शून्य ध्यान – अपने भीतर के शून्य का अनुभव
आज के स्पॉट में सद्गुरु बता रहे हैं कि शून्य क्या है और शून्य ध्यान क्या है। कैसे शून्य-जो एक इस विशाल सृष्टि का हिस्सा है, उसे एक ध्यान में लपेटकर देने की कोशिश की जाती है। जानते हैं शून्य ध्यान के बारे में (ईशा योग केंद्र में एक ध्यान कार्यक्रम में लोगों को शून्य ध्यान में दीक्षित किया जाता है)।
शून्य का क्या महत्व है? शून्य को अंग्रेज़ी में ‘एमप्टिनेस’ (खालीपन) कह सकते हैं। हालाँकि अंग्रेज़ी का शब्द ‘एमप्टिनेस’ शून्य के अर्थ के साथ सही न्याय नहीं करता। ख़ालीपन एक नकारात्मक शब्द है - यह किसी चीज़ के न होने की बात करता है, जिसे वहाँ होना चाहिए था।
अपनी निजी राय में आप इस सृष्टि के सबसे महत्वपूर्ण जीवन हैं। अपने पारिवारिक दायरे में भी आप महत्वपूर्ण जीवनों में से एक हैं। आपके शहर में भी आप थोड़े बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं, फिर भी वे सब आपके बिना काम चला सकते हैं। देश में आपकी अहमियत बहुत छोटी है, अगर आप चले भी गए तो कोई ध्यान नहीं देगा। दुनिया के लिहाज़ से आप एक और भी मामूली जीवन हैं। इस सृष्टि में तो आपका अस्तित्व न के बराबर हैं। भले ही आप सचेतन रूप से इसके बारे मे न सोचें, लेकिन अपने भीतर की गहराई में हर कोई ये जानता है। तो जितनी भी डिंगे हैं, जितना भी तामझाम, कथा कहानियाँ हैं, वे सिर्फ़ इसलिए कि आप ख़ुद को महत्वपूर्ण बनाने के लिए बेचैन हैं।
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ब्रह्माण्ड का निन्यानवे प्रतिशत शून्य है
जैसे आपके शरीर के हर परमाणु, हर कोशिका में एक ख़ालीपन है, वैसे ही हमने शून्य को ध्यान के पैकेज में पेश किया है। चाहे यह धन-दौलत हो, अहं हो, शिक्षा हो या फिर परिवार हो, ये सारी चीज़ें इस बात की कोशिश हैं कि ख़ुद को आप उपयोगी महसूस कर सकें। लेकिन जब आपके शरीर का हर परमाणु निन्यानवे प्रतिशत ख़ाली है और ये समूचा ब्रह्मांड निन्यानवे प्रतिशत ख़ाली है तो इसका मतलब है कि जो इस सृष्टि का मूल है, वह आपके भीतर आपकी हर कोशिका में मौजूद है। अगर यह बात आपके अनुभव में आ जाए तो आपका जीवन बिलकुल अलग तरीक़े का होगा। उसी की खोज में राजाओं ने भिक्षुक होना चुना। गौतम बुद्ध एक भिक्षु के रूप में निकल पड़े। शिव भी एक भिक्षु के तौर पर निकले थे। इससे पता चलता है, कि उन लोगों को ऐसी चीज़ मिल गयी थी, जिसे किसी तामझाम, विस्तार या किसी चीज़ को इकट्ठा करने की ज़रूरत नहीं होती। यह ऐसी चीज़ है, जो सारी सृष्टि में व्याप्त है। अगर मैं यहाँ बैठता हूँ तो यह अपने आप में पूरा है।
जीवन के इस आयाम के लिए बहुत ज़्यादा तैयारी की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन लोग आज इसके लिए बहुत ही कम समय देने के लिए तैयार हैं। 