लेख : जनवरी 19, 2020

32 देशों से 800 से भी ज्यादा प्रतिभागी अपने आंतरिक परिवर्तन के लिये ईशा योग सेंटर के प्राणप्रतिष्ठित स्थान में आते हैं।.

साधनापद के प्रतिभागी जीवन के सभी क्षेत्रों से आते हैं, और हर उम्र के होते हैं, खास तौर से ये वे लोग हैं जिन्होंने पहले ही समाज द्वारा तय किए गये मापदंडों के अनुसार सफलता प्राप्त की हुई है। कई वर्षों की शिक्षा के बाद ये लोग अपने सफल पेशे व कारोबार बना चुके हैं, इनके पास बढ़िया जीवन जीने के लिये पर्याप्त धन है और बहुत सारे विकल्प भी, अपने स्वयं के घर हैं, परिवार एवं अपने समुदायों के साथ मजबूत संबंध हैं, शादी हो गयी है, बच्चे हैं, पर इस सब के बावजूद भी उन्हें वह संतोष नहीं मिला है जिसके सपने समाज ने उन्हें दिखाये थे। बहुत से लोगों को यह समझ आने लगा था कि सफलता की जो व्याख्या समाज करता है, वह बहुत बढ़ा-चढ़ा कर की जाती है। लेकिन क्या तृप्ति पाने का वास्तव में कोई दूसरा तरीका है?

isha-blog-article-life-in-sadhanapada-fulfillment-beyond-survival-rat-race-angamardhana

साधनापद में शामिल होने के मार्ग में क्या कोई रुकावटें हैं?

isha-blog-article-life-in-sadhanapada-fulfillment-beyond-survival-rat-race-play

“"आई टी (सूचना तकनीकी) क्षेत्र में 20 साल काम करने के बाद मैंने पिछले वर्ष अपनी नौकरी छोड़ दी थी, और अपना समय मैं भारत में घूमने, पहाड़ों पर चढ़ने, किताबें पढ़ने, संगीत सीखने तथा वह सब करने में बिता रही थी, जो इतने समय तक मैं नहीं कर पाई थी। इस कार्यक्रम के बारे में मुझे बहुत कुतूहल था और जब मुझे इसके बारे में ज्यादा जानकारी मिली तो मुझे लगा कि मैंने अपने काम से जो लंबा अवकाश लिया था उसकी पूर्णता के लिए इससे ज्यादा बेहतर तरीका कोई और नहीं हो सकता था। मैंने हर चीज़ की बहुत ध्यानपूर्वक योजना बनाई - परिवार, पैसा, कामकाज - हर चीज़ को थोड़े समय के लिये रोकना, और साधनापद में स्वयं को आगे बढ़ाना, मेरे लिये काफ़ी सुगम रहा।" - रश्मि विजयकुमार, 43, मुम्बई, आई टी प्रोफ़ेशनल

"मुझे अपने बड़े भाई को समझाना पड़ा। उनकी सलाह ये थी कि इतने लंबे समय के लिये सब कुछ छोड़ कर जाना ठीक नहीं होगा। वे चाहते थे कि मैं अपनी नयी नौकरी करूँ जो मुझे दो वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद मिली थी। मैंने उनसे कहा कि वो चिंता न करें, मैं ठीक रहूँगी। जैसे जैसे समय बीतता गया, मैं उनको अपनी दिनचर्या के बारे में बताती थी कि यहाँ कैसा चल रहा है, मेरा वॉलिंटियरिंग का काम, रोज की सामान्य बातें, उत्सव मनाना, आदि। धीरे धीरे, मेरे यहाँ होने का विरोध कम होने लगा और उन्होंने इस सब को स्वीकार कर लिया"।  - रुपाली चौधरी, 31, दिल्ली

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

आपके साधनापद में आने से क्या आप का परिवार खुश था?

"मुझे याद है, मेरा बेटा मुझसे अक्सर पूछता था, "आप कंप्यूटर पर इतना समय क्यों बिताते हैं जबकि मुझे इसकी इजाजत नहीं मिलती?" जब साधनापद जाने की बात आयी तो उसने बहुत खुशी व्यक्त की और बोला, "पापा, आप ईशा जाईये और एक लंबी छुट्टी मनाईये"। सदगुरु की कृपा और इस सब में मेरे परिवार का सहयोग अब तक आशीर्वाद स्वरूप ही रहा है। मेरी पत्नी तो वास्तविक रूप से सहयोगी रही है क्योंकि उसने मुझे एक बेहतर उद्देश्य के लिये काम करने में सहयोग दिया। उसे आशा है कि वह मुझे एक नये रूप में देखेगी।" - विनायक गायकवाड़, 37, पुणे, लेखक

"मैं अपने परिवार से काफी जुड़ा हुआ हूँ, विशेष रूप से अपनी डेढ़ साल की बेटी के साथ। तो उन सब को 7 महीनों के लिये छोड़ कर आना बहुत मुश्किल था। शुरुआत में मुझे परिवार का थोड़ा प्रतिरोध भी सहना पड़ा पर जब उन्होंने देखा कि मैं अपने आप को बेहतर बनाने के लिये कृतसंकल्प हूँ तो वे मुझे सहयोग देने के लिये तैयार हो गये। मेरी पत्नी विशेष रूप से अत्यंत सहयोगी रही है।" - विशाल कापड़िया, 32, गुजरात, कपड़ा व्यापारी  

साधना : आंतरिक प्रकृति की गहरी तृप्ति को पाना

isha-blog-article-life-in-sadhanapada-fulfillment-beyond-survival-rat-race-meditation-3

"मैं जब साधनापद में आयी तो मैं अपने अंदर की सीमाओं और प्रतिरोधों के बारे में अनजान थी। अब इसने मुझे कई स्तरों पर समृद्ध और विनम्र बना दिया है। मुझे जो भी लगता था कि इसके बारे में मैं बहुत जानती हूँ, वह सब ग़लत था। अब मैं हर परिस्थिति की वास्तविकता को देख सकती हूँ, और हर तरह की परिस्थिति में रह सकती हूँ, और सीख सकती हूँ।

सभी तरह के लोगों के साथ रहने और काम करने से, अपने मन को व्यवस्थित करना सीखने से और लोगों के मन के साथ एक लय में होने से, दैनिक कार्यक्रमों तथा बदलती प्राथमिकताओं का प्रबंधन करने से, और बहुत सारी अनपेक्षित परिस्थितियों का सामना करने से मुझे ये समझ में आया है कि मेरे पास हर चीज़ में खुश हो कर या दुःखी हो कर निकलने का विकल्प है, और हर दिन, बार बार, वो विकल्प चुनने का अवसर भी मिलता है"। - नैथिली लोलो मिनांगा, 34, कनाडा, आई टी प्रोफेशनल

"हर दिन अपने ही बारे में एक नयी खोज है। मैं अब अपने आप में ज्यादा संतुलन पाती हूँ। बाहर चाहे कुछ भी हो रहा हो, अंदर कुछ ठीक चल रहा है। मुझे कुछ परेशानी भी हो तो भी मैं कहीं न कहीं आनंदमय रहती हूँ। अब मैं दुनिया के प्रति ज्यादा खुली हुई, स्पष्ट, ज्यादा स्वतंत्र महसूस करती हूँ। मैं हमेशा ऐसी ही होना चाहती थी, जैसी कि मैं अब हूँ"। - धनुप्रिया, 31, दिल्ली, कारोबारी सलाहकार

"मैंने यह अपेक्षा नहीं की थी कि इस यात्रा में मेरा ख्याल एक शिशु साधक की तरह रखा जायेगा। हर कदम पर वे हमारा हाथ थामे रहते थे, हमारे आँसू पोंछते थे, हमारे डर को शान्त करते थे, और धीरे-धीरे पर मजबूती से यह सुनिश्चित करते थे कि हम मार्ग पर बने रहें। यद्यपि, अधिकांश समय मैं कार्यक्रम के उद्देश्य के साथ जुड़ी ही रहती थी, पर मुझे यह देख कर आश्चर्य होता था कि कई बार मेरे अंदर काफी प्रतिरोध होते थे। अपने जिस रूप से मैं डरती थी, उसी का सामना मुझे करना पड़ता था।

आश्रम के बाहर मैं अपने आप को किस तरह से देखती थी, उसे एक किनारे पर रखते हुए और हर क्षण में जो ज़रूरी है वही करना, ये सबसे बड़ी चुनौती थी, यही सबसे बड़ा पाठ था जो मैंने सीखा। मुझे लगता है कि धरती के हर मनुष्य को ये कार्यक्रम करना चाहिये। ये पूर्ण रूप से आप को तैयार करने के लिये ही है। संतुलन एवं स्पष्टता मुख्य मुद्दे हैं, पर ये पूरा कार्यक्रम इस तरह से तैयार किया गया है कि आप वही पुराने व्यक्ति नहीं रह सकते। आप के अंदर का जो मूल है, वह हिलेगा, टूटेगा, और आप अपने ही एक नये रूप को पायेंगे"। – रश्मि विजयकुमार, 43, मुम्बई, आई टी प्रोफेशनल

