सद्‌गुरु द्वारा ईशा योग केंद्र के आदि योगी आलयम हॉल में 20-22 फरवरी के बीच योगेश्वर लिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गयी। इस ब्लॉग में देखते हैं प्रतिष्ठा के अलग-अलग चरणों की तस्वीरें और साथ ही उनके वर्णन...

तीसरा दिन

सद्‌गुरु से प्रतिष्ठा के बारे में एक प्रश्न पूछा गया -
एक सहभागी ने पूछा - कि कल आपने एक महिला और एक पुरुष को प्रतिष्ठा में शामिल किया। महिला और पुरुष को शामिल करने का और उन्हें धागे बंधने काक्या महत्व था?

मैंने ये नहीं देखा कि वे पुरुष और स्त्री हैं। सद्‌गुरु हँसते हुए बताते हैं। मैं बस इड़ा और पिंगला की खोज में था। मैं स्त्रीत्व और पौरुष की खोज में था क्योंकि हम इन दोनों में तालमेल लाने की कोशिश कर रहे थे। मैं एक पुरुष हूँ, इसलिए इसमें पुरुष का गुण आ गया था। तो मैं इसे थोड़ा ठीक कर रहा था। - जिससे कि इसमें पौरुष की ओर झुकाव न हो। और जैसे इसमें स्त्रीत्व और पौरुष दोनों बराबर मात्रा में मौजूद हों।

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आदियोगी आलयम के अंदर और बाहर भी, लगातार गतिविधियाँ चल रही हैं, और स्वयंसेवी प्राण-प्रतिष्ठा और महाशिवरात्रि कार्यक्रमों के लिए सहयोग कर रहे हैं। ब्रेक के दौरान, कुछ स्वयं सेवी खाना परोस रहे हैं, और कुछ अन्य महाशिवरात्रि के दौरान होने वाले अर्पर्णों की तैयारियों में लग जाते हैं। स्वयं सेवियों का एक समूह, महाशिवरात्रि आयोजन स्थल को तैयार करने में लगा हुआ है।

दूसरा दिन

पढ़ते हैं कुछ स्वयं सेवियों द्वारा साझा किए गए अनुभव

कई सालों से एक पूर्ण कालिक स्वयंसेवी होते हुए भी, मैंने कभी इतने बड़े स्तर के कार्यक्रम में सहयोग नहीं किया है। इतने बड़े आयोजन का एक हिस्सा होना एक असाधारण बात है। मैं लोगों को इस प्रक्रिया की तीव्रता से अभिभूत होते देख रहा हूँ। सद्‌गुरु ने बताया था, कि वे चाहते हैं कि सभी इसका अनुभव करें। मुझे लगता है कि लोग इस लिंग का अनुभव करने के लिए, और पूरे विश्व को ये लिंग अर्पित करने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर रहे हैं। - हॉल स्वयं सेवी

 

 

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मैं पेशे से एक एक्टर हूँ, और कोलकाता से आया हूँ। मैं पिछले दस दिनों से ईशा में हूँ। यहां मेरा पहला काम था, अलग-अलग विभागों के लिए महाशिवरात्रि की रात के लिए पास बनाने से सम्बंधित डाटा इकट्ठा करना। हर विभाग मुझे उसकी गतिविधि के अनुसार डाटा भेज रहा था। मैं महाशिवरात्रि से जुड़ी अलग-अलग तरह की गतिविधियों को देख कर आश्चर्यचकित था। किसी विभाग को अन्य विभाग के बारे में जानकारी नहीं है, पर फिर भी सभी एक दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं, और एक साथ काम कर रहे हैं।

बाहरी दुनिया में, लोग बहुत सी तैयारियां करते हैं, और अगर उनके अनुआर काम नहीं होते तो वे परेशान हो जाते हैं। उनकी तुलना में यहां के लोगों की तैयारियां तो कम लगती हैं, पर ये लोग किसी भी चीज़ का सामना करने के लिए तैयार हैं। चाहे कुछ भी हो, ये लोग कभी परेशान नहीं होने वाले। बाहरी दुनिया में लोगों एक अलग तरीके से अस्त-व्यस्त हैं। यहां सब कुछ पूरी तरह से अस्त व्यस्त है। पर क्या करना है, ये सभी जानते हैं, और सभी हिस्से खुद ब खुद आकर जुड़ जाते हैं। हर चीज़ इस तरह काम कर रही है, जैसे किसी बड़ी व्यवस्था का एक हिस्सा हो। हर कोई अपने क्षेत्र में अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ योगदान दे रहा है। - शौनक मुख़र्जी, योग वीर

