हमारी भावी पीढ़ी -निष्ठावान और प्रेरणा से भरे युवक
इस हफ्ते के स्पॉट में सद्गुरु की करूणा आईआईआई के लोगों के प्रति तो छलक ही रही है साथ ही जानने को मिल रही है उनके अगले दशक की योजना- किस पर होगा फोकस अगले दशक में... जानिए-
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दो हफ्ते बीत चुके हैं और दोनों हफ्तों के आखिरी दो दिनों में दो प्रोग्राम हुए हैं; एक ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ इनर साइंसेज (आईआईआई) रिट्रीट में और दूसरा सेन फ्रांसिस्को में लगभग 800 लोगों के साथ। दोनों जगहों के लिए ये अपनी तरह के पहले प्रोग्राम थे। हमारे स्वयंसेवकों ने दोनों कार्यक्रमों को खूबसूरती से आयोजित करने का शानदार काम किया है।
इस बीच मुझे इतनी मीटिंग्स में भाग लेना पड़ा कि हिसाब रखना मुश्किल है। ‘ईशा नैचुरल’ अब एक कारोबार के रूप में शुरु होने को तैयार है। यूएसए में इस कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए हमने एक अच्छी टीम का इंतजाम कर लिया है। सेन फ्रांसिस्को के दीक्षा-प्रोग्राम और मध्य-रात्री भैरवी यंत्र समारोह का समापन कराने के बाद मैं आईआईआई में एक और भैरवी यंत्र समारोह कराने जाने के लिए एसएफओ एयरपोर्ट में बैठा हूं। वहां से अगले पांच दिनों में न्यू यॉर्क, वाशिंगटन डीसी, बाल्टीमोर और लंदन की भी यात्रा करनी है।
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टेनीसी में मैं चौबीस घंटे से भी कम समय के लिए ठहरा था।यह जगह अब धन्य भूमि बन गई है। छह साल पहले जब हम यहां आए थे, तब ट्रेल ऑफ़ टीयर्स(अमेरिका के मूल निवासियों के जबरन स्थानांतरण की यात्रा)और अन्य कई अप्रिय घटनाओं के नज़दीक होने की वजह से इस जगह से एक तरह की रूग्णता की बू आती थी। उसके बाद यहां हुए काम का और लोगों के किए गए ध्यान का इतना असर पड़ा कि उससे इस जगह का सचमुच सौभाग्य जग गया। आदियोगी की प्राण-प्रतिष्ठा हो जाने पर यह एक ऐसी जगह बन जाएगी जहां लोग रहना चाहेंगे और यह ऊर्जा लोगों के घावों को भरने के साथ ही उनकी आत्मा को एक नई उंचाई देगी।
जब किसी जगह पर दर्द और तकलीफ हद से ज्यादा बढ़ कर ठहर जाए तब वह जगह ही जख्मी और अपंग हो जाती है। अगर इनको जरूरी जैविक पदार्थ मिलते रहें, तो ये एक लंबे अरसे तक खुद को जिंदा रख सकते हैं। अब समय आ गया है कि हम इस धरती की ऐसी जगहों के घाव भर दें और लोगों को कमजोर बनाने वाली संभावनाओं को मिटा दें। जो चीजें उस तरह के लोगों को प्रोत्साहित करती हैं, उस प्रेरणा को ही खत्म करने का काम करना होगा। देखना है कि हम जो कुछ करना चाहते हैं, उस सबके लिए वक्त और ताकत निकाल पाएंगे या नहीं। इस काम के लिए उत्साही और संतुलित युवकों की ज़रुरत होगी। अगले दशक में इसी पर हमारा सारा फोकस होगा - आने वाले दिनों के लिए ऐसे लोग तैयार करना, जो निष्ठावान हों, लोगों को प्रेरणा दे सकें और जिनमें अंतर्दृष्टि हो - इंटेग्रिटी, इंस्पिरेशनल और इनसाइटफुल। लोगों में ये तीन गुण यानी ये तीन ‘आई’ ला पाना ही आईआईआई -ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ इनर साइंसेज का लक्ष्य होना चाहिए।