हमारे नए एल्बम के शीर्षक गीत - चंद्र्जीवन - को पूर्णिमा के दिन सद्गुरु के साथ एक सत्संग के लिए रचा गया था। यह गीत हमारे जीवन की तुलना चंद्र की कलाओं से करता है।
यह गीत इस ओर भी संकेत करता है कि कैसे एक साधक की यात्रा सिर्फ गुरु-कृपा से ही संभव है, ठीक वैसे ही जैसे चंद्र की रौशनी सूर्य पर निर्भर करती है।
आप यह पूरा गीत डाउनलोड कर सकते हैं isha.co/Chandrajeevan.
शून्य से उठता हूँ मैं
पूर्णता के पथ चला
कभी बढ़ता कभी घटता
चांद सी मेरी कला
पूर्णिमा को है दमकता
ओज मेरा झर रहा
गुरु की ज्योति है केवल
इस लिए तो दिख रहा
अमावस की कालिमा में
भी कहीं मैं छुप रहा
शिव की काली जटा में तुम
ढूंढलो जो दिख रहा
नए चंद्र में जन्म लेता
हर अमावस हूँ मरा
बीच में ये मेरा जीवन
कुछ है खाली, कुछ भरा