ईशा लहर – जुलाई 2015: जानें अपने कर्मों का मर्म
हम कैसे जानें कि किस तरह का कर्म करना हमारे लिए अच्छा होगा? और जो कर्म अपने जीवन में हम आज तक कर चुके हैं, क्या उनके प्रभाव से बचा जा सकता है? आइये इस बार के अंक में इसे गहराई से समझते हैं.
इस महीने के ईशा लहर अंक में हम कर्मों के बारे में गहनता से विचार कर रहे हैं। हम कैसे जानें कि किस तरह का कर्म करना हमारे लिए अच्छा होगा? और जो कर्म अपने जीवन में हम आज तक कर चुके हैं, क्या उनके प्रभाव से बचा जा सकता है? आइये इस बार के अंक में इसे गहराई से समझते हैं...
संपादकीय:
कई दशकों से विश्व के अधिकांश देश तानाशाहों और निरंकुश शासकों से आजाद हैं। आजकल प्रजातंत्र का वर्चस्व है। विश्व के सभी देशों ने अपने-अपने संविधान बनाए हैं, जिसमें मानवाधिकार को प्रमुख स्थान दिया गया है। शासकों से आजादी तो मिल गई पर इंसान आज भी एक असहाय गुलाम है- अपने कर्मों का।
सद्गुरु के शब्दों में,
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अपनी मधुकोष रूपी काया के
पिंजड़े में
पर तुम्हारी खुद की करनी
बन गई है खुद की फंसनी
नासमझी के घेरे से
निकलोगे नहीं जब तक
पिंजड़े से मुक्ति की
राह नहीं कोई तब तक
फंसने का एकमात्र कारण नासमझी ही है। इसी नासमझी को हम अलग-अलग नाम दे देते हैं, जैसे - माया, भ्रम, अज्ञानता...किसी इंसान की खुशहाली उसके रुपए-पैसे, पदप्रतिष्ठा, परिवार या हित-मित्रों द्वारा तय नहीं होती, यह तय होती है उसके कर्म के द्वारा। तो कैसे सुलझाएं कर्म की इस गुत्थी को, इसकी पकड़ को ढीला करने और मुक्त होने का क्या है मर्म? एक बहुत ही सुंदर कथा है। किसी कस्बे में एक भव्य मंदिर बनाया जा रहा था। वहां से थोड़ी दूरी पर बहुत सारे मजदूर मंदिर निर्माण के लिए पत्थर काट रहे थे। एक यात्री बगल के रास्ते से गुजर रहा था। बहुत सारे लोगों को पत्थर काटते देखकर यात्री के मन में कौतुहल पैदा हुआ और उसने एक आदमी के पास जाकर पूछा, आप पत्थर क्यों काट रहे हैं? उस आदमी ने जवाब दिया, ‘अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए।’ थोड़ा आगे जाकर वही प्रश्न उसने दूसरे व्यक्ति से पूछा। उस व्यक्ति का जवाब था, ‘यहां एक मंदिर बनाया जा रहा है उसी के लिए पत्थर काट रहा हूं।’ वही प्रश्न उसने तीसरे व्यक्ति के पास जाकर दुहराया। उस आदमी ने प्रफुल्लित मुद्रा में जवाब दिया, ‘मेरे गुरुदेव एक भव्य मंदिर बना रहे हैं, उस मंदिर में वह एक लिंग की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे, मैं उसी के लिए पत्थर काट रहा हूं।’ उसकी आखों में चमक थी, शब्दों में ओज भरा था। तीनों लोग पत्थर काट रहे थे, पर तीनों के उत्तर इतने अलग क्यों थे? क्योंकि तीनों के भाव व संकल्प अलग-अलग थे।
बंधनों में असहाय उलझे रहेंगे या फिर उन्मुक्त होकर खुले आकाश में विचरण करेंगे। खुले आकाश में विचरने के लिए इतना तो तय है कि अपने कर्मों के पिंजड़े से निकलने के लिए आपको खुद ही अपने हाथ-पांव चलाने होंगे, लेकिन पिंजड़े के बारे में और उससे निकलने के कौशल के बारे में आपको जानकारी जरूर किसी योग्य गुरु से मिल सकती है। कुछ ऐसी ही जानकारियों को - कर्मों की उलझनों को सुलझाने वाली जानकारियों को, आपके लिए सहेज कर लाने की कोशिश की है हमने इस बार। इस कामना के साथ, कि आप कर्मों की अपनी बेबसी और अकुलाहट से मुक्त हो कर उन्मुक्त आकाश में उड़ान भरने की कोशिश कर सकें, हम यह अंक आपको सौंपते हैं।
- डॉ सरस
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