डगर डगर... अविराम सफर
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु बता रहे हैं अपने व्यस्तता भरे कार्यक्रमों और रोमांचक सफर के बारे में – हैदराबाद से शुरु होकर बेंगलुरु, मुंबई यूरोप से होते हुए अमेरीका का एक अविराम सफर...
पिछले आठ दिनों में मैं छह शहरों में गया जहां बहुत अधिक कार्यक्रम हुए। शुरुआत हैदराबाद के ‘मिस्टीक आई’ कार्यक्रम से हुई और इसी के साथ ‘इन कनवसरसेशन’ श्रृंखला में एक कार्यक्रम हुआ, जिसमें तीन सफल महिला उद्यमियों के साथ बातचीत हुई। इसके बाद मैं बेंगलुरु पहुंचा, जहां ईशा लीडरशिप अकादमी के लिए जमीन लेने के लिए पहला कदम लिया गया। आप चाहें तो मेरी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन क्या करूं, अनजाने में जो जमीन मिली भी तो वह चिक्कबल्लापुर में, जहां मेरा ननिहाल है। इस जगह से मेरी बचपन की यादें जुडी हुई हैं।
यह जगह नंदी पहाड़ियों के पास है, जहां से मेरी बचपन और जवानी की कई प्रिय यादें जुडी हुई हैं। यह वही जगह है, जहां मैंने पहली बार उड़ने का प्रयास किया था और मैंने उड़ान भी भरी थी। अपने जुगाड़ से बनाए हैंड ग्लाइडरनुमा विमान के सहारे मैं तकरीबन 20 सैकंड हवा में रहा था। इसे हमने ‘पोपुलर मेकेनिक्स’ नामक पत्रिका से देख कर स्थानीय सामग्री की मदद से बनाया था। मैंने पहाड़ियों की ढलान से उड़ान भरी, लेकिन यह बात और है कि इस कोशिश में मैं अपने टखने तोड़ बैठा। हालांकि इस उड़ान से मुझे जो बेइंतहा खुशी हुई, उसके आगे यह दर्द कुछ भी न था। अब हम लौट कर उसी जगह पर आए हैं, जहां कभी मेरे पूर्वजों ने विजयनगर से आ कर इस इलाके में जमीन ली थी।
‘इन कनवरसेशन’ श्रृंखला के तहत बेंगलुरू की शाम उस तकनीकी विशेषज्ञ नंदन नीलेकणि के साथ बीतीजो हाल ही में राजनीति के मैदान में उतरे हैं। नंदन देश की पहली पीढ़ी के बड़े उद्यमियों में जाने जाते हैं। वह इनफोसिस को स्थापित करने वाले साझेदारों में से रहे हैं और वहां के सीईओ भी रह चुके हैं। यह देश के लिए उम्मीदों भरी बात है कि नंदन जैसे लोग चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि वह उस दल से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका इस बार सत्ता में आना मुश्किल लगता है।
इस दौरान मुंबई में तीन दिन बिताए, जिसमें कई यादगार कार्यक्रम हुए। इनमें से एक कार्यक्रम था- ‘इन कनवरसेशन’ जो प्रसून जोशी के साथ हुआ। विषय था - ‘मृत्यु और उसके बाद’। श्रोताओं के लिए यह बातचीत काफी रोचक साबित हुई। ऐसा लगता है कि इस विषय के साथ न्याय करने के लिए हमें कुछ और शामें निकालनी पड़ेंगी।
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इधर यूरोप में होने वाली बहुत सारी मीटिंगों के लिए आया हूं। ये मीटिंगें फाउंडेंशन के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यहां लुफ्तांसा के पाइलट हड़ताल पर हैं। इससे निपटने के लिए एयरलाइन को कुछ उठापठक करनी पड़ रही है। दो दिनों में तकरीबन 1300 उड़ानें रद्द की गई हैं। अब न्यूयॉर्क पहुंचने का इंतजार है। इस थका देने वाले हफ्ते के बाद न्यूयॉर्क की उड़ान के दौरान कुछ नींद और आराम मिलना तय है। ईशा यूएसए को हमारा इंतजार है.....
जर्मन कबीले जिस सहजता से
निकालते हैं कंठ ध्वनि
यह प्रतिमान है अनुशासन का
और कुशल कारीगरी का
यहां तक कि धूर्त अंग्रेज ने भी
अपनाया एक जर्मन रानी को
पर जर्मन सपना
रह गया अधूरा
एक इंसान की निर्दयता से
बेमिसाल क्रूरता भरे कर्मों से
न जन्मे, फिर धरती पर
और कोई वैसा
नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं।