आश्रम में स्थित देवी को यंत्र के माध्यम से लोग अपने घर भी ले जाते हैं। देवी को घर लाने पर हुए अपने अनुभवों को लोग अक्सर हमसे बांटते रहते हैं जिनमें से कुछ हम यहां आपके साथ साझा कर रहे हैं:
घर लाने पर खुशियों का विस्तार होता जा रहा है
देवी को घर लाने का विचार सबसे पहले मेरे मन में तब आया, जब मैंने भाव स्पंदन कार्यक्रम किया। सद्गुरु हमेशा कहते हैं कि लोगों को ऐसी जगहों पर रहना चाहिए, जो प्रतिष्ठित हों। भाव स्पंदन के दौरान जब मैं स्पंदा हॉल में रही तो मुझे इस बात के महत्व अहसास हुआ।
उनकी उपस्थिति को हर पल महसूस किया जा सकता है। मुझे ऐसा लगता है, जैसे मैं अपनी मां की गोद में हूं और वह चौबीसों घंटों मेरे साथ हैं।
आश्रम छोडऩे से पहले मैं देवी के पास गई और उनसे कहा कि आपको हमारे घर आकर हमारे घर पर ही रहना है। बाद में इसके बारे में मैंने अपने पति को बताया और देवी की कृपा से उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया। देवी के आने के बाद से हमारे घर का पूरा वातावरण ही बदल गया है। उनकी उपस्थिति को हर पल महसूस किया जा सकता है। मुझे ऐसा लगता है, जैसे मैं अपनी मां की गोद में हूं और वह चौबीसों घंटों मेरे साथ हैं। मेरे पड़ोसी और दोस्त, जो अक्सर मेरे घर आते हैं, वे भी उनकी कृपा को महसूस करते हैं और हर महीने
पूर्णिमा पूजा का इंतजार करते हैं। पूर्णिमा पूजा के दिन घर में एक त्योहार सा माहौल होता है। हर किसी के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है, देवी को सजाया जाता है, जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद है, लोगों को आमंत्रित किया जाता है और पूजा की जाती है। कुल मिलाकर, मैं उस दिन के हर पल का भरपूर आनंद लेती हूं।
सबसे बड़ा बदलाव जो हमारी जिंदगी में हुआ, वह मेरे 12 साल के बेटे को लेकर है। पिछले दो-तीन सालों से वह अपनी कक्षा में औसत से भी कम दर्जे का प्रदर्शन कर रहा था। पैरेंट्स-टीचर मीटिंग (पीटीएम) में उसकी खूब शिकायतें मिलतीं थीं। मैं घर आकर खूब रोती थी कि आखिर मुझसे कहां गलती हो रही है। लेकिन इस बार मार्च में जब मैं पीटीएम में गई, तो सब कुछ उल्टा था। उसके टीचर्स ने कहा कि अब आपके बच्चे में काफी बदलाव आ गए हैं। पहले की तुलना में वह पढ़ाई के मामले में अब काफ़ी बेहतर कर रहा है। मैं मन ही मन देवी को इस बात के लिए धन्यवाद दे रही थी।
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इस तरह की और भी कई अच्छी बातें हैं, जो देवी के आने के बाद से हमारे साथ हुई हैं। इस सूची में विस्तार होता ही जा रहा है, होता ही जा रहा है, होता ही जा रहा है. . .
- श्रीनीता, हैदराबाद
देवी खुद मुझे सिखा रही हैं
देवी मंदिर की ओर जाने की मेरी कभी इच्छा ही नहीं हुई, क्योंकि आश्रम जाने पर हर बार हमारा फोकस ध्यानलिंग ही होता था। आश्रम मैं चार बार जा चुका था, लेकिन देवी मंदिर सिर्फ एक बार गया। यह मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।
उस दिन मुझे अपना कुछ घंटे का समय बिताना था, क्योंकि मेरी गाड़ी आने में कुछ समय था। मैं ऐसे ही देवी मंदिर चला गया और भीतर जाकर बैठ गया।
शून्य-ध्यान कर लेने के बाद भी मुझे यह समझ नहीं थी कि शून्यवासिनी असल में हैं कौन। तो शून्य-ध्यान करने के एक महीने के बाद देवी ने किसी तरह से मुझे अपने मंदिर की ओर खींच लिया। उस दिन मुझे अपना कुछ घंटे का समय बिताना था, क्योंकि मेरी गाड़ी आने में कुछ समय था। मैं ऐसे ही देवी मंदिर चला गया और भीतर जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बार मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे, हथेलियों में पसीना आने लगा और दिल भारी हो गया। थोड़ा सा समय काटने के चक्कर में मेरे साथ ऐसा हो जाएगा, मैंने सोचा न था, लेकिन ऐसा हुआ।
मैंने अपने तार्किक मन की आवाज पर इन भावों को इस बात के साथ जोड़ दिया कि मैं अपनी पत्नी को यहां छोडक़र जा रहा हूं, इसलिए मेरा मन भारी हो रहा है। दरअसल, एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के सिलसिले में उसे पांच महीने तक आश्रम में रुकना था। मैं मंदिर के बाहर आ गया। आधे घंटे के भीतर ही मैं फिर उसी स्थिति में मंदिर के अंदर था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। ऐसा लग रहा था कि देवी मुझसे बात कर रही हैं और कुछ पूछ रही हैं।
थोड़ी देर बार मैंने महसूस किया कि मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे, हथेलियों में पसीना आने लगा और दिल भारी हो गया।
मैं फिर से मंदिर से बाहर आ गया। मुझे नहीं पता, कैसे मैं देवी ऑफि स में जा पहुंचा और वहां देवी यंत्र के बारे में पूछताछ की। लिंग भैरवी यंत्र खरीदने के लिए मेरे पास पैसे कम थे, इसलिए मैं फिर से देवी मंदिर में आ गया। इस बार मेरी आंखों में आंसू नहीं थे, मेरी हथेलियों पर पसीना नहीं था और मेरे मन में विचारों की उथल-पुथल नहीं थी। मुझे पता था कि मुझे क्या करना है। देवी ने घर आने का फैसला कर लिया था, लेकिन उस दिन मैं पैसे की व्यवस्था नहीं कर पाया। आश्रम छोडऩे के 48 घंटों के भीतर उनकी कृपा से मुझे एक नया कांट्रेक्ट मिल गया, जिससे मुझे एक लाख रुपये का लाभ हुआ। मेरे अंदर यह सोच भी शक्तिशाली हो गई कि
अविघ्न यंत्र को घर लाना है। एक सप्ताह के भीतर पूरी रकम का इंतजाम हो गया। अब वह हमारे जीवन की हर कमियों को पूरा कर रही हैं।
थोड़ा सा समय काटने के चक्कर में मेरे साथ ऐसा हो जाएगा, मैंने सोचा न था, लेकिन ऐसा हुआ।
घर आने के कुछ महीनों के भीतर हमें अब थोड़ा-बहुत पता चलने लगा है कि देवी क्या हैं और ‘कृपा’ से सद्गुरु का क्या मतलब है। वे बेहद प्रचंड और तीव्र हैं। घर में उनका स्थान तैयार हो गया। उनके स्थान का डिजाइन, फोटोग्राफ और उनका सिंहासन सब कुछ इतने अच्छे तरीके से और ठीक वैसे ही व्यवस्थित हो गया जैसा उन्होंने मुझे स्वप्न में दिखाया था। उनके मंदिर में इस्तेमाल हर आइटम काफी विशेष और महंगा है। मेरी उग्र, लेकिन कृपालु देवी मुझे एक महिला की देखभाल करने के तरीके सिखा रही हैं। हे देवी, मैं पूरे मन से आपके चरणों में अपना सिर झुकाता हूं।
- रूपेश बजाज
सम्पादक की टिप्पणी:
सद्गुरु के साथ अगला यंत्र समारोह 22 दिसम्बर के दिन ईशा योग केंद्र में आयोजित होगा। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएं