दिवाली 2021 - प्रकाश का उत्सव, रोशनी का त्योहार
दीपावली या दिवाली रोशनी का त्योहार है जो सारे भारत में खास और अलग अलग ढंगों से, बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस ब्लॉग में दीपावली के महत्व, इतिहास और इसकी परंपराओं के बारे में जानिये।
2021 में दिवाली कब है?
2021 में दिवाली 4 नवंबर के दिन है, जिस दिन अमावस्या है। चूंकि दिवाली का त्योहार भारतीय पंचांग(चंद्र वर्ष) के हिसाब से मनाया जाता है तो हर साल इसकी तारीख अलग होती है। इस ब्लॉग में दिवाली के महत्व, इतिहास और इसकी परंपराओं के बारे में जानिये।
दिवाली क्या है और इसे रोशनी का त्योहार क्यों कहते हैं?
सदगुरु: दिवाली या दीपावली प्रकाश का उत्सव है। मनुष्य के जीवन में प्रकाश का इतना ज्यादा महत्व क्यों है, इसका एक बड़ा कारण ये है कि हमारे 'देखने के साधन' (नेत्र) एक खास तरह से बने हुए हैं। दूसरे प्राणियों के लिये प्रकाश का मतलब बस टिके रहना है,पर एक मनुष्य के लिये प्रकाश का मतलब सिर्फ देखना या नहीं देखना नहीं है। प्रकाश का आना हमारे जीवन में एक नई शुरुआत का, और उससे भी ज्यादा, स्पष्टता का इशारा होता है।दिवाली क्यों मनाते हैं?
सदगुरु: भारतीय संस्कृति में एक समय ऐसा भी था जब साल के हर दिन एक अलग उत्सव होता था - साल में 365 त्योहार। इसके पीछे का मूल विचार यही था कि हमारा सारा जीवन एक उत्सव होना चाहिये। दुर्भाग्य से, अब तो बस 30 या 40 त्योहार ही रह गये हैं। अगर आप हर चीज़ उत्सव मनाने के ढंग से करें, तो आप जीवन के बारे में बहुत ज्यादा गंभीर न होते हुए भी इसमें पूरी तरह से शामिल होना सीख लेते हैं। दिवाली मनाने के पीछे का विचार उत्सव मनाने के पहलू को आपके जीवन में लाना ही है - इसीलिये पटाखे जलाए जाते हैं कि आप थोड़ा बहुत आग से भी खेलें।भारत में दिवाली कैसे मनाते हैं?
अनेकता में एकता की एक सच्ची मिसाल के रूप में, पूरे भारत के अलग अलग भागों में दिवाली अलग अलग ढंग से मनाई जाती है - पर एक बात, जो सभी जगह एक जैसी दिखती है वो ये है कि हर शहर, हर कस्बा और हर गाँव, हर जगह, हज़ारों दियों के प्रकाश से जगमगा उठता है। दिये जलाना वास्तव में अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
दिवाली का इतिहास : प्रकाश का उत्सव
उत्तर भारत में दिवाली को श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटने के उत्सव के रूप में देखा जाता है। इस रात को, जब चंद्रमा नहीं होता, ये कहा जाता है कि लोगों ने उनके सन्मान में हज़ारों दिये जला कर उनका स्वागत किया था।
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दक्षिण भारत में दिवाली इसलिये मनाते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर राक्षस को मारा था।
भारत के पश्चिमी भागों में दिवाली को नये साल की शुरुआत के रूप में देखा जाता है - और मुख्य बात होती है लक्ष्मी का पूजन जो धन, संपत्ति और समृद्धि की देवी हैं।
देश के पूर्वी भागों में दिवाली का दिन देवी काली को समर्पित है और वहाँ वे इसे काली पूजा के उत्सव के रूप में मनाते हैं।
भारत में दिवाली की परम्परायें और प्रथायें
