मैं लघु व मझोले क्षेत्र के उद्यमों के लिए दिए जाने वाले सीएनबीसी पुरस्कार समारोह में भाग लेने के लिए मुंबई गया था। इस सालाना पुरस्कार के लिए 1,25,000 से ज्यादा प्रविष्टिष्यां आई थीं, जिसमें से आयोजकों ने 18 को पुरस्कार के लिए चुना। देखा जाए तो कई तरह से ये लघु और मझोले क्षेत्र के उद्यमी भारतीय अर्थव्यवस्था के पहिए हैं। तमाम अवरोधों और विषमताओं के बावजूद आज जो भारतीय अर्थव्यस्था लगातार आगे बढ़ रही है, वह देश भर में फैले इन लघु व मझोले उद्यमियों की मेहनत के बल पर बढ़ी है। इन उद्यमियों की मेहनत और सफलता अंतरराष्ट्रीय बाजार की गतिविधियों पर नहीं टिकी है। इस क्षेत्र से तकनीक की जो विविधताएं सामने आईं, वो अपने आप में अद्भुद हैं। सही मायने में ये उद्यमी न तो यह किसी बढ़ते बजार की देन हैं और न ही किसी अन्य मदद की उपज। ये वो असली उद्यमी हैं, जिनके भीतर न सिर्फ सफलता पाने की धुन है, बल्कि उन्होंने काबिले तारीफ काम भी किया है।

मैं उस आयोजन में उद्यमियों को सालाना पुरस्कार देने के लिए गया था। जब मैंने इन लोगों को देखा, जिसमें बहुत सारे लोग देश भर के छोटे-छोटे कस्बों से आए थे, जिन्होंने अपनी उम्मीदों, महत्वाकांक्षाओं, प्रयासों और कौशल से अपने उद्यमों को आकार दिया तो मैं अपने आप को यह कहने से रोक नहीं पाया कि अफसोस की बात है कि देश के फलते फूलते आर्थिक विकास को देश की राजनैतिक ताकतें नेस्तनाबूत कर रही हैं । हालांकि जब मैं यह कह रहा था तब मेरे सामने देश के कुछ जाने-माने राजनीतिज्ञ बैठे हुए थे। इस आयोजन के दौरान मैंने उद्योग व व्यवसाय जगत में नीतिपरक संचालन प्रणाली पर एक 15 मिनट की प्रस्तुति भी दी। कार्यक्रम में बड़ी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया।

उसके बाद मैं देर रात की फ्लाइट लेकर बेंगलुरू पहुंचा। जहां तीन दिन का इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। शहर के एक बड़े होटल के बेसमेंट में बने सम्मेलन कक्ष में आयोजित इस कार्यक्रम में उद्योग जगत के महत्वाकांक्षी मुखिया, व्यवसायिक नेतृत्व और समाज के धनी व प्रभावशाली वर्ग के लोगों ने भाग लिया। बेंगलुरू वासियों के लिए बेंगलुरू में पहली बार आयोजित यह अपने तरह का एक अनोखे कार्यक्रम था जिसमें 250 लोगों ने शिरकत की। जिसमें कुछ गायक और एक खंजीरी वादक भी शामील थे, जो कुछ समय पहले हमारे यहां यक्ष मोहत्सव में भाग लेने आए थे। यह व्यक्ति आयोजन के बीच में ही साउंड ऑफ ईशा मंडली के साथ भाग लेने के लिए कूद पड़े।

मुझे कन्नड़ लोगों के साथ वैचारिक आदान प्रदान या अंतरंग बातचीत किए तकरीबन 25 साल से भी ज्यादा का समय हो गया। कितनी अजीब बात है कि दो राज्यों के लोग कितने भिन्न होते हैं। जहां तमिलभाषी लोग हमेशा तेजी और आवेश मे रहते हैं, वहीं दूसरी ओर सरहद के पार कन्नड़ लोग भले शारीरिक तौर पर उतने हट्टे कट्टे नहीं होते, लेकिन वे हो-हल्ला करने वाले तमिलों के मुकाबले भावुक और सौम्यता भरे होते हैं।

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यहां मुझे एक मॉल के उद्घाटन में जाना पड़ा। जहां मुझसे मिलने पहुंचे लोग अपना मौलिक संकोच और झिझक को छोड़ मुझ पर टूट पडे़। आयोजकों के लिए इस भीड को संभालना मुश्किल हो गया था, क्योंकि उन्हें भी ऐसी भीड़ का अंदाजा नहीं था। यहां तक कि हमारे स्वयंसेवयों के लिए भी मुझ पर टूटती भीड़ को संभलना मुश्किल हो रहा था। दरअसल, वे इसके लिए तैयार भी नहीं थे। इस तरह एक और शहर में मैं गुमनामी के अपने आंनद से वचित हो गया।

जब मैं बेंगलुरू की बेशुमार ऊंची ऊंची इमारतों और रास्तों पर ट्रैफिक जाम को देखता हूं तो मैं अनायास ही उस अतीत में खो जाता हूं, जब यह शहर बेहद खूबसूरत हुआ करता था। बाग बगीचों से भरे शहर पर सुबह छाया कुहांसा दोहपर तक छितराया रहता था, अंग्रेजों के जमाने के कॅाफी की दुकानें, किताबों की दुकानों के निराले मालिक, मैसूर शहर का यह सभ्य बड़ा भाई, जहां मैंने अपना बचपन गुजारा। बेंगलुरु का पुराना नाम बेंडाकालरू था जिसका मतलब है, वह शहर, जहां बीजों को सही तरह से भूना जाता हो। लेकिन उसी बेंगुलुरू का केम्पे गौडा से देवे गौडा और महाराजाओं के देहाती राजवाड़ो से लेकर भारत की सिलीकॉन वैली तक का बदलाव आपको गौरवान्वित और दुखी दोनों करता है। दुखी उन चीजों के लिए, जो खो गईं और जिन्हें वापस नहीं लाया जा सकता, जबकि गौरवान्वित उन उपलब्धियों के लिए, जिन्हें कतई कम करके नहीं आंका जा सकता।