21वीं सदी के गुरु की यही दुर्दशा(बुरे हाल) है। जैसे शून्य का आयाम आपके शरीर के हर अणु और हर कोशिका में मौजूद है, वैसे ही हम शून्य को ध्यान के पैकेज में भेंट करते हैं, यह एक तरह से शून्य की गोली है। मैं इसे मज़ाक़ बना रहा हूँ, क्योंकि दुनिया में ज़्यादातर लोग जीवन को मज़ाक़ की तरह ही लेते हैं। इस विशाल अस्तित्व में आप इतने छोटे हैं, फिर भी आप ख़ुद को बड़ा समझते हैं। मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है, जिनके लिए उनका परिवार, उनका घर, उनकी मूर्खता, उनके आभूषण, उनकी संपत्ति ही महत्वपूर्ण होते हैं, जिसके लिए वे अपने जीवन के आख़िरी दिन तक संघर्ष करते रहते हैं। और अचानक उनकी मौत हो जाती है। जब वे जीवित थे तो मैंने उनका ध्यान इस ओर दिलाने की कोशिश की, लेकिन उनकी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। यह बेहद अफ़सोस की बात है कि मौत के वक़्त ही लोग अपने होश में आते हैं।
खालीपन पाने की कोशिश में जीतना तय है
मान लीजिए कि आपको परीक्षा में निन्यानवे प्रतिशत अंक मिले तो आप निन्यानवे प्रतिशत की ख़ुशी में उस बचे हुए एक प्रतिशत को अनदेखा कर देते हैं। फ़िलहाल निन्यानवे प्रतिशत शून्य है, एक प्रतिशत सृष्टि है। शून्य ध्यान में आप इस एक प्रतिशत को कुछ देर के लिए एक तरफ़ रख देते हैं और निन्यानवे प्रतिशत का आनंद लेते हैं। अभी तक आप इस निन्यानवे प्रतिशत की अनदेखी करते आ रहे हैं, जो अपने आप में हँसी की बात है। पूर्णता के पीछे भागने से कई तरह की निराशा आ जाती है। अगर किसी की जेब आपसे ज्यादा गहरी है, तो आप निराश हो जाते हैं। अगर किसी का गोदाम भरा हो तो आप निराश हो जाते हैं। अगर किसी का दिल बहुत भरा हो तो आप परेशान हो जाते हैं। इसलिए हम आपको एक ऐसा नया खेल सिखा रहे हैं, जहाँ हर हाल में आप जीत सकते हैं। क्योंकि ख़ालीपन को पाना पूर्णता से ज़्यादा आसान है।
शून्य का मतलब रिक्तता और सटीक शब्दों में कहें तो ‘कुछ नहीं’ होने से है। इसका मतलब एक ऐसे आयाम से है, जो भौतिकता की प्रकृति से परे है। शून्य का मतलब कुछ ना करने से है। अगर मैं आपसे लगातार कहता रहूँ, 'कुछ मत करो, कुछ मत करो' तो आप पागल हो जाएँगे। जितना आप कुछ नहीं करने की कोशिश करेंगे, उतना ही पागल होंगे। आप कुछ नहीं करें, इसके लिए आपको कुछ सहारे की ज़रूरत होती है। अगर आप इस ख़ालीपन में तैरना चाहते हैं तो हम आपको एक रस्सी देंगे, जिसे आप थाम सकें। आख़िर यह किस तरह की रस्सी है? इस ख़ालीपन का मतलब मौन से भी होता है। कुछ होने का मतलब ध्वनि भी है। हम आपको जिस रस्सी की पेशकश कर रहे हैं, वो एक ख़ास तरह की ध्वनि या कहें मंत्र है। जब यह ‘कुछ नहीं’ बहुत ज़्यादा प्रभावी हो जाता है तो आप इस ध्वनि को थाम सकते हैं।
शून्य के मंत्र की प्रकृति
मंत्र कई तरह के होते हैं। जिस एक मंत्र से आप सब परिचित हैं, वो है - 'ॐ'। यह एक ऐसा मंत्र है, जिसे जब आप ज़ोर से व स्पष्टता से बोलते हैं तो यह शक्ति पैदा करता है। इसके अलावा, और भी मंत्र होते हैं, जिन्हें बीज मंत्र कहा जाता है। बीज मंत्र एक शुद्ध ध्वनि होती है, जिसका कोई मतलब नहीं होता। मंत्र का मतलब शुद्ध ध्वनि, बीज का मतलब बीज से होता है। किसी भी बीज को एक ख़ास तरीक़े से रखा जाता है। एक बार आप इस बीज को मिट्टी में बो देते हैं और इसे सही तरह से नमी मिलती है, केवल तभी यह अंकुरित होता है। एक बीज वही करेगा, जो इसे करना होगा। इसी तरह से मिट्टी भी वही करेगी, जो इसे करना होगा। आपका काम बस ज़रूरत के हिसाब से माहौल तैयार करना है। यही बात शून्य ध्यान के साथ भी है, अगर आप इसे सही तरीक़े से करेंगे तो यह अंकुरित होगा, बड़ा होगा, एक शानदार पेड़ में बदलेगा, जिसमें फल भी लगेंगे।