ऐसा हो सकता है कि आप जितना सोच रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा पानी इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर लोग ब्रश करते समय नल को बंद करके या फिर सीधे पानी से नहाने की बजाय शावर लेकर पानी बचाने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग पानी बचाने के लिए अपनी कार को औरों की तुलना में कम बार धोते हैं या फिर ऐसे नल का इस्तेमाल करते हैं जिससे धीरे धीरे पानी निकलता हो।

यह सारी सावधानियां पर्यावरण के लिए तो मददगार हैं। लेकिन जो चीज लोग नहीं समझ पाते वह यह है कि वो कितनी ज्यादा मात्रा में अप्रत्यक्ष रूप से पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, आपने जितना पानी पूरे एक हफ्ते में बचाया उतना पानी मात्र एक दो चॉकलेट खाने पर ही खर्च हो जाता है क्योंकि 1 किलो चॉकलेट बनाने के लिए 15000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है!

जल पदचिन्ह क्या है?

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इंसान घर से लेकर, खेती या फिर औद्योगिक स्तर पर सभी जगह अनगिनत तरीकों से पानी का इस्तेमाल करते हैं। हर चीज़ या सेवा जिसका हम उपयोग करते हैं, उसे पैदा करने के लिए एक निश्चित मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। तो जल पदचिन्ह, पानी की इसी खपत की ठीक-ठीक गणना करता है। जल पदचिन्ह को अलग अलग चीज़ों या सेवाओं जैसे कार, चावल आदि के लिए परिभाषित किया जा सकता है या फिर अलग-अलग इकाइयों जैसे संस्था,निगम, देश, नदी घाटी आदि के लिए। जल पदचिन्ह अलग-अलग व्यक्तियों के लिए भी परिभाषित किया जा सकता है। जिन भी चीज़ों या सेवाओं का कोई व्यक्ति उपयोग करता है, उनसे उसका एक जल पदचिन्ह होता है। अगर आप अपना जल पदचिन्ह जानते हैं तो आपको जिम्मेदारी से जीने के लिए बेहतर फैसले लेने में मदद मिलेगी, खास करके तब, जब भारत पानी के संकट से जूझ रहा है।

प्रत्यक्ष जल( विज़िबल वाटर) बनाम अप्रत्यक्ष जल( वर्चुअल वाटर

प्रतिदिन हम जितना पानी इस्तेमाल करते हैं उसका कुछ हिस्सा विजिबल वाटर यानि दिखाई देने वाला पानी होता है यानी कि वो हिस्सा, जो हम पीते हैं, नहाते हैं या कार, बर्तन या कपड़े धोने में इस्तेमाल करते हैं। जो कुछ भी हम खाते हैं या इस्तेमाल करते हैं, एक कप कॉफी से लेकर पूरे खाने तक, कपड़े जो हम पहनते हैं उनसे लेकर हमारे सेलफोन तक - सब कुछ बनाने में पानी की जरूरत पड़ती है। इसी को वर्चुअल वाटर यानि अप्रत्यक्ष जल कहते हैं। हो सकता है कि हम वर्चुअल वाटर का इस्तेमाल सीधे तौर पर ना कर रहे हो, लेकिन कहीं ना कहीं इन चीजों को बनाने में पानी का इस्तेमाल हुआ है।

फल अनाज और मांस के जल पदचिन्ह

जो कुछ भी हम खाते हैं उन सब के जल पदचिन्ह होते हैं। पत्ते वाले साग और अन्य सब्जियों का जल पदचिन्ह सबसे कम होता है। सलाद पत्ता (130 लीटर/किलो), गोभी (200 लीटर/किलो), कद्दू (240 लीटर/किलो), खीरा (240 लीटर/किलो) और आलू (250 लीटर/किलो) इन सभी को पैदा करने में बाकी सब्जियों की तुलना में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है।

फल जैसे कि संतरा (460 लीटर/किलो), सेब(700 लीटर/किलो), केला(860 लीटर/किलो) का जल पदचिन्ह थोड़ा सा ज्यादा होता है। अनाज का जल भजन थोड़ा और ज्यादा होता है जैसे मक्का (900 लीटर/किलो), गेहूं(1300 लीटर/किलो), चावल (3400 लीटर/किलो), चीनी (1500 लीटर/किलो) और मूंगफली (3100 लीटर/किलो)।

