प्रश्न : धूप या अगरबत्ती जलाने का क्या महत्व है, और आज के समय में क्या ऐसा किया जाना चाहिये?

सदगुरु : कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जो जलने पर सुगंध देते हैं और हमारी नाक को सुखद अनुभव मिलता है। पर, वास्तव में, धूप या अगरबत्ती वातावरण को शुद्ध करने के लिये है, हमें सुगंध देने के लिये नहीं। एक पहलू ये है कि इसकी गंध फैलती है, खास तौर पर कमरों में, दरवाजों के अंदर! कमरे के आकार और नाप के हिसाब से अलग-अलग जगहों पर अलग अलग ढंग की ऊर्जा संरचनायें होती हैं - और यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में, हमारे रहने के कमरों के आकार और नाप पर खास ध्यान दिया जाता है। अगर कोई कमरा बहुत ज्यादा हवादार हो, दो दीवारें खुली हुई हों तो ये लगभग बाहर की खुली जगह जैसा ही होगा। पर वो अलग बात है। ज्यादातर घर ऐसे नहीं बनते। आप बहुत ज्यादा खिड़कियाँ खुली नहीं रख सकते क्योंकि आपके पड़ोसी भी हैं, घरों में एसी भी लगे होते हैं और मौसम का ख्याल भी रखना पड़ता है। अलग-अलग तरह के आकारों और नाप की वजह से अलग अलग तरह की ऊर्जा संरचनायें बनती हैं। अगर ये संरचनायें बहुत शक्तिशाली हों तो इनका असर आपकी भावनात्मक और मानसिक दशा पर भी होता है। ये असर फायदेमंद भी हो सकता है या आप जो कुछ बनना/ करना चाहते हैं, उसमें बाधा भी दे सकता है। 

संब्रानी का क्या महत्व है  

एक पदार्थ होता है, जिसे सम्ब्रानी (लोबान) कहते हैं और ये एक बहुत ही शक्तिशाली पदार्थ होता है। लोग शुभ कार्यों में लोबान जलाते हैंबीमार पड़ने पर इसे जलाते हैं। यह देखा गया है कि लोबान जलाने से वहाँ की हवा में, ज़मीन या फर्श और दूसरी सतहों पर रहने वाले कीटाणु मर जाते हैं। 

खास तौर पर अगर परिवार में कोई मृत्यु हुई हो तो बारह दिनों तक लोबान जलाया जाता है क्योंकि ये हवा को पूरी तरह से शुद्ध कर देता है
 

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सम्ब्रानी कुछ खास पेड़ों से टपकने वाला द्रव पदार्थ होता है। आप जंगलों में ऐसे बड़े बड़े पेड़ देखेंगे जहाँ लोग इस सम्ब्रानी को इकट्ठा करने के लिये पेड़ों के तनों में ही काट कर जगह बना लेते हैं। बाहर से पेड़ ठोस दिखते हैं पर, उनके अंदर खोखली जगहें होती हैं जिनमें ये द्रव टपकता है। इस द्रव के टपकने के प्राकृतिक कारण क्या हैं ये मैं नहीं जानता, पर लोग इसे इकट्ठा करते हैं। ये मिलता कम मात्रा में है, और कीमती होता है। इसे अच्छी मात्रा में पाने के लिये लोगों को मीलों तक चलना पड़ता है, क्योंकि इन पेड़ों का लंबी उम्र वाला, पूरी तरह से विकसित होना ज़रूरी है। ये कम से कम 30 से 50 साल की उम्र के होने चाहियें नहीं तो ये पदार्थ नहीं मिलता। 

वातावरण पर सम्ब्रानी का शक्तिशाली असर होता है। इसमें सुगंध होना ज़रूरी नहीं है, पर ये हवा को शुद्ध कर देता है, और वातावरण को खुशनुमा बनाता है। अगर आप घर के अंदर हल्का सम्ब्रानी भी जलायें तो ये आपको बाहर की खुली हवा में होने का अहसास करायेगा, किसी एकदम खुली जगह जैसा, जहाँ कोई भवन निर्माण न हो। खास तौर पर, अगर घर में मृत्यु हुई हो तो बारह दिनों तक लोबान जलाया जाता है, क्योंकि ये हवा को पूरी तरह से शुद्ध कर देता है। 

सदगुरु का पहला 'आध्यात्मिक' मेला 

इन सूक्ष्मतर पहलुओं के बारे में बात करने में मैं थोड़ा डरता हूँ क्योंकि पहले से ही, आज के ‘नये समय’ की बहुत सारी चीजें चारों ओर चल रही हैं। मैं जब पहली बार अमेरिका के नैशविल में आया तो किसी ने मुझे बताया, "सदगुरु, यहाँ एक 'आध्यात्मिक मेला' चल रहा है"!

