Sadhguruकृष्ण ने राधे और गोपियों के साथ यमुना किनारे जब पहली रास लीला रचाई, तो उस दिन सारी पुरानी परंपराएं टूट गईं। यह रास लीला ग्वालों और गोपियों के बीच एक खेल के रूप में शुरू हुई, और कृष्ण की बांसुरी की मनमोहक धुन के साथ अपने चरम पर पहुंची...

कृष्ण सात साल के थे और राधे 12 की, उनके साथ उन्हीं की उम्र के बच्चों की एक बड़ी टोली रहा करती थी।
यूं तो कृष्ण का जन्म एक राज परिवार में हुआ था, लेकिन उनका लालन-पालन एक ग्वाला परिवार में हुआ। उनको पालने वाले पिता नंद, ग्वाले थे। हालांकि वह ग्वालों के मुखिया थे, फिर भी ग्वाले का काम करते थे और राजसी ठाठ से वह कोसों दूर थे। मां यशोदा ने कृष्ण को जन्म नहीं दिया था, लेकिन वह खुद इस बात को नहीं जानती थीं। जन्म से ही कृष्ण को भगवान के अवतार के रूप में देखा गया था। दरअसल, उनके जन्म से पहले ही उनके बारे में तमाम तरह की भविष्यवाणियां की गई थीं। कुछ योगी, खासतौर पर प्राचीन काल के महान ऋषि कृष्ण द्वैपायन जो आगे चलकर व्यास मुनि के नाम से जाने गए, एक अनूठे बच्चे की खोज में थे, जिसका जन्म एक खास दिन को होना था। इस दौरान उन्हें कृष्ण के धरती पर आने के बारे में पता लगा। वैसे भी उनके आने का इंतजार योगी बहुत लंबे समय से कर रहे थे। जन्म के साथ ही कृष्ण को 'तारणहार’ कहा गया। दरअसल, उनको लेकर हुई भविष्यवाणियों और गणनाओं की वजह से माना जा रहा था कि वह लोगों को उनके दुख, दर्द और पीड़ा से मुक्ति दिलाएंगे। बाद में जिस तरह वह धरती पर जिए और जैसे उपदेश उन्होंने लोगों को दिए, उससे उनके बारे में की गई सभी भविष्यवाणियां सही साबित हुईं।

रास लीला

गोकुल और बरसाना के ग्वाले, वृंदावन नाम की एक जगह पर जाकर बस गए थे। वृंदावन काफी खुली और हरी-भरी जगह थी। ये नई बस्ती कई मायनों में पुरानी मान्यताओ को तोड़ने वाली और ज्यादा खुशहाल साबित हुई। चूंकि ये लोग अपने पुराने परंपरागत घरों को छोड़कर आए थे इसलिए इनके पास पहले से अधिक आजादी थी। यह नई जगह ज्यादा समृद्ध और खूबसूरत थी। खासतौर पर युवाओं और बच्चों को यहां इतनी आजादी मिली, जिसे उन्होंने पहले महसूस नहीं किया था। यहां चीजें वाकई काफी अलग थीं। आखिर समुदाय में लोगों के पास समृद्धि थी और खुलकर जीने का एक नया अहसास था। इनमें बच्चे भी शामिल थे। इन बच्चों के समूह में राधे थोड़ी बड़ी थीं। वह कभी किसी दायरे में बंधकर नहीं रही और उसे समाज में एक अलग ही आजादी मिली थी। ऐसी आजादी, जिसके बारे में दूसरी लड़कियां सोच भी नहीं सकती थीं। राधे लड़कियों का नेतृत्व करती थीं और जबकि कृष्ण लड़कों का और फिर इन दोनों की अगुआई में हर्ष और उल्लास से भरे मिलाप होते थे। कृष्ण सात साल के थे और राधे 12 की, उनके साथ उन्हीं की उम्र के बच्चों की एक बड़ी टोली रहा करती थी।

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जब कृष्ण ने अपने इन साथियों को इस तरह थककर गिरते देखा, तो उन्होंने अपने कमरबंद से बांसुरी निकाली और मंत्रमुग्ध करने वाली एक धुन बजानी शुरू कर दी।
वृंदावन में होली का त्योहार आया। इस रंगीन माहौल में, जब हर चीज अपने चरम पर थी, पूर्णिमा की एक विशेष शाम को लड़के और लड़कियों की ये टोलियां यमुना नदी के किनारे इकट्ठी हुईं। नई जगह के इस माहौल की वजह से कई पुरानी परंपराएं टूट गईं और पहली बार ये छोटे लड़के व लड़कियां नहाने के लिए नदी पर एक साथ पहुंचे। पहले तो इन टोलियों ने खेलना शुरू किया। इसके बाद उनका एक-दूसरे पर पानी उछालने और बालू व मिट्टी फेंकने का खेल शुरू हुआ। इस बीच वे एक-दूसरे को देखकर चिढ़ाते थे और बीच-बीच में गालियां देने का दौर भी चलता था। थोड़ी देर बाद जब इस खेल का जोश बढ़ता गया, तो बच्चों ने मिलकर नाचना शुरू किया और फिर हर्ष व उल्लास के अपने जुनून में वे नाचते गए और नाचते ही गए। लेकिन कुछ देर बाद थकान होने पर वे धीरे-धीरे एक-एक करके गिरने लगे। जब कृष्ण ने अपने इन साथियों को इस तरह थककर गिरते देखा, तो उन्होंने अपने कमरबंद से बांसुरी निकाली और मंत्रमुग्ध करने वाली एक धुन बजानी शुरू कर दी। कृष्ण की बांसुरी की यह धुन अत्यंत मनमोहक थी, जिसे सुनकर सभी उठ खड़े हुए और वे फिर सभी मस्ती में झूमते गए और झूमते गए। वे इस धुन में नाचते-नाचते इतने मगन हो गए कि वे अपने-आप ही कृष्ण के चारों ओर जमा हो गए। नाच का यह दौर लगभग आधी रात तक यूं ही चलता रहा।

पूर्णिमा की एक विशेष शाम को लड़के और लड़कियों की ये टोलियां यमुना नदी के किनारे इकट्ठी हुईं। नई जगह के इस माहौल की वजह से कई पुरानी परंपराएं टूट गईं।

आगे जारी ...

Images courtesy: Abhi Sharma