कैलाश यात्रा 2018 - अन्नपूर्णा पर्वतों की घाटियों का सफ़र
इस स्पॉट में सद्गुरु अपनी कैलाश यात्रा के सफ़र में आने वाले पड़ाव अन्नपूर्णा पर्वत की घाटियों के बारे में बता रहे हैं। जानते हैं इस सुंदर पर्वत के बारे में सद्गुरु से।
हम लोग फिलहाल अन्नपूर्णा दक्षिण की तलहटी में है...
हम कुछ लोगों ने काक भुशुंडी झील तक पैदल यात्रा की। यह जगह अपने आप में दर्शनीय है। हम लोग यहाँ दो दिन का कैंप कर रहे हैं।
मेरे बदन की हर मांसपेशी दर्द से कराह रही है और मुझ से पूछ रही है, 'तुम हमें यहां लेकर क्यों आए?' लेकिन मेरा हृदय एक बिल्कुल अलग आनंद से भरा हुआ है। मेरा हृदय परमानंद से भरकर होकर छलक रहा है। हालांकि शरीर दर्द से कराह रहा है।
आह ये पर्वत... अगर आप इन्हें हजार बार भी देख लें, तो भी आप की पर्वतों की लालसा यानी पहाड़ों के प्रति लालच नहीं खत्म होगा। किसी ने मुझसे पूछा, 'सद्गुरु आप हर साल वहां क्यों जाते हैं?' इस पर मेरा जवाब था, 'यह हिमालय की लालसा है।'
मेरे साथ पैंतीस लोगों का यहां जो दल आया है, उसमें से पाँच या छह लोग दो तीन बार यहां आ चुके हैं। हालांकि हम लोगों को अपने साथ एक बार से ज्यादा यहां आने से रोकते हैं, फिर भी कुछ लोग आ जाते हैं। दरअसल, एक बार जब पर्वत आपको अपने आकर्षण में बांध लेते हैं तो हैं, तो फिर वे आपमें अपने प्रति एक खास तरह का समर्पण पैदा कर देते हैं।
जिस तरह हिमालय की बर्फ ढकी चोटियों से पानी छलक कर बह रहा है, उसी तरह से मेरे भीतर से कविता छलक रही है। हालांकि मैं हिमालय की तरह धवल, चमकदार और सुंदर नहीं हूँ, लेकिन मैं ऐसा ही हूं। मैं हिमालय नहीं हूं। तो आइए मैं यहां आपके लिए एक कविता पढ़ दूं। मैंने काफी लंबे अरसे से कविता नहीं पढ़ी है।
हमदे की घाटी की ज़मीन
लगती है घर सी मुझे
और खिंचा चला आता हूँ मैं
इन सुंदर पहाड़ों के बीच
की पगडंडियों पर।
जब से उसने
कर लिया है कब्ज़ा
मेरी सांसों और प्राणों पर,
और कर दिया है मुझे विलीन,
इस विराट ब्रह्माण्ड में,
माँ के सुखदायी गर्भ में पल
रहे नन्हे शिशु सा
महसूस होता है जीवन,
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क्योंकि नहीं है परवाह
अब जीने या मरने की।
परे की चाहतों से भी हूँ
मुक्त अब, क्योंकि
परे अब यहीं है,
और ये ही परे है।
अन्नपूर्णा के भव्य शिखर को देखकर, मैं ये कविता पढ़ रहा हूँ।
अन्नपूर्णा के बर्फ से ढंके पहाड़
कभी दिखते हैं,
और फिर कभी छुप जाते हैं,
बादलों के पर्दों के पीछे,
सदा-सदा के लिए लिया है
इन्होंने रूप एक लज्जा से
भरी दुल्हन का।
इनके महिमा-पूर्ण मुख
को उजागर करती हैं,
सूरज की किरणें,
और करती मंत्रमुग्ध सभी को,
पर बस कुछ ही पलों के लिए।
चलिए, एक और कविता सुनाकर मैं आपका पूरा सप्ताह बर्बाद कर देता हूँ!
बर्फों के पिघलने से
ढँक जाता है पहाड़ों का चेहरा
छोटी-छोटी घुमावदार
नदियों के धागों से।
ये महीन धागे
जुड़कर बदलते हैं
एक प्रचंड नदी में
जो पैदा करती है
भय और सम्मान सभी में।
यह बताना बहुत मुश्किल है कि एक पर्वत इंसान के साथ क्या कर सकता है। मुझे नहीं पता कि आप कभी उस इंसान को इंसान कह सकते हैं, जो कभी पहाड़ों पर गया तक न हो। युगों से ऐसा ही होता रहा है।
सभी नौजवानों से अपील
मैं हर इंसान, खासकर देश व दुनिया के नौजवानों से अपील करता हूं कि वे अपने भीतर किसी न किसी पहाड़ के प्रति रोमांस पैदा करें। एक ऐसा पहाड़ जो आप को चुनौती देता हो, ऐसा पहाड़ जो आप को अपनी ओर खींचता हो, एक ऐसा पहाड़ जो बस अपने आकार, मजबूती और मौजूदगी से आपके भीतर एक समर्पण पैदा कर दे।
आप सब का हिमालय में स्वागत है!