सेवा - स्वयं को अर्पण कर के विकसित होने की प्रक्रिया

isha-blog-article-life-in-sadhanapada-fulfillment-beyond-survival-rat-race-seva

"साधनापद ने मुझे ऐसा स्थान दिया जहाँ मैं अपने आप को पूर्ण रूप से शामिल कर सका। अब, जब मुझे लगता है कि मैं दूसरों की खुशहाली के लिये कुछ अर्पण कर रहा हूँ तो मेरी उत्पादकता बिना प्रयत्न किये ही बढ़ जाती है। मैं हमेशा इसे अपने मन में रखता हूँ। इससे मुझे ज्यादा कार्यरत, सुखद और आनंदमय रहने में मदद मिलती है"। - अयप्पन ए., 38, चेन्नई, आई टी प्रोफेशनल

"मैं एक बात जानती हूँ कि मैं अपना शत प्रतिशत देती हूँ। मेहमानों की देखभाल वाले विभाग में मैं मेहमानों का मार्गदर्शन करने में उत्साह से भरी हुई थी। एक पूरी तरह से अनजान व्यक्ति को और कभी कभी तो अनजाने लोगों के एक पूरे समूह को नमस्कारम करना मेरे लिये बहुत ही स्वाभविक रूप से होता है। मुझे लगता है कि ये स्थान ही ऐसा है जो आप को इस बात के लिये तैयार और खुले दिल वाला कर देता है कि जो भी आप के सामने आये, उसे करो। - रुपाली चौधरी, 31, दिल्ली

isha-blog-article-life-in-sadhanapada-fulfillment-beyond-survival-rat-race-work-2

"यहाँ मैंने ई-मीडिया की ई-मेल मार्केटिंग टीम में काम किया जिसने मुझे लोगों तक पहुँचने और सारी दुनिया में ईशा के बारे में बताने का बहुत बड़ा अवसर प्रदान किया। 'कावेरी पुकारे' धन संग्रह अभियान के माध्यम से मैं लोगों में अपनी मृत होती नदियों के बारे में जागरूकता ला सकी, और अपने परिवार तथा मित्रों को भी योगदान देने के लिये समझा सकी।

साथ ही, मैंने जो भी सेवा यहाँ की, वो पूरी भागीदारी के साथ की। लिंग सेवा के माध्यम से हम लोगों के ध्यानलिंग तथा आदियोगी पर आने को एक मंत्रमुग्ध अनुभव बना देते हैं। अन्न सेवा एक अद्भुत आनंद देती है जब हम साधनापद के अपने सह प्रतिभागियों को भोजन परोसते हैं। भाव स्पंदन कार्यक्रम में स्वयंसेवा अर्थात लोगों को अपनी आँखों के सामने परिवर्तित होते देखना। ये सभी अत्यंत विनम्र बना देने वाले अनुभव थे। मुझे लगता है कि आप स्वयं का उदाहरण दिखा कर ही नेतृत्व या लोगों को उत्साहित कर सकते हैं। तो जब मैं आश्रम छोड़ कर जाऊँगी, मुझे आशा है कि मुझमें जो भी बदलाव आया है, वो मेरे विचारों, कार्यों, मेरे शब्दों और मैं जैसी हूँ, उन सब में परिलक्षित होगा। और इसी तरह, मुझे यहाँ जो अमूल्य अनुभव मिला है, वो मैं समाज को वापस दूंगी"। – रश्मि विजयकुमार, 43, मुंबई, आई टी प्रोफेशनल

"मैं पहले दिन में 8-9 घंटे सोता था और फिर भी उठने पर थका हुआ महसूस करता था। अब, 4-5 घंटे भी पर्याप्त हैं। पहले कभी मैंने अपने आप को इतना ऊर्जावान नहीं पाया था। अचानक ऐसा लगने लगा है जैसे दिन में 30 घंटे होते हैं।" - विश्वराज अकुला, 33, तेलंगाना, पर्यावरणीय इंजीनियर

Editor’s Note: Registration are now open for Sadhanapada here.