लिंग भैरवी को अनुभव कैसे करें?
सद्गुरु एक प्रश्न का जवाब देते हुए बता रहे हैं कि व्यक्ति किस तरह एक जीवित हस्ती के रूप में देवी का अनुभव कर सकता है।
लिंग भैरवी को अनुभव कैसे करें
सद्गुरु एक प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं कि किस प्रकार देवी को जीवन में एक जीवित अस्तित्व के रूप में अनुभव कर सकते हैं।
सद्गुरु: हमने जनवरी 2010 में, भैरवी प्रतिष्ठा के साथ यह सब आरंभ किया था और उसके बाद से कभी मुड़ कर नहीं देखा। यह उत्साह और रोमांच के झूले पर झूलने जैसा अनुभव रहा और देवी ने असंख्य लोगों के जीवन को छुआ है। पहले ही चार भैरवी मंदिर बन चुके हैं और कई छोटे मंदिर भी सामने आ रहे हैं, इस तरह वे अनेक स्थानों तक अपनी पहुँच बना रही हैं।
लोग ध्यानलिंग की तुलना में देवी को अधिक महसूस इसलिए कर पा रहे हैं, क्योंकि वे भौतिक रूप से प्रकट हैं। ध्यानलिंग सूक्ष्म है; इसे अनुभव करने के लिए एक निश्चित स्तर की ग्रहणशीलता चाहिए। यह एक बिल्कुल ही अलग आयाम है। देवी एक भौतिक स्वरूप हैं - वे बहुत ही सुखद हैं, परंतु वे आपके मुख पर तमाचा भी जड़ सकती हैं। हो सकता है कि आपके मुख पर पचास ऊंगलियों की छाप दिखने लगे। तो क्या देवी जाग्रत हैं? वे वास्तव में हैं। क्या वे भौतिक रूप से प्रकट हैं? बिल्कुल, जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, मेरे लिए और बहुत से लोगों के लिए वे एक जीवित सत्ता की तरह हैं।
अगर आप अपने एक अंश को विसर्जित कर देंगे, तो आप उसकी मौजूदगी को महसूस कर सकेंगे, जो आप नहीं है।
”मुझे देवी का अनुभव पाने के लिए क्या करना चाहिए?“। आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। अगर आप अपने एक अंश को विसर्जित कर देंगे, तो आप उसकी मौजूदगी को महसूस कर सकेंगे, जो आप नहीं है। अगर अप खुद से बहुत ज्यादा भरे हुए हैं, तो आप कहीं भी कुछ भी महसूस नहीं करेंगे। यहीं नहीं, कहीं भी। देवी को तो उपेक्षित किया ही नहीं जा सकता। परंतु अधिकतर लोग ऐसे ही हैं - उन्होंने अपने दिल की धड़कन को, अपनी श्वास को, पूर्ण चंद्रमा की आभा तक को महसूस नहीं किया। अगर आप आपको काटने वाले मच्छर, आपके दिल की धड़कन, आपकी श्वास, आपके भोजन के शरीर पर प्रभाव आदि को महसूस नहीं कर पाते, तो देवी को कैसे महसूस कर सकेंगे? भैरवी के साथ, कुछ लोगों के जीवन में अभूतपूर्व घटनाएँ घटी हैं, जो इनके बारे में बात नहीं करना चाहेंगे, इसलिए मैं इस बात को यहीं छोड़ देता हूँ, परंतु ऐसा घटा अवश्य है। परंतु अधिकतर लोगों के साथ परेशानी यह है कि वे पहले से कल्पना करने लगते हैं।
