सद्‌गुरुहर इंसान में सफलता और प्रशंसा की चाह स्वाभाविक रूप से होती है। लेकिन इसके लिए करें क्या? अपनी कमियों को दूर करें या अच्छाईयों को विकसित करें? क्या तरीके अपनाएं की मंजिल पाना आसान हो जाए?

बदलाव और रूपांतरण में फर्क होता है जिसे हमें समझना होगा। दरअसल, लोग हमेशा खुद को बदलने की कोशिश करते हैं। बदलाव क्या है? अगर एक कागज का टुकड़ा है, और अगर मैं इसे मोड़ देता हूं तो यह भी अपने आप में एक बदलाव होगा। लेकिन इस तरह से इसका बुनियादी गुण कभी नहीं बदलेगा।

लेकिन जब हम रूपांतरण की बात करते हैं तो उसका मतलब है, पुराना कुछ भी बाकी न रहा। रूपांतरण का मतलब है कि आपके अंदर कुछ बिल्कुल नया घटित हुआ या खिल उठा। अब आप गुलाब के पौधे को ही ले लीजिए, यह कांटों से भरा होता है।

किसी भी चीज को पाने के लिए आपको उसका सही तरीका अपनाना होगा, अन्यथा वह काम नहीं होगा। अगर आप बेवकूफीपूर्ण नैतिकता, सिद्धांत और मूल्यों की दुहाई देंगे तो इनसे कुछ होने वाला नहीं।
वसंत ऋतु आती है और इसमें गुलाब का फूल खिल उठता है, यह रूपांतरण है। हालांकि उस पौधे में अभी भी कांटे हैं और कांटों की तादाद भी फूलों से कहीं ज्यादा है। फिर भी हम इसे कांटों का पौधा न कह कर गुलाब का पौधा कहते हैं। भले ही उसमें सिर्फ एक ही गुलाब क्यों न खिला हो। हर व्यक्ति की निगाह उस पौधे के सैकड़ों कांटों की बजाय उस इकलौते फूल की तरफ ही जाती है। तो हो सकता है कि आपके भीतर जो भी कांटे यानी नकारात्मक चीजें हैं, उन्हें फिलहाल आप हटा न पाएं, लेकिन अपने भीतर अगर आप एक फूल खिला लेते हैं, तो हर व्यक्ति उन कमियों को अनदेखा करने के लिए तैयार होगा।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

आपके बारे में दूसरे लोग क्या सोचते हैं, इसके आधार पर खुद को दुरुस्त करने या सीधा करने की कोई जरूरत नहीं है। जिन लोगों ने खुद को सीधा करने की कोशिश की, वे ऐसे सीधे हो गए कि कोई उनके साथ रहना ही नहीं चाहता। क्या आपने ऐसे लोगों को देखा है जो पूरी तरह से ठीक हों, जिनमें कोई कमी नहीं हो? क्या आप ऐसे इंसान के साथ रहना चाहेंगे? ऐसे व्यक्ति के साथ रहना अपने आप में भयावह होगा। यहां बिलकुल ठीक या त्रुटिहीन होने की बात नहीं है। अगर आप खुद को एक खुशमिजाज और जिंदादिल इंसान के तौर पर उभारते हैं तो फिर आपकी सारी कमियों को भूल कर, लोग आपको स्वीकार करने के लिए तैयार रहेंगे।

अगर आप कांटों को चुन-चुन कर निकालना चाहेंगे तो यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होने वाला। इससे काम नहीं बनेगा। जरुरत है आपको निखरने की, खिलने की। अगर आप किसी भी एक आयाम में खुद को निखार लेते हैं तो आपकी दूसरी तमाम कमियों को लोग भूलने के लिए तैयार रहेंगे। सिर्फ इतना ही करने की जरूरत है। तो सवाल उठता है कि इसके लिए हमें क्या करना होगा? आप किसी फूल को पौधे से खींच कर बड़ा नहीं कर सकते। अगर आप फूल के बारे में सोचते भी नहीं हैं, लेकिन रोज जड़ों को सींचते और संवारते हैं तो फूल जरूर खिलेगा। अब सवाल है कि आपकी जड़ों को पोषित कैसे किया जाए?

आपके पास एक शरीर है, भावनाएं है और मन है, लेकिन ये सारी चीजें अगर काम कर पा रही हैं तो सिर्फ इसलिए, क्योंकि आपकी जीवन ऊर्जा काम कर रही है। आपका दिल धडक़ रहा है, आपकी सांस चल रही है, सांस आ रही है, जा रही है, जो जीवन है, वह घटित हो रहा है। यह जीवन ऊर्जा आपको हमेशा चलायमान रखती है। आपको इसी को पोषित करने की जरूरत है। अगर आपकी जीवन ऊर्जा पूरी तरह से संतुलित और पूरी तरह स्पंदित रहे तो आपका शरीर, मन और भावना सबसे बेहतर हालत में होंगे।

जीवन ऊर्जा को पोषित करने के तरीके के पीछे एक पूरा विज्ञान और तकनीक है। इस तकनीक को हम योग कहते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि जैसे ही मैं योग का नाम लेता हूं, लोग कुछ असंभव सी शारीरिक मुद्राओं या सिर के बल खड़े होने जैसी चीजों के बारे में सोचने लगते हैं। उस तरह का योग अमेरिकी तट से पलट कर यहां आया है। यह एक तरह का 'कोलंबस योग’  है। आप जानते हैं न कि कोलंबस भी गलत जगह पर पहुंचा था। शारीरिक मुद्राएं और क्रियाएं तो योग का एक छोटा सा हिस्सा हैं। योग आपके अस्तित्व की जड़ों को पोषित करने का विज्ञान और तकनीक है, जिससे बाकी चीजें स्वत: खिल सकें। अगर आप कोई फूल खिलाना चाहते हैं, तो आपके चाहने मात्र से वह नहीं खिलेगा। इसके लिए आपको उचित विधि और तरीके अपनाने होंगे, तभी वह खिल सकेगा। यही चीज आपके जीवन के हर पहलू में लागू होती है। अगर आप चीजों को सही तरह से नहीं करेंगे, तो आपको सफलता नहीं मिलेगी।