मैंने कहा, "क्या? आध्यात्मिक मेला? भारत में भी ये 12 साल में 1 बार होता है"। 

वे बोले, "नहीं, यहाँ हर साल होता है"। 

मैंने कहा, "मैं देखना चाहूँगा"। 

वे बोले, "ठीक है, चलिये"। फिर, दोपहर को वे मुझे लेने आये और बोले, " सदगुरु, हमने आपके लिये कुछ समय ले लिया है, जिसमें आप मेले में बोल सकेंगे"।  

मैंने कहा, "बहुत अच्छा"। मैं वहाँ गया। बहुत बड़ा तंबू लगा था, और जब हम पहुँचे तब जोर शोर से ग्रामीण संगीत चल रहा था। खैर, वो ऐसे ही लोग थे जिन्हें पैसा दे कर कोई बुलाता नहीं होगा। मुझे लगा कि थोड़े बेहतर लोग शाम को आते होंगे। दोपहर को मंच खाली रहता था, और कोई भी आ कर वहाँ की व्यवस्था का फायदा ले सकता था। तो, वे जोर से शोरगुल कर रहे थे। मैंने कहा, "ओह, तो ये है आध्यात्मिक मेला! पर ठीक है। संगीत तो एक सांस्कृतिक चीज़ ही है। चलो, हम आध्यात्मिक मेले पर ध्यान दें"!! 

मैं अंदर गया। कोई 'आध्यात्मिक' नहाने का साबुन बेच रहा था, तो कोई कुछ और 'आध्यात्मिक' चीज़। कुछ लोग आध्यात्मिक कंकड़ पत्थर बेच रहे थे जो वे किसी 'आध्यात्मिक' जगह से उठा लाये थे। वे कई तरह के अनोखे, अजीब से धूप पदार्थ भी बेच रहे थे। तो मैंने सोचा, "अच्छा, ये सब भारतीय हाट की तरह के हैं। यहाँ हर तरह की अनोखी चीज़ें बेची जा रहीं हैं। हो सकता है कि कोई मुड़ी हुई जड़ का टुकड़ा भी हो जो आपको अदृश्य बना दे। वो बता सकते हैं कि आपको इस जड़ को किसी मादा व्हेल मछली के बायें जबड़े की हड्डी के टुकड़े के साथ पीसना होगा, और वो व्हेल मछली जिंदा ही होनी चाहिये। मतलब ये कि कोई वहाँ तैर कर जाये, व्हेल के जबड़े का टुकड़ा काट कर ले आये। फिर अगर आप इन दोनों चीजों को एक खास मंत्र बोलते हुए पीसें, और उस पेस्ट को अपनी ऊपरी स्वाद ग्रंथि में लगा लें तो आप अदृश्य हो जायेंगे..... (हा हा हा)। वैसे तो आप अगर व्हेल मछली के मुँह में जायेंगे, तो भी अदृश्य ही हो जायेंगे! 

तो, धूप/अगरबत्ती का एक खास असर होता है, पर इसे बहुत ज्यादा न जलाएं। ये न सोचें कि ये आपको आध्यात्मिक बना देगी। ये वातावरण को थोड़ा बहुत बदल सकती है पर आप इसके पीछे ज्यादा न पड़ें। 

रासायनिक धूप के खतरे 

हम धूप को समझदारी के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। पर आजकल धूप को रासायनिक पदार्थों से बनाया जा रहा है। वैसे ही, गलियों बाज़ारों में, उद्योगों कारखानों में, जहाँ आप काम करते हैं, सब तरफ, बहुत सारे रसायन फैले हुए हैं। कम से कम रसायनों से बनीं धूप या अगरबत्ती को अपने घर के अंदर मत जलाइये, क्योंकि मुझे लगता है कि बाजार में आजकल जो धूप या अगरबत्तियां मिल रहीं हैं, उनमें 80% रासायनिक हैं, प्राकृतिक नहीं! इसे घर में जलाने से पहले अच्छी तरह देख, परख लीजिये क्योंकि अगर आप इसे बंद स्थान में जलाते हैं तो इसका नकारात्मक असर बहुत ज्यादा होगा। धूप या अगरबत्ती को प्राकृतिक द्रव पदार्थों या कुछ और खास तेलों या जड़ी बूटियों से बना हुआ होना चाहिये। ये थोड़ा  फायदा करेंगीं। अगर आपको इस तरह के फायदे की ज़रूरत है, तो ये मदद करेंगीं। 

 संपादकीय टिप्पणी : बहुत सारी सुगंधों में, शुद्ध और जड़ी बूटियों से बनी जैविक अगरबत्तियां और कोन्स 'ईशा लाइफ' में मिलती हैं।