सद्गुरु की कविता – योग
आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सद्गुरु हमसे अपनी कविता 'योग' साझा कर रहे हैं। जानते हैं कि योग उनके जीवन में क्या मायने रखता है...
योग
तुम्हारा यह पाषाण मुखड़ा
लोग सोचते हैं तुम हो एक तरूणी
जो है प्रेम से रिक्त
पर मेरे लिए तो हो तुम
मेरे प्रियतम के गीत
मेरे लिए तो हो तुम
मंद-मंद बहती बसंती-बयार,
मेरे लिए तो हो तुम
आम का एक पेड़- जो लद गया हो आमों से
जिसके हर पत्ते के पीछे छिपा हो एक मीठा फ ल
तुम्हारे जनक ने किया था तुम्हारा वर्णन
कितने नीरस व अल्प शब्दों में....
कितनी मादक, मनोहारी, आकर्षक बाला हो तुम
लोग जान नहीं पाए कभी
मामूली व रूखे वस्त्रों में लिपटी
तुम तो हो एक असाधारण संभावना
किसने सजाया होगा स्वप्न तुम्हारा - तुम्हें पाने का
ह्रदय में दृढ़ संकल्प ले
मैं तुम्हारी खोज में,
करता रहा पीछा तुम्हारा
तीन जन्मों से
कि कर सकूं तुमसे प्रेम-निवेदन
अनकही व्यथा और ह्रदय में माधुर्य संभाले,
अनजानी राहों पर भागता रहा मैं पीछे तुम्हारे
इस यात्रा ने ही बना दिया मुझे संपूर्ण इतना
अहा! मेरे अंदर ही हैं दोनों अब
सृष्टि और स्रष्टा
दुनिया अब दिखती नहीं मुझे तेरे बिना।
Love & Grace

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