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Chart Courtesy : The Water Footprint of Food

मांस का पदचिन्ह सबसे ज्यादा होता है। क्योंकि मांस द्वितीय आहार हैं, इसका कारण यह है कि चिकन, सूअर और गाय खुद भोजन खाते हैं और उनके भोजन को बड़ा करने में पहले से ही भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है जैसे मक्का। तो इस वजह से पानी के संसाधनों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है। तभी आज वैज्ञानिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्बन और जल पदचिन्ह को कम करने के लिए, बीफ की खपत को कम करने की सलाह दे रहे हैं। एक परिवार डिनर में यदि मीट से बने पदार्थ खाता है तो आसानी से लगभग 1 किलो या उससे ज्यादा मीट की खपत हर रोज कर सकता है। chartoftheday_9483_how_thirsty_is_our_food_n

कुछ चीज़ें जो रोज इस्तेमाल हो रही हैं, जैसे चाकलेट, बियर, काफ़ी और शराब - ये भी जल पदचिन्ह पैदा करती हैं। उपभोगताओं को ये जरुर पता होना चाहिये की, सभी खाने की चीज़ों में, फल और सब्जियां सबसे ज्यादा अच्छा विकल्प हैं। ये सेहत के साथ साथ पानी को बचाने में भी सहायक हैं।

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दो नागरिकों की एक कहानी

आइए, आदर्श और मनीष के जीवन का 1 दिन देखते हैं। दोनों का जल पदचिन्ह अलग अलग है। और यह भी देखते हैं कि इन दोनों के व्यवहार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष (वर्चुअल वाटर) रूप से इस्तेमाल होने वाले पानी की मात्रा पर क्या फर्क पड़ता है।

आदर्श रईस लोगों की तरह रहने वाला है। उसके पास बहुत बड़ा घर है जो कि एक बड़े शहर के उपनगर में है। उसके इस बड़े से घर में बाथटब, पूल और तीन कारें हैं। वो बाथ टब में, दिन में दो बार नहाता है, जिसमें 300 लीटर पानी खर्च होता है। ब्रश करते समय नल को खुला छोड़ देता है, जिसमें 150 लीटर पानी खर्च होता है। उसकी तीनों कारों को धुलने में 300 लीटर तथा स्विमिंग पूल में 300 लीटर पानी रोजाना खर्च होता है। बर्तन धोने के लिए उसे 60 लीटर पानी और लान में पानी डालने के लिए 100 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। तो प्रत्यक्ष रूप से उसका जल पदचिन्ह 1000 लीटर/ प्रतिदिन है।

दूसरी तरफ मनीष एक अपार्टमेंट में रहता है और पानी के इस्तेमाल को लेकर बहुत सचेत है। वो बाल्टी मैं पानी भर के नहाता है जिसमें 40 लीटर पानी खर्च होता है और नल का इस्तेमाल कम से कम करता है जिसमें केवल 20 लीटर पानी खर्च होता है। उसके पास न तो कार है न ही पूल है। वह बर्तन हाथ से धोता है जिसमें केवल 40 लीटर पानी खर्च होता है। और वो अपने कपड़े हफ्ते में एक बार धोता है। तो इस तरह प्रत्यक्ष रूप से उस का जल पदचिन्ह लगभग 150 लीटर/दिन है।

लेकिन जब हम आदर्श और मनीष के वर्चुअल जल पदचिन्ह को देखते हैं तो एक अलग ही कहानी सामने आती है। आदर्श भले ही रईसों की तरह जीता है मगर स्वास्थ्य कारणों को लेकर वह शाकाहारी है। इस वजह से उसके खाने का जल पदचिन्ह मात्र 600 लीटर/दिन है। ज्यादा पैसा कमाने की वजह से कपड़े, घड़ी, फोन आदि चीजों को खरीदता है जिसमें की 2500 लीटर/ दिन और खर्च होता है। उसके बड़े से घर में इस्तेमाल होने वाली बिजली का जल पदचिन्ह 300 लीटर/ दिन है ये कुल मिलाकर 3400 लीटर/दिन हुआ। तो इस तरह से उसका वर्चुअल फुटप्रिंट, विजिबल फुटप्रिंट का दुगना है।