तकनीक की दुनिया में बेंगलुरू आज वह नाम बन चुका है जिसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह सॉफ्टवेयर तकनीक का गढ़ बन चुका है। हालांकि आम जनता की अपेक्षा राजनीतिज्ञों का तकनीकी ज्ञान कमजोर ही माना जाता है, लेकिन यहां के विधायकों की बात ही अलग है। इन लोगों ने आई पैड-2 को सिर्फ इसलिए नकार दिया कि इन्हें लगा कि वह उनके लिए पुराना है। उन्होने आई पैड-3 की मांग की, जो नवीनतम है। यह है उच्च तकनीक का खेल।

शाम सात बजे हमने इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम का समापन किया। उसके बाद  रात का खाना 9.30 तक चला और फिर हम रात की 11 बजे की फ्लाइट से मुंबई के लिए रवाना हुए। तड़के सुबह दो बजे हम मुंबई पहुंचे और अगला पूरा दिन बैठकों से भरा था। उस शाम को ‘कान्वर्सेशन विद द मिस्टिक’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस बार संवाद के लिए और कोई नहीं, बल्कि वी कामथ थे, जिन्होंने आईसीआईसीआई बैंक को आज इस मुकाम पर पहुंचाया। आज लोग उनका भरपूर आदर व सम्मान करते हैं। वह आज भी आईसीआईसीआई बैंक के मानद अध्यक्ष हैं और इंफोसिस के कार्यकारी अध्यक्ष। के वी कामथ का मूल्यांकन उनके पदों से नहीं किया जा सकता। वित्तीय दुनिया का हर खिलाड़ी उन्हें अपना गुरु बनाने के लिए तरसता है। वह देश के कई कामयाब शीर्ष उद्यमियों के गुरु रह चुके हैं। वह इस देश के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के बैंकिंग जगत के लिए आदरणीय व्यक्तित्व हैं। वह इस कार्यक्रम के लिए पूरी तैयारी से आए थे। यह देख कर अच्छा लगा कि उन्होंने आध्यात्मिक पुस्तक ‘मिस्टिक म्यूजिंग’ पढ़ा, कुछ वीडियो देखे और शाम के इस कार्यक्रम के अनुरूप कुछ सवाल भी बनाकर लाए।

मुंबई में आयोजित इस कार्यक्रम में यहां के वित्तीय व कारोबारी दुनिया के लगभग सभी लोगों ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत गायक नारायण के अगुवाई में साउंड ऑफ ईशा की शानदार प्रस्तुति से हुई। ढाई घंटे के इस कार्यक्रम में लोग मन लगाकर बैठे रहे। मेरे लिए भी यह बहुत अच्छा रहा, क्योंकि यहां मुझसे कुछ नए तरह के सवाल पूछे गए, जो हमेशा की तरह अध्यात्म के महत्व पर आधारित न होकर कारोबार जगत से जुडे़, आर्थिक विषयों और देश व दुनिया की समस्याओं और उनके निदान पर आधारित थे। यह उस शिक्षा करी दिशा में उठा पहला कदम था, जिस पर ईशा काम कर रहा है। हम तकनीकी और व्यापार से जुड़े लगभग दस क्षे़त्रों पर आधारित एक भव्य सम्मेलन का आयोजन आगामी नवंबर-दिसंबर में करने जा रहे हैं। इसका नाम होगा ‘बाइस्कोप ऑफ एंटरप्रिनोरिअल लीडरशिप'। इसे सफल बनाने के लिए दुनियाभर की कामयाब प्रतिभाओं को इसमें  सम्मिलित किया जाएगा। कुछ बड़ी हस्तियों से हमारी बात भी हो चुकी है और इस सम्मेलन की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।

अगर आप में से कोई इसमे भाग लेने को इच्छुक है और वह शामिल होने से जुड़ा खेद पत्र नहीं चाहता तो उसे अभी से इसमें नामांकन के लिए प्रक्रिया शुरू करनी होगी। हमारा पंजीकरण शुरू होने से पहले। आप को अभी पंजीकरण कराना होगा, क्योंकि इसमें मात्र 120 लोग ही इसमें भाग ले सकेंगे। 29 नंवबर से 2 दिसंबर तक आश्रम में चलने वाले इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले और मार्गदर्शन करने वाले काफी नामी लोग होंगे। तो अगर आप चाहते हैं कि आपको लच्छेदार भाषा में  लिखा खेद-पत्र न मिले तो वाकई आपको अभी पंजीकरण कराना होगा।

हमारे एक शुभचिंतक ने बेंगलुरू के पास दस एकड़ जमीन स्कूल, कॉलेज या काया-कल्‍प केंद्र स्थापित करने के लिए दान में देने की पेशकश की है। मुझे देर रात की फ्लाइट से मुंबई से बेंगलुरू आना पड़ा। मैंने सुबह वह जमीन देखी और बैठक के लिए गाड़ी से कोयंबटूर चला आया, जहां मैं कुछ घंटे देरी से पहुंचा। इसलिए यह लेख भी 12 घंटे देरी से लिखा गया।

Love & Grace