पर महारत हासिल कर ली है तो बौद्धिक रूप से आप एक सिद्ध पुरुष हो चुके हैं। बौद्धिक सिद्धि आपको शांति देती है। भले ही अनुभव के लिहाज से आपको सिद्धि न मिली हो, लेकिन बौद्धिक सिद्धि आपको मिल चुकी है। यह चीज आपके भीतर एक खास तरह की शांति व स्थिरता की स्थिति लाती है, फिर भले ही बाहरी तौर पर आपके साथ जो भी हो रहा हो। जब बाहरी परिस्थितियां आपके भीतर घट रही चीजों पर असर नहीं डालतीं, तो इससे जिस तरह की आजादी मिलती है, वह अपने आप में जबरदस्त होती है। ऐसे में आपके लिए जो चीजें मायने रखती हैं, उसमें लगाने के लिए आपके पास जितनी मात्रा में ऊर्जा रहती है, वह अद्भुत होती है। इसकी वजह है कि बाहरी चीजें आपके लिए मायने नहीं रखतीं, क्योंकि उन चीजों को आपने जस का तस देखा है।

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