वहीँ मनीष रात और दोपहर के भोजन में मांस इत्यादि सभी प्रकार के भोजन का आनंद लेता है। दो बार मांस खाने का मतलब है कि उसके खाने का जल पदचिन्ह 3000 लीटर/ दिन है। उसकी बिजली में इस्तेमाल होने वाले पानी का जल पदचिन्ह 100 लीटर है, और उसके द्वारा खरीदी गई वस्तुओं का पदचिन्ह 1500 लीटर। तो इन सबको मिलाकर मनीष का वर्चुअल फुटप्रिंट 4600 लीटर हो जाता है।

इस तरह से मनीष का फुट प्रिंट 4750 लीटर/दिन होता है, जबकि आदर्श का, रईसों वाली जिंदगी जीने के बाद भी जल पदचिन्ह 4400 लीटर है। जबकि प्रत्यक्ष रूप से मनीष, आदर्श द्वारा इस्तेमाल किए गए कुल पानी का केवल ⅙ ही इस्तेमाल करता है।

मोटे अनाज - चावल का एक सही विकल्प

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व्यक्तिगत प्रयासों के अलावा, एक साथ पूरे देश को पानी के इस्तेमाल को कम करने के लिये कुछ कदम उठाने पड़ेंगे। जब भारत की नदियाँ ख़त्म होने के कगार पर हैं तो ऐसी स्तिथी में, देश में चावल की खेती करने की वर्तमान पद्धिति, देश के जल संसाधनों पर बोझ बन गयी है। सभी अनाजों में से चावल का जल पदचिन्ह सबसे बड़े पदचिन्हों में से एक है। चावल की लोकप्रियता कुछ पिछली सदी के आस पास से परवान चढ़ी है। चावल का निर्यात करने के मामले में भारत काफी आगे है। चावल एक ऐसी फसल है जो विश्व के हर कोने में उपयोग की जाती है। कभी चावल को अमीर लोगों का भोजन माना जाता था लेकिन अब ये घर घर में पाया जाता है। चावल की खेती उन देशो या क्षेत्रों के लिए अनुकूल होती है जहाँ पर मजदूरी की लागत कम हो और भारी वर्षा होती हो। ऐसा इसलिये है क्योंकि चावल की खेती के लिए बहुत ज्यादा शारीरक श्रम और पानी की जरुरत होती है। चावल भारत में सबसे ज्यादा पैदा होने वाले वाले अनाजों में से एक है, जिसकी वजह से जल संसाधनों पर भारी तनाव पड़ता है। 2_Top_10_countries_with_large_agri_employment

हालांकि, मोटे अनाज यानि मिलेट्स दक्षिण भारत में एक परंपरागत मुख्य आहार हैं। इनकी खेती के लिए कम शारीरिक श्रम और कम पानी की आवश्यकता होती है। पूरे विश्व में सबसे ज्यादा इन्हें भारत में खाया जाता है। मिलेट्स, प्रतिदिन खाए जाने वाले अनाजों में जैसे गेहूं और चावल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। ज्यादातर सभी मिलेट्स का जल पदचिन्ह चावल के जल पदचिन्ह के एक चौथाई से भी कम होता है।

सभी आठ प्रमुख मिलेट्स में चावल की तुलना में, कम कारबोहाइड्रेट, ज्यादा प्रोटीन, ज्यादा कैल्शियम और ज्यादा आयरन होता है। इसमें फायबर अधिक होने के साथ-साथ जरूरी खनिज भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। कुटकी मिलेट में चावल की तुलना में 13 गुना ज्यादा आयरन होता है। फॉक्स्टेल और प्रोसो मिलेट में प्रोटीन दुगना होता है। रागी (नाचनी) मिलेट में चावल की तुलना में 30 गुना ज्यादा कैल्शियम होता है और मात्र 600 लीटर/किलोग्राम पानी की आवश्यकता होती है। अगर देश में मिलेट्स को मुख्य आहार बना लिया जाए तो इसकी मदद से पानी की कमी को एक हद तक सुलझाया जा सकता है।

जब तक भारतीय अपने आहार में किसी बड़े बदलाव पर विचार नहीं करते तब तक सिंचाई के लिए पानी और भूजल की आपूर्ति पर भारी बोझ बना रहेगा। नहीं तो 1 दिन ऐसा आएगा कि जब भारत में पानी खत्म हो जाएगा और फिर आहार में बदलाव पसंद की बजाय मजबूरी बन जाएगा।

