हमारे देश में आध्यात्मिकता और संगीत अभिन्न थे। मैं  सद्‌गुरु जी का बहुत आभारी हूं कि वह हमारी संस्कृति में उस चीज को वापस ला रहे हैं। पंडित शिव कुमार शर्मा

यक्ष - सप्‍ताह भर चलने वाला ईशा का अपना संगीत और नृत्य उत्सव है जो मुख्य रूप से भारत की शास्त्रीय कलाओं के अनूठेपन और विविधता को बचाए रखने और बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इस वर्ष यह रंग-बिरंगा त्यौहार  20 फरवरी को शुरू होने जा रहा है। चाहे आप इस वर्ष के श्रोताओं में शामिल होने की योजना बना चुके हों, या लाइव वेबस्ट्रीम देखने की सोच रहे हों, आप जरूर जानना चाहेंगे कि यक्ष की क्या सार्थकता और महत्व है ?

प्रस्तुत है, अलग-अलग अवसरों पर संगीत के विभिन्न आयामों पर सद्गुरु के विचार जिससे आप सहजता से समझ सकते हैं- यक्ष की आवश्यकता, सार्थकता और महत्व।

सद्‌गुरु:

भारतीय शास्त्रीय संगीत

जब आप युवा होते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आपका शरीर प्रमुख और प्रभावशाली होता है। जब मैं भी युवा था तो, हालांकि मेरे माता-पिता शास्त्रीय संगीत में काफी डूबे हुए थे, मैं उससे पूरी तरह नफरत करता था। मैं उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मुझे पाश्चात्य संगीत पसंद था। मैंने कभी शास्त्रीय संगीत सुनने की कोशिश भी नहीं की। जैसे ही वे शास्त्रीय संगीत बजाते, मैं कमरे से बाहर चला जाता।

लेकिन जैसे ही मैंने ध्यान करना शुरू किया, अचानक से शास्त्रीय संगीत ही मेरे लिए संगीत बन गया। जिस संगीत को मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता था, जैसे ही मैं शांत हुआ, अचानक से मुझे वह सुनने की इच्छा होने लगी। जब मैं अपने भीतर शांत हो गया, तो ध्वनि को लेकर मेरा पूरा नजरिया ही बदल गया। अचानक भारतीय शास्त्रीय संगीत मेरे लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया कि वह जहां भी बज रहा होता, मैं एक भिक्षुक की तरह उसे सुनने के लिए वहां पहुंच जाता। बाकी सारा संगीत मेरे मन से उतर गया। शास्त्रीय संगीत में, ध्वनि के सही उच्चारण और ध्यान के बीच बहुत गहरा संबंध होता है।

ध्वनि के साथ एकाकार

जब आप शास्त्रीय संगीत सुनते हैं, तो आप सिर्फ संगीत नहीं सुन रहे होते हैं, आप स्वयं संगीत बन जाते हैं। अगर आप खुद संगीत बन जाते हैं, तो मृदंग मृदंग नहीं रहता, तार तार नहीं रहता, आवाज़ सिर्फ एक आवाज़ नहीं रहती, क्योंकि जिसे आप ध्वनि या ध्वनियों की एक खास व्यवस्था कहते हैं, वह अस्तित्व के ब्लूप्रिंट की तरह होता है।

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शरीर की लय सिर्फ हृदय की धड़कन में नहीं होती। शरीर के हर रेशे की अपनी धुन है। इसलिए संगीत को सिर्फ सुनें, सराहें नहीं। सृष्टि के प्रकट होने की प्रक्रिया में, ध्वनि और रूप संगी हैं, पड़ोसी हैं।

 

शरीर की लय सिर्फ हृदय की धड़कन में नहीं होती। शरीर के हर रेशे की अपनी धुन है। इसलिए संगीत को सिर्फ सुनें, सराहें नहीं। सृष्टि के प्रकट होने की प्रक्रिया में, ध्वनि और रूप संगी हैं, पड़ोसी हैं। कहा जाता है कि आपको अपने पड़ोसी से प्रेम करना चाहिए। प्रेम का अर्थ है, किसी चीज के साथ घुलना-मिलना। आपको ध्वनि को सुनना नहीं, उसके साथ घुलना-मिलना चाहिए क्योंकि ध्वनि और आपका भौतिक रूप दो अलग-अलग चीजें नहीं हैं।

शांति का एक माध्यम

मैं चाहता हूं कि आप इसे आजमा कर देखें, इसके लिए आपको संगीतकार होने की जरूरत नहीं है। बस अपनी पूरी ताकत से, पूरी तीव्रता के साथ चिल्लाएं। आप देखेंगे कि जिस पल आप चुप होते हैं, आपके भीतर एक पल के लिए एक अजीब सी शांति होती है, फिर वह चली जाती है। लेकिन अगर आप सिर्फ चीखते हैं, तो आप देखेंगे कि आपके भीतर सब कुछ एक-सीध में हो गया है।

तो शास्त्रीय कलाओं का उद्देश्य मनुष्य के भीतर यह शांति लाना है। पूर्ण शांति! उसके बिना, कोई कला नहीं है। असली कला शांति के बिना नहीं हो सकती।

कला सिर्फ मनोरंजन ही नहीं है

कोई कला श्रोताओं या दर्शकों के बिना जीवित नहीं रह सकती। यह बहुत जरूरी है कि आप उन लोगों के प्रति कुछ प्रेम का प्रदर्शन करें जो आपको सुनने के लिए आए हैं। उनसे बात करें, उन्हें समझाएं कि आप क्या गाने जा रहे हैं, उन्हें शामिल करते हुए गाएं।

