शिव के गैंग में स्वागत है
अगर आप शिव के गैंग में शामलि होना चाहते हैं तो महाशिवरात्रि से बेहतर और कोई रात नहीं हो सकती।
आध्यात्मिक प्रक्रियाएं भौतिक नियमों को तोड़ने के लिए ही होती हैं, इस अर्थ में हम सब नियमों को भंग करने वाले गुनाहगार हैं। जबकि शिव नियमों के सबसे बड़े भंजक हैं। आप उनकी पूजा तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन उनके गैंग में जरूर शामिल हो सकते हैं।
यह अफसोस की बात है कि शिव का परिचय ज्यादातर लोगों को भारत में प्रचलित कैलेंडरों के जरिए ही हुआ है, जिसमें उन्हें भरे-भरे गाल वाला नील-वर्णी व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि कैलेंडर कलाकारों को इस चेहरे से अलग कुछ सूझा ही नहीं। वही भरे गालों वाला नील-वर्णी पुरुष कभी त्रिशूल तो कभी बांसुरी तो कभी धनुष थाम लेता है और फिर राम, कृष्ण अथवा किसी और रूप में, जिसमें भी आप चाहें, उस रूप में ढल जाता है।
जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो हमारा इशारा दो बुनियादी चीजों की तरफ होता है। ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। आज के आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि इस सृष्टि का हर चीज शून्यता से आती है और वापस शून्य में ही चली जाती है। इस अस्तित्व का आधार और संपूर्ण ब्रम्हांड का मौलिक गुण ही एक विराट रिक्तता है। उसमें मौजूद आकाशगंगाएं महज छोटी-मोटी गतिविधियां हैं, जो किसी फुहार की तरह है। उसके बाद बाकी सब एक रिक्तता है, जिसे शिव के नाम से जाना जाता है। इसलिए शिव को एक ‘अस्तित्वहीन’ यानी ‘जो नहीं है’, के रूप में जाना जाता है।
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यह जो ‘योगी’ है और वह जो ‘अस्तित्वहीन’ है, इस सारी सृष्टि का आधार है- दोनों एक ही हैं। दरअसल, योगी वही होता है, जिसने अस्तित्व के साथ एकात्मता का अनुभव किया हो, जिसने अस्तित्व के रूप में खुद को महसूस किया हो। अगर आपको एक पल के लिए भी अपने भीतर अस्तित्व यानी सृष्टि का अनुभव करना हो तो आपको अपने भीतर रिक्तता लानी होगी। केवल रिक्तता ही अपने भीतर सब कुछ धारण कर सकती है। कोई चीज हर चीज को नहीं धारण कर सकती है। यह धरती अपने भीतर सागर को समा सकती है, लेकिन संपूर्ण सौर मंडल को नहीं। सौर मंडल में ग्रह और सूर्य समा सकता है, लेकिन सारी आकाशगंगाएं नहीं। अगर आप इसी तरह आगे बढ़ते जाएं तो आप समझ सकते हैं कि रिक्तता ही अपने भीतर सब कुछ धारण कर सकती है। जब हम शिव का जिक्र ‘अस्तित्वहीन’ और योगी के तौर पर करते हैं तो एक तरह से ये दोनों पहलू एक दूसरे के पर्यायवाची भी हैं और एक दूसरे से अलग भी हैं।
योग विज्ञान का संचरण कांतिसरोवर के किनारे हुआ जो हिमालय में केदारनाथ से कुछ मील दूर स्थित है। यह सभी धर्मों के शुरू होने से पहले हुआ। शिव ने अपने सात ऋषियों को पूरे वैज्ञानकि तरीके से योग के बारे में बताना शुरू किया। ये सात ऋषि सप्तर्षि के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने उन ऋषियों के सामने जीवन की सारी प्रक्रिया को किसी दर्शनशास्त्र के रूप में नहीं पेश किया, बल्कि उन्हें उसका अनुभव कराया। वे सृष्टि के पुर्जे-पुर्जे को समझकर उनका शोध कर योग को एक ऐसी तकनीक के तौर पर सामने लाए, जिसके जरिए हर मानव, चेतनता के स्तर पर विकास कर सकता है। कुदरत ने भौतिक-नियमों से हमें जिन सीमाओं में बांध रखा है, यह उससे बाहर निकलने का रास्ता है।
कुदरत ने भौतिक तौर पर कुछ नियम बनाए हैं, जिसका पालन सभी जीवों को करना पड़ता हैं। लेकिन मानव का मूल स्वभाव हमेशा से ये रहा है कि वह इन सीमाओं से परे जाना चाहता है। आध्यात्मिक प्रक्रियाएं इन भौतिक नियमों को तोड़ने के लिए ही होती हैं, इस अर्थ में हम सब नियमों को भंग करने वाले गुनाहगार हैं। जबकि शिव नियमों के सबसे बड़े भंजक हैं। आप उनकी पूजा तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन उनके गैंग में जरूर शामिल हो सकते हैं।
अगर आप शिव के गैंग में शामलि होना चाहते हैं तो महाशिवरात्रि से बेहतर और कोई रात नहीं हो सकती। इस रात को ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में इस दिन ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर चढ़ती है। ऊर्जा के ऊपर की ओर चढ़ने की इस प्रक्रिया में ऊर्जा परम ऊंचाई तक जाती है जिससे ‘आप’ का विलय हो जाता है और आप सृष्टि के साथ एक हो जाते हैं। इस रात में ऐसी घटना बहुतायत में होती है। रात भर उत्सव इसीलिए मनाया जाता है कि आप पूरी रात अपने मेरूदंड को सीधा रखकर जगे रहें और इस संभावना का पूरा लाभ उठा सकें। मेरी शुभकामना है कि यह शिवरात्रि सिर्फ जागरण की रात ही नहीं बल्कि बोध की रात बने।