पेड़ - जल संग्रहण का स्त्रोत

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हमारे जल निकायों को सूखने से बचने के लिये, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी भूमि पर पर्याप्त मात्रा में पेड़ हों। जो पानी फसलों के लिए उपयोग किया जाता है और जो पानी नदियों में बहता है, समय के साथ उसकी मात्रा फिर से बधाई जा सकती है, अगर पूरे देश में पर्याप्त मात्रा में पेड़ लगायें जायें तो।

पानी, पेड़ों का पोषण करता है, और पेड़ ये सुनिश्चित करते हैं की उनके आस-पास की मिट्टी पानी का संग्रहण करे। जब बारिश होती है, तो जड़ें इस बात को सुनिश्चित करने का काम करती हैं कि पानी सतह से रिस रिस कर मिट्टी के अन्दर जाये। इस पानी के कई वर्षों तक रिस रिस के मिट्टी के नीचे जाने की वजह से जमीन के नीचे के पानी का स्तर बढ़ने लगता है। फिर यही पानी तालाबों और झीलों के जल स्तर को बढ़ता है, जिससे नदियों में जल स्तर बढ़ जाता है। ब्लू वाटर की उपलब्धता पर इसका सीधा और बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।

पेड़ बारिश के पानी के प्रवाह को कम करते हैं और बाढ़ रोकने में मदद करते हैं। वे इस पानी को थाम के रखते हैं और धीरे धीरे साल भर छोड़ते हैं, जिससे गर्मी के दिनों में सूखा नहीं पड़ता है।

कितने पेड़ लगाएं?

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किसी देश में ब्लू वाटर का संग्रहण जितना ज्यादा होता है, वह देश उतना ज्यादा वाटर फुटप्रिंट का भार उठा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में प्रति व्यक्ति 1000 घन मीटर पानी है, जबकि कनाडा में 80,000 घन मीटर है! औसतन, एक पेड़ हर साल अपने आस-पास की मिट्टी में 3900 L पानी बरकरार रख सकता है। वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति का औसत जल उपयोग प्रति वर्ष 1.39 मिलियन लीटर या प्रति दिन 3800 लीटर है। इसमें केवल 3.3%पानी ही पीने, स्नान आदि में खपत होता है। और 4.3% औद्योगिक उत्पादों जैसे फोन आदि में होता है, न कि कपड़े या भोजन में। इस वर्चुअल वाटर का 90% हिस्सा उन उत्पादों में खर्च होता है जो हम खरीद कर इस्तेमाल करते हैं।

इसलिए, यदि आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आपका जल पदचिह्न स्थायी बना रहे, तो आपको मानसून में वर्षा के जल को संग्रहित करके जल निकायों के जल स्तर की भरपाई करनी होगा, जिसके लिए आपको 355 वृक्षों की आवश्यकता होगी।

कावेरी पुकारे अभियान

अपने जल पदचिन्ह को मैनेज का एक तरीका है कि आप कावेरी पुकारे में योगदान करें। यह अपने आप में एक अनूठा अभियान है जिसका उद्देश्य है कावेरी बेसिन का चेहरा बदलकर किसानों को उनके खेतों पर 242 करोड़ पेड़ लगाने में सक्षम बनाना। इस तरह कावेरी घाटी जिस मात्रा में पानी को रोकने में समर्थ बनेगी, वो कावेरी के जल प्रवाह के 40% के बराबर है, और किसानों की आय आश्चर्यजनक रूप से पाँच साल में ही पांच गुनी हो जाएगी। आप प्रति पेड़ 42 रुपये का योगदान करके कावेरी पुकारे का समर्थन कर सकते हैं।

2017 के बाद से, नदियों के लिए रैली (नदी अभियान) की भारी सफलता ने भारत में जल संकट का समाधान करने के लिए एक बड़े जनसमूह को जागरूक कर दिया है। कावेरी पुकारे, पूरे देश में और दुनिया के ट्रॉपिकल और सब ट्रॉपिकल यानि उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नदियों के पुनर्जीवन के मॉडल का काम कर सकता है, जो नदी, मिट्टी और जलवायु के पारिस्थितिक संतुलन को बहाल कर रहा है।

 

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