किसी भी चीज़ की कल्पना न करें। कल्पना को अनुभव के लिए अच्छा नहीं मान सकते। अगर आपको लगता है कि कल्पना आपके अनुभव का विकल्प है, तो यह जीने का मूर्खतापूर्ण रूप है। कल्पना से कुछ देर के लिए प्रसन्नता पाई जा सकती है। परंतु यदि यह नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो आपका दिमाग चकरा जाएगा। कल्पना के माध्यम से, आप दो ही मिनट में स्वर्ग जा कर वापिस आ सकते हैं, और आपको हिलने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी - पर जब वापिस आएँगे तो मन को मायूसी होगी, क्योंकि आप वापस आ गए। अनुभव एक अलग चीज़ है। यह जीवन को रूपांतरित करता है। मैं जीवन के वास्तविक अनुभव की बात कर रहा हूँ। भौतिक रूप से सामने आने वाला अनुभव! यह बहुत हद तक संभव है।
अगर आप सही मायनों में भक्त हैं, तो आपका अपना कुछ नहीं रहेगा। अगर आपका अपना कुछ नहीं रहेगा। तो वह सुबह के सूर्योदय की तरह वास्तविक और बलशालिनी दिखेगी।
इसलिए ....भक्ति और आस्था। ऐसा नहीं कि आप देवी के लिए भजन करेंगे या उससे प्यार करेंगे तो वह आपके सामने आ जाएंगी। वह हमेशा से मौजूद हैं। उन्हें अंतर नहीं पड़ता कि आप उनके भक्त हैं या नहीं। आपकी भक्ति का उनसे कोई लेन-देन नहीं है। आपकी भक्ति का संबंध आपसे है। अगर आप सही मायनों में भक्त हैं, तो आपका अपना कुछ नहीं रहेगा। अगर आपका अपना कुछ नहीं रहेगा तो वह सुबह के सूर्योदय की तरह वास्तविक और बलशालिनी दिखेगी। बस आपको उन्हें महसूस करने के लिए, आपको अपने भीतर से खाली होना होगा। आप जितने रिक्त होंगे, उन्हें उतनी ही गहराई से महसूस कर सकेंगे।
आपकी भक्ति देवी से नहीं, आपके अपने विलीन होने से संबंध रखती है। परंतु उनके अभाव में, आप भक्तिमय अहिं हो सकते। आपको कुछ चाहिए, आपको अपनी भक्ति के प्रदर्शन के लिए कुछ चाहिए, ताकि आप उसका प्रयोग कर सकें। अभी, इस संसार में आप जो भी देखते हैं, वह आपकी अपनी व्याख्या है, यह आपका अपना ही प्रतिबिंब है। इस अवस्था में, कोई भक्ति या बोध नहीं हो सकता। आप जो भी अभी देखते हैं, वह संसार नहीं, वह सर्जक नही और न ही सृजन है। आपको उस ”मैं” को नष्ट करना होगा जो बहुत बड़ा हो गया है, आपको हर स्थान पर भैरवी को देखना होगा। अब, कुछ समय बाद, सब कुछ ऐसा ही होगा। अगर आप एक पत्ती देखेंगे, ‘ओह, यह तो भैरवी जैसी दिखती है।’, अगर आप एक फूल देखेंगे, ‘अरे यह तो भैरवी जैसा दिखता है।’ ऐसा किसी से न कहें, बस इस भाव को अपने मन के भीतर रखें। स्वयं को घटाने का बहुत अच्छा तरीका है। कुछ समय बाद, आपकी “मैं” की धारणा समाप्त हो जाएगी।
क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? जब कोई तरीका कारगर हो, तो क्या आप उसे बढ़िया कहेंगे या मूर्खतापूर्ण कहेंगे? यह कारगर है, बस यही बहुत है। सभी साधनों का प्रयोग करना चाहिए, उनका विश्लेषण करने से कुछ हाथ नहीं आता। यह आपके विश्लेषण के लिए नहीं, प्रयोग में लाने के लिए है। अगर आप इसे प्रयुक्त करते हैं तो यह कारगर होता है। अगर आप विश्लेषण करें, तो इससे आपको क्या लाभ मिलेगा? अगर मैं आपका विश्लेषण करूँ? तो आपके भीतर क्या है? आपमें तो वाकई कुछ नहीं है, नहीं है न?