नवरात्रि 2015 और दशहरा ईशा योग केंद्र में
ईशा योग केंद्र में बहुत भव्य तरीके से दशहरा मनाए जाने की तैयारी हो रही है। कई तरह के समारोहों का आयोजन होना है जिसमें शास्त्रीय संगीत, नृत्य समारोह, लोक संगीत, भक्तों के लिए नवरात्री साधना, लिंग भैरवी की यात्रा और नंदी के सामने होने वाली भव्य महाआरती शामिल हैं। ये सभी कार्यक्रम इस साल दशहरे के मुख्य आकर्षण होंगे।

ईशा योग केंद्र में बहुत भव्य तरीके से दशहरा मनाए जाने की तैयारी हो रही है। कई तरह के समारोहों का आयोजन होना है जिसमें शास्त्रीय संगीत, नृत्य समारोह, लोक संगीत, भक्तों के लिए नवरात्री साधना, लिंग भैरवी की यात्रा और नंदी के सामने होने वाली भव्य महाआरती शामिल हैं। ये सभी कार्यक्रम इस साल दशहरे के मुख्य आकर्षण होंगे।
12 अक्टूबर को महालय अमावस्या की शुभ रात को मृत रिश्तेदारों और पूर्वजों की खुशहाली के लिए वार्षिक कालभैरव शान्ति का आयोजन किया गया है। नवरात्रे 2015 - 13 अक्टूबर से शुरू होंगे और 22 अक्टूबर तक चलेंगे। अंधकार पर विजय का प्रतीक माना जाने वाला विजयदशमी का त्यौहार 3 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
महालया अमावस्या – 12 अक्टूबर- शाम 6 बजे : लिंग भैरवी मंदिर में अग्नि अर्पण –अग्नि में तिलके लड्डुओं की भेंट
- रात 8:30 बजे : महालया अमावस्या पर सद्गुरु का विडियो
- रात 11:20 बजे : कालभैरव शांति
- कुमकुम / हरिद्रम / चंदन का अभिषेक (अक्टूबर 13, अक्टूबर 16 और अक्टूबर 19 को) : सुबह 7:00 से 7:30
- देवी अभिषेक और आरती : सुबह 7:40, दोपहर 12:40
- दुर्गा के दिन : अक्टूबर 13 - 15
- लक्ष्मी के दिन: अक्टूबर 16 - 18
- सरस्वती के दिन: अक्टूबर 19 - 21
- सूर्यकुंड मंडप में सांस्कृतिक कार्यक्रम : शाम 5:45 से 6:45
- लिंग भैरवी मंदिर में नवरात्री पूजा : शाम 5:40 से 6:10
- लिंग भैरवी सवारी और महाआरती : शाम 6:45 से 7:45
- लिंग भैरवी मंदिर में नवरात्री साधना : शाम 8 से 9
2 से 14 साल के बच्चों के लिए एक विशेष विद्यारम्भं कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। आप इन सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
+91-8300030666, +91-9486494865, info@lingabhairavi.org
ईशा नवरात्रि उत्सव 2014 का विडियो

नवरात्रि ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-गुण यानी स्त्रैण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। वे अस्तित्व के तीन मूल गुणों - तमस, रजस और सत्व के भी प्रतीक हैं। तमस का अर्थ है जड़ता। रजस का मतलब है सक्रियता और जोश। सत्व एक तरह से सीमाओं को तोडक़र विलीन होना है, पिघलकर समा जाना है। तीन खगोलीय पिंडों से हमारे शरीर की रचना का बहुत गहरा संबंध है - पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा। इन तीन गुणों को इन तीन पिंडों से भी जोड़ कर देखा जाता है। पृथ्वी माता को तमस माना गया है, सूर्य रजस है और चंद्रमा सत्व।
नवरात्रि के पहले तीन दिन तमस से जुड़े होते हैं। इसके बाद के दिन राजस से, और नवरात्रि के अंतिम दिन सत्व से जुड़े होते हैं।
नवरात्रि - दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा
जो लोग शक्ति, अमरता या क्षमता की इच्छा रखते हैं, वे स्त्रैण के उन रूपों की आराधना करते हैं, जिन्हें तमस कहा जाता है, जैसे काली या धरती मां। जो लोग धन-दौलत, जोश और उत्साह, जीवन और भौतिक दुनिया की तमाम दूसरी सौगातों की इच्छा करते हैं, वे स्वाभाविक रूप से स्त्रैण के उस रूप की ओर आकर्षित होते हैं, जिसे लक्ष्मी या सूर्य के रूप में जाना जाता है। जो लोग ज्ञान, बोध चाहते हैं और नश्वर शरीर की सीमाओं के पार जाना चाहते हैं, वे स्त्रैण के सत्व रूप की आराधना करते हैं। सरस्वती या चंद्रमा उसका प्रतीक है।