हमेशा ही दिवाली की शुरुआत घरों की अच्छी तरह सफाई करने और उन्हें सजाने से होती है। इस समय पर पारंपरिक रंगोलियाँ भी बनायी जाती हैं। लोग अच्छे कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे से मिलने उनके घर जाते हैं, एक दूसरे को उपहार देते हैं, धार्मिक क्रियायें और पूजा करते हैं और साथ मिल कर पटाखे चलाने का और दावत खाने का आनंद लेते हैं।
दिवाली का महत्व
सदगुरु: ऐतिहासिक रूप से दिवाली को नर्क चतुर्दशी कहते हैं क्योंकि नरकासुर, जो एक बहुत ही निर्दयी राजा था, इसी दिन श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया था। इस घटना को याद करके इसका उत्सव बड़े रूप में मनाया जाता है। ये ज़रूरी नहीं है कि बुराई राक्षस के रूप में ही आये। जिन राक्षसों को आपने देखा भी नहीं है उनसे ज्यादा नुकसान आपको निराशा, अवसाद और हताशा, पहुँचा सकती हैं। दिवाली हम सब को ये याद दिलाती है कि हमारे जीवन में जो कुछ भी नकारात्मक है, उसे हम मिटा दें, खत्म कर दें।ये उत्सव कई तरह से शुभ है, मंगलमय है। ऐसा कहते हैं कि जिन्हें पैसे की ज़रूरत है, उनके पास इस दिन लक्ष्मी आती है, जिनको अच्छा स्वास्थ्य चाहिये, उन्हें शक्ति मिलती है और जो ज्ञान चाहते हैं, उनके पास सरस्वती आती हैं। ये सब ऐसा कहने का एक द्वंद्वात्मक (या संवाद पर आधारित) तरीका है कि ये दिन हम सभी के लिये खुशहाली लाता है।
भारतीय संस्कृति में एक त्योहार को ऐसे साधन की तरह देखा जाता है, जो हमारे जीवन को प्रचुरता और उत्साह की अवस्था में ले आता है। आजकल लोग साल भर में बस 8 - 10 उत्सव ही मनाते हैं क्योंकि हमें रोज ही ऑफिस जाना होता है या और कुछ न कुछ काम करना होता है। दुर्भाग्य से अब त्योहार, उत्सव का मतलब बस काम से छुट्टी, देर से उठना, खूब खाना पीना और फिर सिनेमा या टेलिविजन देखना हो गया है। पहले ऐसा नहीं था, तब सारा शहर, सारा समाज मिल कर उत्सव को बड़े रूप में मनाता था।
अगर हम ऐसा वातावरण नहीं बनाते, इस तरह से उत्सव नहीं मनाते तो जब अगली पीढ़ी आयेगी तो उसे पता ही नहीं होगा कि त्योहार, उत्सव, पर्व क्या होता है? वो बस, दूसरे मनुष्यों से कोई मतलब रखे बिना, खायेंगे, सोयेंगे और घूमेंगे। मिल जुल कर, पारंपरिक रूप से उत्सव मनाने की रीत भारतीय उत्सवों में इसीलिये लायी गयीं थीं कि लोग कई सारे ढंग से सक्रिय और उत्साही रहें। इस सब के पीछे का विचार हमारे सारे जीवन को उत्सव बनाना ही था।
दिवाली नरकासुर कहानी
यहाँ सदगुरु नरकासुर की प्रसिद्ध कहानी बता रहे हैं कि इस दिन श्रीकृष्ण ने राक्षस नर्क को मारा था और समझा रहे हैं कि कैसे ये आज भी सार्थक है।
दिवाली का एक खास गीत
साउंड्स ऑफ ईशा के इस गीत के साथ अपनी दिवाली को और भी चमकदार कीजिये। इसे दिवाली के उत्सव के अवसर पर ही जारी किया गया है। बीते कल और आने वाले कल के बीच का ये गीत बताता है, कि कैसे जीवन के बारे में सिर्फ सोचने की बजाय हम जीवन जी रहे होंगे।
"कल कल.." गीत सुनने के लिये यहाँ क्लिक करें....
दिवाली की खास मिठाइयाँ
यहाँ कुछ स्वादिष्ट मिठाईयों के बारे में बताया गया है, जो असपकी दिवाली को पारंपरिक स्वाद देगी....
- दिवाली की खास - संजीवनी मूंगफली मक्खन बर्फी
- दिवाली की मिठाई - सेब - अंगूर हलवा
- रसायन और इनजिनजीरा लेजियम मिठाई
- ड्राईफ्रूट बर्फी
इस 13 मिनिट के वीडियो में, सदगुरु विस्तार से दिवाली का महत्व समझा रहे हैं।