विषय सूची
1. अगस्त्य मुनि दक्षिण भारतीय रहस्यवाद के पिता कैसे बने ?
2.अगस्त्य मुनि ने कार्तिकेय के गुस्से को ठंडा किया
3. अगस्त्य मुनि ने विंध्याचल पर्वत को झुकाया
4. अगस्त्य मुनि ने सुगंधित फूलों का पेड़ लगाया
5. अगस्त्य मुनि ने कावेरी में भव्य नट्टत्रीश्वर मंदिर बनाया
6. अगस्त्य मुनि ने एक गुप्त मंदिर को प्राण-प्रतिष्ठित किया

#1. अगस्त्य मुनि दक्षिण भारतीय रहस्यवाद के पिता कैसे बने ?

सदगुरु : जब आदियोगी ने अपना ज्ञान अपने पहले सात शिष्यों के साथ साझा किया तब उन्होंने, वे 112 तरीके खोजे और शिष्यों को समझाये, जिनसे कोई मनुष्य अपने अंतिम स्वभाव तक पहुँच सके यानी आत्मज्ञान पा सके। जब उन्हें लगा कि वे शिष्य, सप्तर्षि इन 112 तरीकों को समझने में समय लेंगे तो उन्होंने उन विधियों को 16 - 16 तरीकों के 7 भागों में बांट दिया और फिर उनमें से हरेक को आत्मज्ञान पाने के 16 अलग अलग तरीके ही सिखाये। कथा कहती है कि सप्तर्षियों को ये 16 तरीके सीखने में भी 84 साल लगे। इन 84 सालों में वे सब वहीं, आदियोगी के साथ ही रहे थे, जो उनके सिर्फ गुरु ही नहीं थे बल्कि सब कुछ हो गये थे।

अलग अलग तरीके सीखने के बाद जब वे इस ज्ञान से प्रकाशित हो रहे थे तब आदियोगी ने उनसे कहा-अब जाने का समय आ गया है"! इस बात से वे सब ऋषि बहुत ज्यादा भावुक हो गये क्योंकि आदियोगी के बिना वे अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। पर आदियोगी ने उनसे कहा अब जाने का समय है। तुम लोगों को जाकर अब ये बाकी संसार के साथ साझा करना होगा"।

जब वे लोग निकल ही रहे थे, तभी आदियोगी ने पूछा, "पर, मेरी गुरु दक्षिणा का क्या"? गुरु को दक्षिणा की ज़रूरत नहीं होती पर वे ये चाहते हैं कि जाने के समय शिष्य समर्पण के भाव के साथ जाये क्योंकि मनुष्य जब समर्पण के भाव में होता है तो वो अपनी सबसे अच्छी अवस्था में होता है। तो, आदियोगी ने उनसे गुरु दक्षिणा माँगी और ये लोग उलझन में पड़ गये

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उनके पास था ही क्या जो वे गुरु को अर्पण करते? कुछ देर तक ऐसी उलझन में रहने के बाद अगस्त्य ने गुरु का इशारा समझते हुए कहा, "मेरे जीवन में सबसे कीमती चीजें जीवन के ये 16 आयाम हैं, मेरे जीवन से भी ज्यादा कीमती, जो मैंने अपने गुरु से पाये हैं, मैं वो ही आपको समर्पित करता हूँ"। इतने सारे सालों की कठोर साधना से उन्होंने जो कुछ पाया था वो आदियोगी को वापस कर दिया। इस इशारे को समझ कर बाकी के शिष्यों ने भी ऐसा ही किया।

उन्होंने दिन रात एक कर के, 84 साल तक साधना कर के जो कुछ पाया था वो बस एक ही पल में, गुरु दक्षिणा के रूप में गुरु के चरणों में रख दिया। आदियोगी ने शांत भाव से कहा, "अब जाने का समय है"! वे खाली हाथ चल पड़े, उनके पास कुछ नहीं था और यही आदियोगी की शिक्षा का सबसे महान पहलू था। चूंकि वे खाली हो कर गये तो गुरु की तरह हो गये। शिव का अर्थ है, "वो जो नहीं है"! वे ऐसे हो गये जो हैं ही नहीं। वे इस तरह के हो गये तो उन सातों के माध्यम से सभी 112 तरीके अभिव्यक्त (प्रकट) हो गये। वे चीजें जो ये सप्तर्षि कभी समझ, सीख ही नहीं पाये थे, जिनके लिये उनके पास बुद्धिमानी भी नहीं थी, वो सब उनका ही भाग हो गया क्योंकि उन्होंने जो कुछ इकट्ठा किया था, वो सब गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया था, वो भी, जो उनके जीवन का सबसे कीमती पहलू था और बस खाली हो कर निकल पड़े थे। 