तमस पृथ्वी की प्रकृति है जो सबको जन्म देने वाली है। हम जो समय गर्भ में बिताते हैं, वह समय तामसी प्रकृति का होता है। उस समय हम लगभग निष्क्रिय स्थिति में होते हुए भी विकसित हो रहे होते हैं। इसलिए तमस धरती और आपके जन्म की प्रकृति है। आप धरती पर बैठे हैं। आपको उसके साथ एकाकार होना सीखना चाहिए। वैसे भी आप उसका एक अंश हैं। जब वह चाहती है, एक शरीर के रूप में आपको अपने गर्भ से बाहर निकाल कर आपको जीवन दे देती है और जब वह चाहती है, उस शरीर को वापस अपने भीतर समा लेती है।
इन तीनों आयामों में आप खुद को जिस तरह से लगाएंगे, वह आपके जीवन को एक दिशा देगा। अगर आप खुद को तमस की ओर लगाते हैं, तो आप एक तरीके से शक्तिशाली होंगे। अगर आप रजस पर ध्यान देते हैं, तो आप दूसरी तरह से शक्तिशाली होंगे। लेकिन अगर आप सत्व की ओर जाते हैं, तो आप बिल्कुल अलग रूप में शक्तिशाली होंगे। लेकिन यदि आप इन सब के परे चले जाते हैं, तो बात शक्ति की नहीं रह जाएगी, फिर आप मोक्ष की ओर बढ़ेंगे।
जो पूर्ण जड़ता है, वह एक सक्रिय रजस बन सकता है। रजस पुन: जड़ता बन जाता है। यह परे भी जा सकता है और वापस उसी तमस की ओर भी जा सकता है। दुर्गा से लक्ष्मी, लक्ष्मी से दुर्गा, सरस्वती कभी नहीं हो पाई। इसका मतलब है कि आप जीवन और मृत्यु के चक्र में फंसे हैं। उनसे परे जाना अभी बाकी है।
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नवरात्री - दुर्गा और लक्ष्मी से जुड़े आयाम एक चक्र की तरह हैं
तो ये दोनों घटित होते रहते हैं। जो चीज जड़ता की अवस्था में है, वह रजस व सक्रियता की स्थिति में आएगी और फिर से वापस जाकर एक खास समय के लिए जड़ता की स्थिति में पहुंच सकती है। उसके बाद फिर सक्रिय हो सकती है। यह एक व्यक्ति के रूप में आपके साथ हो रहा है, यही पृथ्वी के साथ हो रहा है, यही तारामंडल के साथ हो रहा है, यही समूचे ब्रह्मांड के साथ हो रहा है। ये सब जड़ता की अवस्था से सक्रिय होते हैं, और फिर जड़ता की अवस्था में चले जाते हैं। मगर महत्वपूर्ण चीज यह है कि इस इंसान में इस चक्र को तोडक़र उसके परे जाने की काबिलियत है। लिंग भैरवी (ईशा योग केंद्र में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित देवी का एक रूप) के रूप में देवी के इन तीन आयामों को स्थापित किया गया है। आपको अपने अस्तित्व और पोषण के लिए इन तीन आयामों को ग्रहण करने में समर्थ होना चाहिए, क्योंकि आपको इन तीनों की जरूरत है। पहले दो की जरूरत आपके जीवन और खुशहाली के लिए है। तीसरा परे जाने की चाहत है।
दशहरा - तमस, राजस और सत्व तीनों से परे
नवरात्रि के बाद दसवां और आखिरी दिन विजयदशमी या दशहरा होता है। इसका अर्थ है कि आपने इन तीनों गुणों पर विजय पा ली है। आपने इनमें से किसी से हार नहीं मानी, आपने तीनों के आर-पार देखा है। आप हर एक में शामिल हुए मगर आपने किसी में भी खुद को लगाया नहीं। आपने उन्हें जीत लिया। यही विजयदशमी है यानि विजय का दिन। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि हमारे जीवन में जो चीजें मायने रखती हैं, उनके लिए श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव रखना सफलता और जीत की ओर ले जाता है।