यह घटना अमेरिका के मिशिगन की है। सर्दियों की एक सुबह जब वहां की झील जम चुकी थी तो एक आदमी वहां मछली पकडऩे के लिए गया। दरअसल, सर्दियों में वहां की झीलें इस कदर जम जाती हैं कि आप चाहें तो उन पर गाड़ी चला सकते हैं। वह सुबह ग्यारह बजे वहां पहुंचा, उसने बर्फ  में एक छोटा सा छेद किया और बैठ गया। उसने अपने पास बियर की एक पूरी क्रेट रख ली। यह काम काफी धैर्य का होता है। उसने उस छेद में मछली पकडऩे का कांटा डाला और आराम से बैठकर बियर पीने लगा। वह एक के बाद एक बियर पीता गया। इस तरह दिन बीतता गया। शाम के चार बज गए, लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लगी। लेकिन टिक कर बैठना भी बड़ी बात है, दरअसल, बुढ़ापा आपको एक जगह टिक कर बैठना सिखाता है।

शाम को चार बजे एक नौजवान लडक़ा वहां आया, जिसके कंधे पर स्टीरियो रखा था और उसमें तेज आवाज में रैप संगीत बज रहा था। उस नौजवान ने भी बर्फ में छेद किया और उसमें अपना कांटा डाल कर बैठ गया। पास में उसका स्टीरियो तेज आवाज में बज रहा था।

जीवन ऊर्जा को पोषित करने के तरीके के पीछे एक पूरा विज्ञान और तकनीक है। इस तकनीक को हम योग कहते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि जैसे ही मैं योग का नाम लेता हूं, लोग कुछ असंभव सी शारीरिक मुद्राओं या सिर के बल खड़े होने जैसी चीजों के बारे में सोचने लगते हैं।
बुजुर्ग आदमी ने उसकी तरफ देखा और सोचने लगा कि मैं सुबह से यहां चुपचाप कांटा डाले बैठा हूं और मेरे हाथ अभी तक एक मछली नहीं लगी। जबकि यह मूर्ख स्टीरियो बजाता हुआ अभी आया और सोच रहा है कि तुरंत उसके हाथ मछली लग जाएगी। इस नौजवान जैसा मूर्ख कोई और नहीं होगा। लेकिन बुजुर्ग के आश्चर्य का उस समय ठिकाना नहीं रहा, जब उसने देखा कि दस मिनट बाद नौजवान के कांटे में एक बड़ी सी मछली फंस गई। उसने गर्दन हिलाई, उसकी तरफ  देखा और मन ही मन कहा कि तुक्का लगा होगा। उसके बाद उसे नजरअंदाज करते हुए वह फिर से अपने कांटे पर ध्यान केंद्रित करने लगा। अगले दस मिनट बाद उस नौजवान के कांटे में एक और मछली फंस गई। अब उसके लिए उस नौजवान की अनदेखी करना मुश्किल हो रहा था। बुजुर्ग ने बड़ी मायूसी के साथ उसकी तरफ  देखा और बुदबुदाने लगा- 'समझ में नहीं आ रहा, क्या हो रहा है। मैं यहां पूरे दिन बैठा रहा और एक भी मछली हाथ नहीं लगी। जबकि इस लडक़े को बीस मिनट में दो मछलियां मिल गईं।’ बुजुर्ग उस समय और हैरान रह गया जब इसके तकरीबन दस मिनट बाद नौजवान के हाथ एक और मछली लग गई।

अब बुजुर्ग व्यक्ति से रहा नहीं गया। उसने अपना सारा अहम एक तरफ  रखा और धीरे-धीरे चलता हुआ नौजवान के पास पहुंचा। उसने उससे पूछा, 'मैं यहां सुबह से बैठा हूं। इस दौरान मैंने कोई आवाज नहीं की, फिर भी मेरे हाथ कोई मछली नहीं लगी। लेकिन मैं देख रहा हूं कि तीस मिनट में तुमने तीन मछलिया पकड़ लीं। आखिर इसका राज क्या है?’ नौजवान ने जबाब दिया- 'रू रा रा रा रू रा रम।’ यह सुनकर बुजुर्ग ने चौंकते हुए पूछा- 'क्या?’ नौजवान ने फिर वही दोहरा दिया। इस पर चकराए बुजुर्ग ने थोड़ा झुंझलाते हुए कहा, 'तुम क्या कह रहे हो, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है।’ नौजवान ने झटके से अपने हाथ को आगे ले जाकर खोला और कुछ दिखाते हुए कहा, 'इसके लिए आपको चारे को गर्म रखना होता है।’

किसी भी चीज में सफल होने के लिए आपको उसका सही तरीका अपनाना होगा, अन्यथा वह काम नहीं होगा। अगर आप बेवकूफीपूर्ण नैतिकता, सिद्धांत और मूल्यों की दुहाई देंगे तो इनसे कुछ होने वाला नहीं। जीवन में तभी कुछ घटित होता है, जब आप सही तरीका अपनाते हैं, वर्ना यह काम नहीं करता। जीवन के हर पहलू पर यह बात लागू होती है, यहां तक रिश्तों पर भी यही चीज लागू होती है।