सद्गुरुऐसे लोगों को तैयार करने के लिए जो प्रतिष्ठा में शामिल हो सकें, हमने नब्बे दिन का होलनेस प्रोग्राम आयोजित किया। इसमें लगभग सत्तर लोगों ने हिस्सा लिया। इसके पीछे बुनियादी सोच यह थी कि इन सत्तर में से चैदह लोगों को चुना जाए, जो ध्यानलिंग प्रतिष्ठा में काम आ सकें। ऐसे चैदह लोगों को तैयार करना, जो शरीर, मन, भावना और हर चीज में एक हो जाएं, यह आसान काम नहीं है। हालाँकि इसके लिए काफी कोशिश की गई, लेकिन यह नहीं हो सका। फिर हमने एक ज़्यादा कठोर प्रक्रिया अपनाने का फैसला किया, जिसमें केवल दो लोग शामिल थे। 

जब दो लोगों को मेरे साथ ऊर्जा का एक त्रिभुज बनाने के लिए लाया गया, जिसमें मैं एक धुरी की तरह था, तो इसके लिए भी जरूरी था कि वे अपने मन, भावना और ऊर्जा में एक हो जाएं। अब अगर एक इंसान अपने बाएँ घुटने में कुछ महसूस करता है तो बाकी दो लोग भी अपने बाएँ घुटने में वही महसूस करते, चाहे वे जहाँ कहीं भी हों। जो आपका जीवन है और जो उनका जीवन है, सब कुछ आपके दिमाग में गड्डमड्ड हो गया। 

त्रिभुज का पूरा मकसद एक भँवर बनाना था, जहाँ तीव्र ऊर्जा पैदा की जा सके, जिसमें कि हम अपने गुरु की ऊर्जा को ध्यानलिंग प्रतिष्ठा के लिए आमंत्रित कर सकें। आखिरकार, यह उनका ही सपना था कि ध्यानलिंग साकार हो। मैं इसे ख़ुद नहीं करना चाहता था; मेरी चाहता था कि वे आकर इसे करें। इसीलिए यह त्रिभुज अलग-अलग चरणों में बनाया जा रहा था। धीरे-धीरे इस ऊर्जा को अलग-अलग स्तरों तक उठाया गया और हर चरण पर त्रिभुज को अलग-अलग आयामों में ले जाया गया। आप इसे एक ऐसी अवस्था में ले जा सकते हैं कि यह प्राणी जो पूरी तरह से विसर्जित हो चुका है, यह प्राणी जो पूरी तरह से जा चुका है, अब वह लौट आएगा और उसके माध्यम से प्रतिष्ठा संपन्न होगी।

जब हम ऊर्जा का त्रिभुजकहते हैं, तो इसमें शामिल इंसान हर संभव तरीके से पिघल चुका है, तरल हो चुका है। अगर आपको एक त्रिभुज बनाना है, तो आपको कई तरीकों से तीन लोगों का विलय करना होगा। कई तरह से व्यक्तिगत संरचनाओं को ढीला करना था। दूसरे शब्दों में, इन तीन लोगों को समाधि की एक खास अवस्था में रहना होगा, जहाँ उनके शरीर के साथ उनका संपर्क कम-से-कम रह जाए। व्यक्तिगत रूप को खींचकर एक दूसरे किस्म के रूप में बनाया जा रहा था। अगर ऊर्जाओं को इस तरह से खींचना है या अगर एक त्रिभुज बनाने के लिए ऊर्जाओं को पर्याप्त लचीला होना है, तो उसे बहुत सूक्ष्म, अत्यंत सूक्ष्म होना होगा। जब आप इस तरह की ऊर्जा से एक त्रिभुज बनाते हैं, तो यह एक गोल घूमता हुआ पूरा भँवर पैदा करता है, जिसमें सर्वोच्च ऊर्जाएँ खिंची आती हैं। वे सभी प्राणी जो मुक्ति की तलाश में थे, वे भी उसमें खिंच आते हैं। आप उसे ब्रह्मांडीय या चैतन्य ऊर्जा कह सकते हैं। भँवर इसी तरह से काम करता है। लिंग-आकार को इन्हीं ऊर्जाओं का इस्तेमाल करके बनाया गया। 

जब हम चीजों को इस तरह से करते हैं, तो हम जो भी काम करते हैं, उसमें किसी भी तरह की गलती नहीं हो सकती। अगर मैं इसे करता हूँ, तो हो सकता है कि मेरे शरीर में कुछ ऐसा हो, कोई तत्व, जो ऊर्जा में थोड़ी-सी विकृति पैदा कर दे, क्योंकि मैं अभी एक शरीरधारी हूँ और शरीर कभी परफेक्ट नहीं होता। शरीर में तमामों विकृतियाँ होती हैं। जैसे कि आज मैंने जिस तरह का खाना खाया है, उसकी वजह से मेरी पीठ में थोड़ा दर्द हो सकता है, मुझे सर्दी लग सकती है, वगैरह... और यह लिंग के ऊपर अंकित हो सकता है। इसलिए हम अपने गुरु की ऊर्जा को इस्तेमाल करना चाहते थे। जब इसे इस तरह से किया जाता है तो काम बिल्कुल परफेक्ट होगा। उसमें कोई भी कमी नहीं निकाल सकता। उसमें रत्ती भर भी दोष नहीं होगा।