#2. अगस्त्य मुनि ने कार्तिकेय के गुस्से को ठंडा किया

कार्तिकेय शिव के पुत्र थे। एक बार वे बहुत नाराज़ हो गये और अपने पिता से दूर जाना चाहते थे। वे दक्षिण की ओर चले गये और योद्धा बन गये। कई तरह से वे एक अनोखे योद्धा थे और जीतते ही चले गये पर वे राज करने के लिये नहीं जीतते थे। उन्हें जो भी अन्यायी लगता था, उसे वे नष्ट कर देते क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके माता - पिता ने उनके साथ अन्याय किया था तो वे हर जगह न्याय स्थापित करना चाहते थे। जब आप गुस्से में होते हैं तो सब कुछ अन्याय जैसा ही लगता है। उन्हें लगता था कि दुनिया में इतना ज्यादा अन्याय हो रहा है, तो उन्होंने बहुत से युद्ध लड़े और बहुत सारे लोगों को मारा। तब अगस्त्य मुनि ने कार्तिकेय के गुस्से को बदला और उसे एक ऐसा साधन बनाया जिसके द्वारा उन्हें आत्मज्ञान मिल सके। फिर, कार्तिकेय को सुब्रमण्या में शांति मिली जहाँ उन्होंने आखिरी बार अपनी तलवार धो कर साफ की। कुछ दिनों के लिये वे वहाँ रुके और फिर कुमार पर्वत पर गये। वहीं खड़े होने की मुद्रा में उन्होंने महासमाधि ली। इस तरह अगस्त्य ने कार्तिकेय के गुस्से को आत्मज्ञान में बदलने का महान काम किया।

#3. अगस्त्य मुनि ने विंध्याचल पर्वत को झुकाया

दक्षिण की ओर जाते समय अगस्त्य की भेंट विंध्याचल से हुई। भारत के मध्य भाग में विंध्याचल नाम की पर्वत श्रेणी है जो हिमालय से भी बहुत पुरानी है। पर्वतों में हिमालय को पर्वतों का राजा चुना गया था। तो जब अगस्त्य दक्षिण की ओर जा रहे थे तब विंध्याचल बहुत ग़ुस्से में थे और उन्होंने अगस्त्य को रोक कर पूछा, "आप हिमालय को राजा कैसे बना सकते हैं, मेरी तुलना में वो बस बच्चा है! अगस्त्य जानते थे कि जब कोई गुस्से में होता है, तो वो बहुत खराब काम कर सकता है। अब अगर कोई पर्वत ही नाराज हो तो वो क्या कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। अगस्त्य वहाँ बैठ गये, तो विंध्याचल ने बहुत भक्ति भाव से झुक कर उनको प्रणाम किया। तब अगस्त्य बोले, "आप बस यहीं रहिये। मैं अभी दक्षिण की ओर जा रहा हूँ। जब लौटूँगा तब आपके सवाल पर हम चर्चा करेंगे"। तो विंध्याचल अगस्त्य मुनि के वापस आने की राह देखते हुए, वहीं, उसी झुकी हुई मुद्रा में, वैसे ही रह गये। पर, अगस्त्य कभी वापस आये ही नहीं। जब उन्हें वापस, उत्तर की ओर जाना था तो वे दूसरे रास्ते से, जगन्नाथ पुरी होते हुए गये जिससे विंध्याचल की तरफ से जाना टाला जा सके और विंध्याचल ऐसा ही झुका हुआ रहे। विंध्याचल छोटा है, क्योंकि वो झुक गया था। हिमालय ज्यादा ऊँचा है, क्योंकि वो खड़ा है और अभी भी बढ़ रहा है।

#4. अगस्त्य मुनि ने सुगंधित फूलों का पेड़ लगाया

कर्नाटका के बी आर हिल्स या बेल्लीगिरी रंगनाबेट्टा में एक जगह है जहाँ सम्पिगे का पेड़ है, जिसे हम चंपा के नाम से जानते हैं। ये बहुत ही सुगंधित, खुशबूदार फूल है। कहा जाता है कि इस पेड़ को 6000 साल पहले अगस्त्य मुनि ने यहाँ लगाया था। निश्चित रूप से ये बहुत ही ज्यादा पुराना है। इस पेड़ की डालियों की आपस में गाँठें पड़ गयी हैं और दूसरे पेड़ों की तुलना में ये बहुत ज्यादा पुराना लगता है। इस पेड़ को यहाँ डोडा सम्पिगे कहा जाता है, जिसका मतलब है बड़ा सम्पिगे।