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मैं केरल से आया हूँ, और यहां आने से पहले मेरी योग में कोई रूचि नहीं थी। पिछले 25 दिनों से, मैं महाशिवरात्रि के ऑडियो सेट-अप को तैयार कर रहा हूँ। इस काम के चलते, मैं आश्रम के कई लोगों के, और ईशा के स्वयं सेवियों के संपर्क में हूँ। जिस कंपनी के लिए मैं काम करता हूँ, वो आयोजन प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है – इसलिए मैंने इससे पहले कई सारे बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम किया है। पर यहां का वतारावण बिलकुल अलग है। मैं ये स्पष्ट रूप से देख सकता हूँ, कि यहां के लोग कितने शांत और आनंदित हैं। योग सीखने के लिए, यहां कई देशों से लोग आए हुए हैं। पर मैं भारत में रहकर भी इसे नहीं सीख रहा। अब मैं योग के प्रति इतना आकर्षित हो गया हूँ, कि महाशिवरात्रि उत्सव के खत्म होते ही मैं किसी ईशा कार्यक्रम से जुड़ना चाहुँगा।

टोम्सी थॉमस, केरल में रॉजर डर्गो में कार्यरत

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पहला दिन

योगेश्वर लिंग की विशेषता

सद्गुरु आकार और ज्यामिति के बारे में बताते हैं। “जब अस्तित्व के आकारहीन आयाम एक आकार लेते हैं, तो उसके आकार की ज्यामिति यह तय करती है कि वह निश्चित आकार कैसा काम करने जा रहा है।”

“जहाँ भी निश्चित जटिलता के साथ ज्यामिति की संपूर्णता होती है, ” वे कहते हैं, “वह आयाम सदा दैवीय बन जाता  है।” ज्यामिति की एक निश्चित संपूर्णता में न्यूनतम घर्षण या प्रतिरोध और अधिकतम क्षमता होती है।

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सद्गुरु कहते हैं – “योगेश्वर लिंग को समावेश की एक निश्चित गहनता लाने के लिए रचा गया है, भावात्मक प्रेम नहीं - बस समावेश की गहनता, यही समावेश योग की अवस्था की ओर ले जाता है।”

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इसके बाद सद्‌गुरु बताते हैं कि योगेश्वर लिंग को किस तरह ऊर्जात्मक रूप से तैयार किया गया है। “इस लिंग में पाँच चक्र हैं।” वे बता रहे हैं, “इनमें से प्रत्येक के 16 आयाम हैं। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, विशुद्धि व आज्ञा - इसमें अनहत को शामिल नहीं किया गया – ये एक हृदयहीन योगी हैं।”

“इस लिंग को पूजन के लिए नहीं, साधना के लिए बनाया गया है। बेशक लोग इसका पूजन भी करेंगे, परंतु मूल रूप से इसे साधना के लिए बनाया गया है।”

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सद्गुरु आगे बताते हैं, “इसके दो आयाम, दो पहलू या दो पक्ष हैं, योगरातोवा, भोगरातोवा - आप अनुशासन या पूरी बेफिक्री के साथ इसे प्रयोग में ला सकते हैं। यह अनुशासन का मेल है, एक स्तर पर तपस्या और दूसरे स्तर पर बूँद-बूँद रिसता हुआ परमानंद।”

सद्गुरु कहते हैं, “जब योगेश्वर लिंग की पूर्ण प्रतिष्ठा हो जाएगी तो कई तरह के लोग जाएँगे और वे उन्हें अपने मूल के अनुसार छुएँगे...योगेश्वर लिंग द्वारा इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि आपके प्रारब्ध के अनुसार, आपके सतही कर्मों के अनुसार, आप उस तक उसी रूप में पहुँच बना सकें।”

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सद्गुरु प्रारब्ध कर्मों के बारे में बात करते हुए कहते हैं, “यदि किसी व्यक्ति को सीमाओं को लांघना है, कुछ ही सीमाओं को पार करने के लिए भी, अपने प्रारब्ध के कुछ पक्षों को अपने से अलग करना ही होगा।” वे कहते हैं कि अगर ऐसा न किया गया तो, यह कुछ ऐसा होगा मानो, “आप छिलके समेत मेवा खा रहे हैं। इसका स्वाद अच्छा नहीं होगा। आपको छिलका उतार कर खाना होगा। तभी आपको मिठास मिलेगी।”

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प्रेम और समावेश का अंतर

“प्रेम प्रसंग सुंदर तो दिखते हैं, पर वे समावेश का छोटा सा स्वाद भर हैं। इनसे पता चलता है कि हमारे जीवन में गहन अनुभवों की कितनी कमी है।”

सद्गुरु के अनुसार ये लिंग ‘हृदयहीन’ है क्योंकि, “एक हृदयहीन योगी क्रोध तथा द्वेष से भरा निर्दयी नहीं होता है। एक हृदयहीन योगी विशुद्ध होता है क्योंकि वह सकारात्मक और नकारात्मक भाव नहीं रख सकता। वह केवल योग, केवल समावेश को जानता है।”

