भारत कोई भू-भाग नहीं- एक इंसान है
इस बार के स्पाॅट में सद्गुरु अपने देश-भारत की विशिष्टता पर रौशनी डाल रहे हैं और बता रहे हैं कि आखिर कैसे और क्यों है हमारा भारत इतना महान!
भारत देश को जमीन के एक हिस्से के रूप में नहीं, एक इंसान के रूप में माना जाता है और हम कहते हैं- ‘भारत माता’। देश के तमाम हिस्से इसके शरीर के अंग हैं।
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भारत का शाब्दिक अर्थ है- ‘भा’ यानी भाव, ‘रा’ यानी राग और ‘ता’ यानी ताल, जो कि संगीत व नृत्य के मूलभूत आधार हैं। इस धरती पर कला असाधारण रूप से विकसित हुई। कुछ हजार साल पहले जब पूरी दुनिया में बंजारों या यायावरों की टोलियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही थी, उस समय भारत संगीत, गणित, खगोल शास्त्र और वैज्ञानकि प्रगति की नई बुलंदियां छू रहा था।
इंसानी एकरूपता पर आधारित न होकर विविधता पर बने अपने इस देश पर हमें गर्व है। अगर हिंदुस्तान की यात्रा करें तो यहां हर पचास किलोमीटर पर लोगों की भाषा और जीवन-शैली बदली हुई मिलेगी। भारत देश को जमीन का एक हिस्से के रूप में नहीं, एक इंसान के रूप में माना जाता है और हम कहते हैं- ‘भारत माता’। देश के तमाम हिस्से इसके शरीर के अंग हैं। हम ऐसी उम्मीद नहीं करते कि हमारी उंगली और नाक एक जैसा व्यवहार करें, लेकिन फिर भी सब साथ हैं। जैसे इनमें एक जैविक एकता होती है, उसी तरह यहां की संस्कृति में एक चैतन्य एकता रही जिसे इस संस्कृति ने पूरी सावधानी से पोषित किया। सारी विविधता एक मजबूत आध्यात्मिक डोर से बंधी रही।
भारत में रहने का मूलभूत आधार है कि यहां हर व्यक्ति, चाहे वह राजा हो, व्यापारी हो या फिर गृहस्थ, सभी के जीवन का परम लक्ष्य है- मुक्ति। यहां तक कि हम स्वर्ग या भगवान की कामना भी नहीं करते, क्योंकि भगवान भी हमारे लिए इस परम लक्ष्य तक बढ़ने का एक जरिया मात्र है। यह देश इस धरती का अकेला भगवान विहीन देश होगा, क्योंकि हमें पता है कि हम ही भगवान बनाते हैं। हमने भगवान बनाने का एक पूरा विज्ञान विकसित किया है, जिसके जरिए हम अपना ‘इष्ट देवता’ बनाते हैं। इस देश की धरती 33 करोड़ देवी देवताओं का निवास मानी गई है।
इस भारतीय इलाके ने इंसान के अंदरूनी कल्याण के नियमों पर महारत हासिल की हुई है। आज के आधुनिक दौर में दुनिया के तमाम समृद्ध और ताकतवर देश अपने भीतर से भयानक विरक्ति और मोहभंग के दौर से गुजर रहे हैं। हमारे पास वह जानकारी और वैज्ञानिक तरीका मौजूद है, जिसके जरिए सभी का कल्याण हो सकता है। इसके पहले कि इंसान बाहरी उपलब्धियों को हासिल करने के लिए कदम बढ़ाए, उसे अपने भीतर आत्म कल्याण तक पहुंचना बहुत जरूरी है। केवल इसी तरीके से इंसान अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं से ऊपर उठकर अपेक्षाकृत बड़े नजरिए के लिए कोशिश कर सकता है। यह अब इसलिए अति महत्वपूर्ण हो उठा है, क्योंकि पहली बार एक पीढ़ी के तौर पर हम उस स्थिति में पहुंचे हैं, जहां हमारे पास दुनिया के हर एक इंसान की समस्या से निपटने के लिए जरूरी साधन, क्षमता और तकनीक मौजूद है। बस अगर किसी चीज की कमी है तो सिर्फ उस चेतनता की जो सबको शामिल कर के, सबको साथ ले कर चल सके। हम जिसे भारत कहतेे हैं उसका बुनियादी आधार यही सम्मिलित करने की भावना है।
अब वो समय आ गया है कि हम इस गहन परंपरा की महानता का पूरा लाभ ले सकें। हम महान संभावनाओं से भरे हुए एक राष्ट्र हैं। आइए, हम सब इसे साकार करें।