हम जिन चीजों के संपर्क में हैं, जो चीजें हमारे जीवन को बनाने में योगदान देती हैं, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण उपकरण हमारा अपना शरीर और मन हैं, जिनका इस्तेमाल हम अपने जीवन को कामयाब बनाने में करते हैं। जिस पृथ्वी पर आप चलते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जिस पानी को पीते हैं, जिस भोजन को खाते हैं, जिन लोगों के संपर्क में आते हैं और अपने शरीर व मन समेत हर चीज जिसका आप इस्तेमाल करते हैं, उन सब के लिए आदर भाव रखना, हमें जीवन की एक अलग संभावना की ओर ले जाता है। इन सभी पहलुओं के प्रति आदर और समर्पण रखना हमारी हर कोशिश में सफलता को सुनिश्चित करने का तरीका है।
इस धरती पर रहने वाले हर इंसान के लिए विजयदशमी या दशहरा का उत्सव बहुत सांस्कृतिक महत्व रखता है, चाहे उसकी जाति, वर्ग या धर्म कोई भी हो। इसलिए इस उत्सव को खूब उल्लास और प्रेम से मनाना चाहिए।
नवरात्री और देवी पूजा का इतिहास
स्त्री शक्ति की पूजा इस धरती पर पूजा का सबसे प्राचीन रूप है। सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरे यूरोप और अरब तथा अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों में स्त्री शक्ति की हमेशा पूजा की जाती थी। वहां देवियां होती थीं। धर्म न्यायालयों और धर्मयुद्धों का मुख्य मकसद मूर्ति पूजा की संस्कृति को मिटाना था। मूर्तिपूजा का मतलब देवी पूजा ही था। और जो लोग देवी पूजा करते थे, उन्हें कुछ हद तक तंत्र-मंत्र विद्या में महारत हासिल थी। चूंकि वे तंत्र-मंत्र जानते थे, इसलिए स्वाभाविक था कि आम लोग उनके तरीके समझ नहीं पाते थे। उन संस्कृतियों में हमेशा से यह समझ थी कि अस्तित्व में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे आप नहीं समझ सकते और इसमें कोई बुराई नहीं है। आप उसे समझे बिना भी उसके लाभ उठा सकते हैं, जो हर किसी चीज के लिए हमेशा से सच रहा है। मुझे नहीं पता कि आपमें से कितने लोगों ने अपनी कार का बोनट या अपनी मोटरसाइकिल का इंजिन खोलकर देखा है कि वह कैसे काम करता है। आप उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते, मगर फि र भी आपको उसका फायदा मिलता है, है न?
इसी तरह तंत्र विज्ञान के पास लोगों को देने के लिए बहुत कुछ था, जिन्हें तार्किक दिमाग समझ नहीं सकते थे और आम तौर पर समाज में इसे स्वीकार भी किया जाता था। बहुत से ऐसे क्षेत्र होते हैं, जिन्हें आप नहीं समझते मगर उसका फायदा उठा सकते हैं। आप अपने डॉक्टर के पास जाते हैं, आप नहीं समझते कि यह छोटी सी सफेद गोली किस तरह आपको स्वस्थ कर सकती है मगर वह उसे निगलने के लिए कहता है। वह जहर भी हो सकती है मगर आप उसे निगल जाते हैं और कभी-कभी वह काम भी करती है, हर समय नहीं। वह हर किसी के लिए काम नहीं करती। मगर वह बहुत से लोगों पर असर करती है। इसलिए जब वह गोली निगलने के लिए कहता है, तो आप उसे निगल लेते हैं। मगर जब एकेश्वरवादी धर्म अपना दायरा फैलाने लगे, तो उन्होंने इसे एक संगठित तरीके से उखाडऩा शुरू कर दिया। उन्होंने सभी देवी मंदिरों को तोड़ कर मिट्टी में मिला दिया।
दुनिया में हर कहीं पूजा का सबसे बुनियादी रूप देवी पूजा या कहें स्त्री शक्ति की पूजा ही रही है। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है जिसने अब भी उसे संभाल कर रखा है। हालांकि हम शिव की चर्चा ज्यादा करते हैं, मगर हर गांव में एक देवी मंदिर जरूर होता है। और यही एक संस्कृति है जहां आपको अपनी देवी बनाने की आजादी दी गई थी। इसलिए आप स्थानीय जरूरतों के मुताबिक अपनी जरूरतों के लिए अपनी देवी बना सकते थे। प्राण-प्रतिष्ठा का विज्ञान इतना व्यापक था, कि यह मान लिया जाता था कि हर गांव में कम से कम एक व्यक्ति ऐसा होगा जो ऐसी चीजें करना जानता हो और वह उस स्थान के लिए जरूरी ऊर्जा उत्पन्न करेगा। फि र लोग उसका अनुभव कर सकते हैं।