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“जब शिव ने अपनी स्त्री को पाया। तो वे पेड़ों के आसपास नहीं भागे या झील के आसपास नहीं घूमे...उन्होंने केवल उसे लपका और उसे अपना ही एक अंग बना लिया। भले ही यह आपके मापदंडों के अनुसार रोमानी न लगता हो, ” सद्गुरु मज़ाक करते हैं, “क्योंकि आपके मापदंड तो सिनेमा से तय होते हैं।”

“मैं जान कर निर्दयी शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ। लोगों को लगता है कि हृदयहीन होने का अर्थ एक निर्दयी व असंवेदनशील व्यक्ति होगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे कभी समावेश को जीने का तरीका नहीं मानते।”

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 अग्नि व प्रकाश, सफ़ेद और काला

50 से अधिक देशों के 12000 से अधिक सहभागी इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह का हिस्सा बनने आए हैं। सफ़ेद वस्त्रों में सजे वे लोग, सुबह से नौ से दस बजे के बीच हॉल में दाखिल होते हैं, और शांत भाव से अपने स्थान पर बैठ कर ध्यान लगाने लगे या उस जीवंत स्थान के बीच मंत्रजाप करने लगते हैं।

 

 

 

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9.45 बजे, ईशा संस्कृति ने संगीत का मंच संभाला और शीघ्र ही ‘चंद्रशेखर अष्टकम्’ के सुरों से हॉल गूँज उठा। इसके बाद ‘गौरांग’ मंत्र का जाप हुआ, जिसमें आदियोगी शिव की स्तुति की गई है, वे अपने देह की श्वेत आभा के कारण गौरांग भी कहलाते हैं, उनकी देह पर लिपटी भस्म के कारण वे गौरांग हो उठते हैं।

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मंत्र में आदियोगी शिव के अनेक नाम शामिल किए गए हैं, जैसे शशिभाल, जो अपने केशों पर चंद्र को धारण करते हैं, यह नाम उनके परमानंद और मद में डूबी अवस्था को दर्शाता है; स्थान में लिपटे दिगंबर, यह उनके अ-भौतिक रूप का प्रतीक है, जिसके साथ ही अस्तित्व सामने आया; सदाशिव, अनंत भाव में स्थिर; तथा भुजंगेश, सर्पों के भगवान, यह उनके असीम बोध का प्रतीक है। यौगिक संस्कृति में, ये मान्यता है कि जिन चीज़ों की अनुभूति पाने के लिए मनुष्यों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है, उनकी अनुभूति सांप आसानी से कर लेता है।

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योगेश्वर लिंग का आगमन

प्रतिष्ठा समारोह आरंभ होने से पूर्व, योगेश्वर लिंग ने आदियोगी आलयम में बड़े ही भव्य रूप में प्रवेश किया। आदियोगी हॉल में उपस्थित, दस हज़ार से अधिक अतिथियों ने सद्गुरु सहित लिंग के प्रथम दर्शन किए। योगेश्वर मंत्र सारे हॉल में गूँजने लगा, जिससे गहरी उत्सुकता व प्रतीक्षा के साथ सारा परिवेश गहन हो उठा। सद्गुरु के आने से पहले, साउंड्स ऑफ़ ईशा ने गुरु पादुका स्तोत्रम् मंत्र का जाप आरंभ कर दिया था।

एक विशेष तौर पर तैयार किए गए फ्रेमवर्क के साथ, सद्गुरु ने योगेश्वर लिंग को मंच पर आसीन करने का निर्देश दिया। इसके बाद उन्होंने लिंग के आसपास तांबे का एक घेरा डाला और सारी सतह को विभूति व काले वस्त्र से ढंक कर, अंत में माला पहना दी।

दर्शकों को संबोधित करते हुए, सद्गुरु ने प्राण प्रतिष्ठा के अगले तीन दिनों के बारे में बात की और बताया कि एक व्यक्ति इन शक्तिशाली परिस्थितियों का लाभ कैसे उठा सकता है। “आप यहाँ केवल प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साक्षी बनने नहीं आए” उन्होंने सबको याद दिलाया।

“आप एक प्रतिष्ठा समारोह का अंग हैं। एक तरह से आप भी इसके घटने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।”

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हॉल में सद्गुरु के प्रथम दर्शन किसी आश्चर्य से कम नहीं थे। जब वे आलयम में मुख्य द्वार से, बैलगाड़ी हांकते हुए, संस्कृति के छात्रों व ब्रह्मचारियों सहित भीतर आए तो दृश्य वास्तव में अद्भुत था। छात्र ढोल व नगाड़े बजाने के साथ-साथ मंत्रजाप कर रहे थे। दर्शकों की भारी भीड़ से निर्भीक, बैल पूरी निष्ठा के साथ हॉल के अगले हिस्से में बढ़ा, और उस मंच के पास आ गया, जहाँ प्राण प्रतिष्ठा के दौरान लिंग को रखा जाना था।

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