ध्यानलिंग की प्राण प्रतिष्ठा, सद्‌गुरु के जीवन की और ईशा के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना कही जा सकती है। मशहूर तमिल बुद्धिजीवी और लेखक मराबिन मेंदन मुथैय्या उस दिन की कुछ सजीव यादें हमारे साथ साझा कर रहे हैं।

सद्‌गुरु ने घोषणा की थी कि 24 जून 1999 को ध्यानलिंग की प्राण प्रतिष्ठा होगी। इस प्रक्रिया के दौरान, कुछ को छोड़कर सभी साधकों को लिंग की ओर पीठ करके बैठने के लिए कहा गया था। आधी रात के बाद का वक्त था, प्राण प्रतिष्ठा पूरी हो गई थी, सद्‌गुरु ने लिंग का आलिंगन किया और फिर अचानक अचेत हो गए।

कुछ ही लोगों को सद्‌गुरु की एक झलक मिल पाई, जिन्हें कुछ आश्रमवासी उठाकर बाहर ले गए।

सफल प्राण प्रतिष्ठा की खबर साधकों के बीच फैली और अगले दिन सैंकड़ों साधकों की भीड़ आश्रम में इकट्ठा हो गई। उन्हें शिवालय भूमि (कैवल्य कुटीर के सामने की मौजूदा कार पार्किंग) में बैठने के लिए कहा गया। मैं सुबह करीब 8.30 बजे आश्रम पहुंचा। वहां खुशी और जश्न का माहौल था।

सद्‌गुरु दो आश्रमवासियों की सहायता से कार से नीचे उतरे। हम यह देखकर यकीन नहीं कर पा रहे थे कि सद्‌गुरु अपने पैरों पर नहीं चल पा रहे थे।
हम उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे कि सद्‌गुरु प्राण प्रतिष्ठा के बारे में कुछ कहेंगे। हममें से किसी को भी असली स्थिति की समझ या उसकी गंभीरता का अंदाजा नहीं था।

फिर हमने एक जानी-पहचानी कार को वहां आकर रुकते देखा। मगर उसे चलाने वाला उसका बहुत ही प्रिय चालक नहीं था। सद्‌गुरु चालक सीट के बगल वाली सीट पर बैठे थे। हम यह देखकर थोड़े चकरा गए। सद्‌गुरु दो आश्रमवासियों की सहायता से कार से नीचे उतरे। हम यह देखकर यकीन नहीं कर पा रहे थे कि सद्‌गुरु अपने पैरों पर नहीं चल पा रहे थे। हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। हम सब चिंतित और परेशान थे। वहां एक असहज मौन पसर गया था।

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सद्‌गुरु हमेशा की तरह पेड़ के नीचे पत्थर पर बैठे और हाथ जोड़कर एक ओर से दूसरी ओर तक हम सब की ओर देखा। उनकी इस साधारण सी भाव-भंगिमा ने साधकों में भावनाओं का उफान ला दिया। लगभग सब की आंखों में आंसू थे, कई एक-दूसरे पर गिर रहे थे और फूट फूट कर रो रहे थे। कुछ क्षण पहले का मौन अचानक सैंकड़ों लोगों की चीख-चिल्लाहटों और बिलखने की आवाजों में बदल गया था।

उन्हें शांत रहने के लिए कहा गया और सद्‌गुरु का संदेश पढ़ कर सुनाया गया।

सभा के बाद यह घोषणा की गई कि ध्यानलिंग मंदिर में 3 दिन तक लगातार ऊं नम: शिवाय का जाप होगा। लोगों ने 3-4 घंटों की पारी में जाप किया और यह मंत्रोच्चारण 72 घंटों तक बिना रुके चला। हालांकि हम ध्यानलिंग की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बहुत उत्साहित थे, मगर सद्‌गुरु की हालत को लेकर एक गहरी चिंता मंडरा रही थी।

यह जाप 27 जून को 12 बजे दोपहर खत्म होना था। गुरु पूजा के लिए प्रबंध किए जा रहे थे। प्रवेश द्वार के बगल में रखी एक छोटी कुर्सी की असामान्य मौजूदगी पर हम सबका ध्यान गया। अब तक हमने हमेशा सद्‌गुरु को वज्रासन में बैठकर गुरु पूजा करते देखा था।

सद्‌गुरु हमेशा की तरह पेड़ के नीचे पत्थर पर बैठे और हाथ जोड़कर एक ओर से दूसरी ओर तक हम सब की ओर देखा। उनकी इस साधारण सी भाव-भंगिमा ने साधकों में भावनाओं का उफान ला दिया। 
इसलिए हमेशा की तरह कुशन की बजाय इस कुर्सी की मौजूदगी ने हमारी चिंता को और बढ़ा दिया। हम सब के लिए सद्‌गुरु हमेशा एक बहुत ही सक्रिय व्यक्ति रहे थे – जिस तेजी से वह पहाड़ों पर चढ़ाई करते थे, जिस सहजता से वह वॉलीबॉल खेलते थे, जिस फुर्ती से वह फ्रिस्बी पकड़ते थे, उससे हम उनकी शारीरिक क्षमता के बारे में जानते थे। यह सब हमारे लिए बहुत विचित्र और पीड़ादायक था। हर कोई बेचैनी से प्रवेश द्वार की ओर देख रहा था। हमारे बीच बहुत डर और अनिश्चितता थी।

और फिर, हमने सद्‌गुरु को उनके सामान्य तेज में देखा। वह शांति से और धीरे-धीरे चलते हुए मंदिर में प्रवेश कर रहे थे। वह दृश्य आज भी मेरे मन में बहुत ही सजीव रूप से अंकित है। हम इतने खुश थे कि मंदिर के मौन को भंग करते हुए तालियों की एक गड़गड़ाहट गूंज गई। हम भूल गए कि हम ध्यानलिंग में थे, हम भूल गए कि हम मौन में थे और जाप कर रहे थे। सद्‌गुरु को अपने पैरों पर चलते देखना हम सब के लिए बहुत ही खुशी का पल था। सब की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे। हमारे लिए प्राण प्रतिष्ठा का असली दिन वही था।

 

ध्यानलिंगम की प्रतिष्ठा के बाद सद्‌गुरु द्वारा दिया गया संदेश

मैं आपको बताना चाहता हूं कि लिंगम की प्राण प्रतिष्ठा बहुत अच्छी तरह हो गई है, और मैं उन सभी लोगों का आभारी हूं जिन्होंने इसके लिए पूरे समर्पण के साथ काम किया है। मैं आप सब के सामने सिर झुकाता हूं कि आपने मेरी गुरु की इच्छा को पूरा किया। मेरी कृतज्ञता और कृपा हमेशा आपके साथ रहेगी।

मेरी अस्वस्थता कुछ समय के लिए ही है।

प्रेम व प्रसाद,

सद्‌गुरु