नवरात्रि साधना
नवरात्रि के दिनों में लिंग भैरवी देवी मंदिर में होने वाले आयोजनों का लाभ सभी उठा सकते हैं। जो लोग देवी की कृपा से जुड़ना चाहते हैं, उनके लिए सद्गुरु ने एक सरल और शक्तिशाली साधना बनाई है, जिसका अभ्यास सभी अपने घरों में कर सकते हैं। ये साधना हर दिन 13 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक करनी है, और इस साधना को आप निचे दिए गये निर्देशों के अनुसार करना है।
- देवी के लिए एक दिया जलाएं
- देवी के फोटो, गुडी, देवी यंत्र या फिर अविघ्ना यंत्र के सामने “जय भैरवी देवी” स्तुति को कम से कम तीन बार गाएं। बेहतर होगा कि आप 11 बार यह स्तुति गाएं। (एक पूरी स्तुति देवी के 33 नामों के उच्चारण को कहते हैं। ये 33 नाम नीचे दिए गएँ हैं।)
- देवी को कुछ अर्पित करें। आप कोई भी चीज़ अर्पित कर सकते हैं।
इस साधना को दिन या रात में किसी भी समय कर सकते हैं और यह साधना सभी कर सकते हैं। इस साधना में खाने-पीने से जुड़े कोई नियम नहीं हैं, लेकिन नवरात्रि त्यौहार के समय सात्विक खाना बेहतर होगा – जैसी कि पारंपरिक रूप से मान्यता भी है।
ये देवी के 33 पावन नाम हैं। अगर आप भक्ति भाव से इन्हें गाएं, तो आप देवी की कृपा के पात्र बन जाते हैं।
जय भैरवी देवी गुरुभ्यो नमः श्री
जय भैरवी देवी स्वयम्भो नमः श्री
जय भैरवी देवी स्वधारिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी महाकल्याणी नमः श्री
जय भैरवी देवी महाभद्राणि नमः श्री
जय भैरवी देवी महेश्वरी नमः श्री
जय भैरवी देवी नागेश्वरी नमः श्री
जय भैरवी देवी विश्वेश्वरी नमः श्री
जय भैरवी देवी सोमेश्वरी नमः श्री
जय भैरवी देवी दुख सम्हारी नमः श्री
जय भैरवी देवी हिरण्य गर्भिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी अमृत वर्षिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी भक्त-रक्षिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी सौभाग्य दायिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी सर्व जननी नमः श्री
जय भैरवी देवी गर्भ दायिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी शून्य वासिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी महा नंदिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी वामेश्वरी नमः श्री
जय भैरवी देवी कर्म पालिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी योनिश्वरी नमः श्री
जय भैरवी देवी लिंग रूपिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी श्याम सुंदरी नमः श्री
जय भैरवी देवी त्रिनेत्रिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी सर्व मंगली नमः श्री
जय भैरवी देवी महा योगिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी क्लेश नाशिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी उग्र रूपिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी दिव्य कामिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी काल रूपिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी त्रिशूल धारिणी नमः श्री
जय भैरवी देवी यक्ष कामिनी नमः श्री
जय भैरवी देवी मुक्ति दायिनी नमः श्री
आओम महादेवी लिंग भैरवी नमः श्री
आओम श्री शाम्भवी लिंग भैरवी नमः श्री
आओम महा शक्ति लिंग भैरवी नमः श्री नमः श्री नमः श्री देवी नमः श्री