इस दुनिया में संगीत के कारण जितने लोग खुशी के आंसू और भावनाओं की प्रबलता में बह जाते हैं, उतने किसी और साधन से नहीं होते। अस्तित्व के अलग-अलग रूपों और मानव स्वर से उत्पन्न होने वाली अलग-अलग ध्वनियों का यदि आप सही समीकरण उत्पन्‍न कर सकें, यानी अगर आप रूप और ध्वनि में सही ताल-मेल बिठा सकें तो आप सृष्टि से परे जाकर सृष्टि के स्रोत को छू सकते हैं। इसलिए संगीत ईश्‍वर या दिव्यता को छूने का एक सशक्‍त साधन है। जाने या अनजाने में इसे कई रूपों में इस्तेमाल किया गया है। लेकिन अधिकांश समय वह सृष्टि की एक चाभी के रूप में नहीं, बल्कि सिर्फ मनोरंजन के एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आखिरकार, जब एक आदमी किसी गतिविधि में खुद को शामिल करता है, तो उसके मन में कहीं न कहीं यह उम्मीद होती है कि वह गतिविधि उसे जीवन का एक बड़ा हिस्सा देने वाली है।

यदि आप एक खास ध्वनि सुनते हैं, तो आप प्रेम से सराबोर हो जाते हैं, एक खास ध्वनि सुनकर आप खुशी से भर जाते हैं और एक खास ध्वनि सुनकर आप क्रोधित हो जाते हैं। ऐसा होता है। ध्वनियां सिर्फ भावनाएं नहीं उत्पन्न करतीं, वे आपके शरीर का रसायन ही बदल देती हैं। इसलिए आप जिस तरह की आवाजों के बीच रहते हैं, और जिस तरह की ध्वनियां आप पैदा करते हैं, वह आपके ऊपर कई तरह से असर करती हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत ने गणितीय शुद्धता की हद तक यह पहचाना है कि कौन सी ध्वनि क्या असर कर सकती है। संगीत के ऐसे बहुत से दिग्गज हुए हैं, जो इस बात का अनुभव कर चुके हैं।

कलाकारों की भूमिका

हम साल में एक बार यह संगीत-उत्सव ‘यक्ष’ आयोजित करते हैं। इसमें हम देश भर के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों को आमंत्रित करते हैं। एक बार यदि आप पिछली पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों को देखें, तो उसके बाद के संगीतकातों में ऐसे बहुत नहीं मिलेंगे जिनमें संगीत की वैसी गहराई हो। अधिकतर तो व्यावसायिक कलाओं में चले गए हैं। ऐसे बहुत कम लोग हैं जो अपना जीवन और समय एक खास कला-रूप विकसित करने में लगाना चाहते हैं।

इसके साथ ही, मौजूदा शास्त्रीय संगीतकारों, नर्तकों और अन्य कलाकारों को समझना चाहिए कि उन्हें संगीत और कला रूपों को आम लोगों के लिए सहज बनाना होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप देश में होने वाले किसी संगीत समारोह में जाएं, तो संगीतकार बस आकर बैठ जाते हैं, कुछ-कुछ गाते हैं और चले जाते हैं। यह सही तरीका नहीं है।

आपको लोगों को इस कला का प्रेमी बनाना होगा। कोई कला श्रोताओं या दर्शकों के बिना जीवित नहीं रह सकती। यह बहुत जरूरी है कि आप उन लोगों के प्रति कुछ प्रेम का प्रदर्शन करें जो आपको सुनने के लिए आए हैं। उनसे बात करें, उन्हें समझाएं कि आप क्या गाने जा रहे हैं, उन्हें शामिल करते हुए गाएं। यह सिर्फ आपके लिए नहीं है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि कलाकार भी बहुत ऊंचाई पर बैठकर लोगों के लिए न गाएं। उन्हें लोगों तक पहुंचना होगा और इस तरह गाना होगा कि लोग समझ सकें। इसके लिए कला से समझौता करने की जरूरत नहीं होती। ऐसा करना संभव है।

इस संगीत उत्सव में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार आकर डेढ़ घंटे तक गाएंगे। हम ऐसा अवसर भी प्रदान कर रहे हैं जहां उभरते कलाकार भी आकर लगभग 20 मिनट तक गाएं।

संपादक की टिप्पणी: इस वर्ष ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि महोत्‍सव 27 फरवरी को मनाया जा रहा है। सद्‌गुरु के साथ रात भर चलने जाने वाले इस उत्सव में सद्‌गुरु के प्रवचन और शक्तिशाली ध्यान प्रक्रियाओं के साथ-साथ पंडित जसराज जैसे कलाकारों के भव्‍य संगीत कार्यक्रम भी होंगे। आस्‍था चैनल पर सीधे प्रसारण का आनंद लें शाम 6 बजे से सुबह सुबह 6 बजे तक।

शिव को पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए ईशा एक ऑनलाइन ’थंडरक्‍लैप’ अभियान शुरू कर रहा है। यदि आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं और महाशिवरात्रि के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते हैं, तो हमारे साथ शामिल हों। इसके लिए आपको सिर्फ एक ट्वीट करना होगा। (फेसबुक संदेश भी निमंत्रण का काम करते हैं!)

Pt. Shivkumar Sharma, from Wikipedia