#5. अगस्त्य मुनि ने कावेरी में भव्य नट्टत्रीश्वर मंदिर बनाया

नट्टत्रीश्वर मंदिर नाम का एक अद्भुत मंदिर कावेरी नदी के प्रवाह के ठीक बीच में आये हुए एक द्वीप में है। नदी जहाँ से शुरू होती है, उस तल कावेरी से लेकर समुद्र में मिलने के मार्ग के बीचोबीच मौजूद इस द्वीप को कावेरी की नाभी के रूप में देखा जाता है। ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर के लिंग को अगस्त्य मुनि ने 6000 साल से भी पहले यहाँ प्राण-प्रतिष्ठित किया था। ये लिंग बालू और उस समय में मिलने वाले कुछ खास पारंपरिक पदार्थों के मिश्रण से बनाया गया है।

भौतिक रूप से ये लिंग अभी भी वैसा ही है और ऊर्जा की दृष्टि से विस्फोटक है। हालांकि ये 6000 साल से भी ज्यादा पुराना है, पर ऐसा महसूस होता है जैसे इसे कल ही प्राण-प्रतिष्ठित किया गया हो। सामान्य रूप से ये माना जाता है कि अगस्त्य मुनि ने अपना सूक्ष्म शरीर और अपनी उर्जायें इसी स्थान पर छोड़े थे। ये कहा जाता है कि उन्होंने अपना मानसिक शरीर या मनोमय कोष मदुरै के पास चतुरगिरी पर्वत पर छोड़ा और फिर वे, कार्तिकेय की मदद से, अपने भौतिक शरीर को कैलाश पर ले गये, जहाँ शिव थे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपना भौतिक शरीर छोड़ा। ये सब, निश्चित ही, बहुत भव्य ढंग का काम था।

अगस्त्य कावेरी को कई तरह से एक जीवित शरीर की तरह मानते थे, और उन्होंने उसका नाभी केंद्र नट्टत्रीश्वर में इस तरह स्थापित किया कि ऊपर और नीचे, दोनों तरफ, ऊर्जा का प्रवाह सही ढंग से हो। हमारी भारत भूमि की संस्कृति का ये महत्वपूर्ण पहलू है कि टिके रहना और संपन्नता पाना ये जीवन के उद्देश्य नहीं हैं, ये तो बस परिणाम हैं। जीवन का उद्देश्य हमेशा ही मनुष्य का खिलना, पूर्णता को पाना रहा है। बहुत से महान जीवों ने अपनी ऊर्जाओं का इस तरह, खास ढंग से, निवेश किया जिससे मनुष्य का विकास हो, और उसे व्यक्तिगत स्तर पर पूर्णता पाने में सहायता मिले। उन्होंने जरूरी ऊर्जा प्रणालियाँ बनायीं और हर चीज़ को उसके लिये एक संभावना बनाया, नदियों को भी।

#6. अगस्त्य मुनि ने एक गुप्त मंदिर को प्राण-प्रतिष्ठित किया

काशी सभी पवित्र शहरों में सबसे ज्यादा पवित्र है और ज्ञान पाने का सबसे पुराना स्थान है। ये वो जगह है जहाँ किसी समय पर सैंकड़ों आत्मज्ञानी रहते थे। आप किसी भी गली में जायें, कोई न कोई आत्मज्ञानी मिल ही जाता था। लेकिन एक और काशी है(उत्तर में, हिमालय की श्रृंखलाओं में) जिसे गुप्तकाशी कहते हैं। वो लोगों के लिये अज्ञात थी। किसी को उसके बारे में पता न था। हमारे लिये गुप्तकाशी का खास महत्व इसलिये है क्योंकि लगभग 75 साल पहले, ध्यानलिंग स्थापना की तैयारी का काम वहीं शुरू हुआ था। वहाँ का मंदिर बहुत विचित्र है पर अपने आप में बहुत सुंदर है!

गुप्तकाशी वो जगह है जहाँ अगस्त्य मुनि रहे थे और काफी घूमे थे। या तो अगस्त्य ने ही, या फिर, उनके जैसे और किसी ने इस मंदिर के लिंग को प्राणप्रतिष्ठित किया था। ये लिंग जिस तरह से बना हुआ है वो अगस्त्य के काम करने के तरीकों से बहुत मिलता जुलता है, जो कि शुद्ध क्रिया है। कोई मंत्र नहीं, कोई तंत्र नहीं, दूसरी कोई चीज़ें भी नहीं! शत प्रतिशत ऊर्जा काम। मैं भी उसी तरह का हूँ। मैं सिर्फ यही चीज़ जानता हूँ और बस ऊर्जा के आधार पर जीवन को एक आयाम से दूसरे आयाम में बदल सकता हूँ।