सद्‌गुरु: प्राण-प्रतिष्ठा विज्ञान में लोगों की रुचि जगाने के काम में पूरे छत्तीस सालों का समय लगा है। आपमें से कुछ लोगों के घरों में, प्राण प्रतिष्ठित लिंग भैरवी यंत्र है। जो लोग देवी को अपने घर ले गए, उनमें से अनेक का मानना है कि उनके जीवन में इससे अद्भुत और भव्य घटना पहले कभी नहीं घटी। लेकिन लिंग भैरवी अविघ्न यंत्र को बनने में तीन से चार माह का समय लगता है। यही वजह है कि हम केवल साल में दो बार ही उन्हें देते हैं। इसमें अपने जीवन का बहुत बड़ा निवेश करना पड़ता है।

इसके अलावा, भारत तथा दूसरे देशों से, सैंकड़ों रिक्वेस्ट आए हुए हैं कि मैं उनकी बड़े प्रोजेक्ट्स की प्राण-प्रतिष्ठा कर दूँ। ये सभी मंदिर नहीं हैं - इनमें से अधिकतर बड़े रियल एस्टेट प्रोजेक्ट हैं। दरअसल वे अपने लिए एनर्जी सेंटर(ऊर्जा केंद्र) चाहते हैं।

सही जीवन ऊर्जा और सही शरीर दोनों ही जरुरी होते हैं प्राण-प्रतिष्ठा के लिए

हाल ही में, मैं यूएस से भारत आया। यह एक दिन की यात्रा थी, जिसमें मुझे आंध्र प्रदेश में स्थापित होने जा रही नई अमरावती नगरी के मुहूर्त पर बोलना था। हाल के वर्षों में, यह भारत का पहला प्रोजेक्ट है, जिसमें एक पूरा नगर ही नए सिरे से बसाया जा रहा है। नहीं तो हमारे तकरीबन सारे शहरी ढांचे बेहद पुराने हैं। हमारे पास उत्खनन (खोद कर तैयार किए गए) स्थल हैं - मंदिर, बंदरगाह, पूरे नगर ढांचे - जो हजारों साल पुराने हैं।

अधिकतर लोग नहीं जानते - आज से आठ साल पहले, देवी की प्राण-प्रतिष्ठा के समय, कम से कम डेढ़ वर्ष तक मेरी कुछ भी चखने या सूंघने की शक्ति चली गई थी।

लेकिन अब आंध्र प्रदेश में यह नया नगर बनाया जा रहा है। हम राज्य सरकार के साथ मिल कर और भी कई प्रोजेक्ट्स पर काम करते रहे हैं और हमने राज्य के मुख्यमंत्री, सभी मंत्रियों, नौकरशाहों व राज्य के उच्च अधिकारियों के साथ इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम भी किया है। हमने आंध्र प्रदेश के तीन हजार से अधिक स्कूलों को भी गोद लिया है। अब आंध्र प्रदेश राज्य ने ‘हैप्पी सिटी समिट’ नाम से कांफ्रेंस आयोजित की है। वे न केवल एक सुंदर और तकनीक संपन्न, बल्कि ख़ुशी से भरपूर नगर बनाना चाहते हैं। और वे चाहते हैं कि नए शहर के बीच एक प्राण प्रतिष्ठित स्थल की स्थापना हो।

ऐसे आग्रहों की संख्या बढ़ रही है। अगर मैंने आने वाले दो वर्ष के भीतर ये सौ प्राण प्रतिष्ठा के प्रोजेक्ट किए, तो शायद तीन वर्ष से अधिक नहीं जी सकूँगा। इस काम के लिए इस तरह की एनर्जी की जरूरत होती है। आपमें से जो लोग पिछले सत्रह या अठारह वर्ष से मेरे साथ हैं, आपने देखा होगा कि ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा के बाद मेरे साथ क्या हुआ था। अधिकतर लोग नहीं जानते - आज से आठ साल पहले, देवी की प्राण-प्रतिष्ठा के समय, कम से कम डेढ़ वर्ष तक मेरी कुछ भी चखने या सूंघने की शक्ति चली गई थी। मेरी जीभ मानो मृत हो गई थी। मैं जो भी खाता, रुई जैसा लगता। जबकि मेरी स्वाद इंद्रियाँ सदा जीवंत और सक्रिय रही हैं - जब मैं कुछ खाना चाहता हूँ तो उन चीज़ों को बहुत ध्यान से चुनता हूँ।

धीरे-धीरे, मेरी सूंघने और चखने की शक्ति लौट आई। मुझे तंत्र को नए सिरे से चालू करने के लिए कई काम करने पड़े। हमने उस समय कई कारणों से बहुत सारे सपोर्ट सिस्टम विकसित किए थे। समय, आयु और हालात के चलते, उनमें से अनेक अब नहीं रहे। हम अपनी सहायता के लिए नए ऊर्जा ढाँचे तैयार कर रहे हैं। पर इतना तो तय है कि इस समय हम उन एक सौ प्राण प्रतिष्ठा रिक्वेस्ट्स को पूरा नहीं कर सकेंगे। और अगर हम उन्हें पूरा कर भी दें, तो जब तक हम उन्हें पूरा करेंगे, उनकी संख्या कई गुना बढ़ जाएगी। मेरे पास ऊर्जा तो है, लेकिन इस काम को करने के लायक शरीर नहीं है। यह शरीर जर्जर(कमज़ोर) है, यह नया बना हुआ ढांचा है। यह ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा के बाद लगभग नष्ट हो गया था।

आप भी अपना नाम दे सकते हैं

हमें अपना साथ देने वाले लोग चाहिए। पैंतीस वर्ष से कम आयु के लोग - अगर आप रुचि रखते हैं तो हम आपको इन कामों के लिए ट्रेनिंग देना चाहेंगे। परंतु इस तरह की ट्रेनिंग के लिए एक अलग तरह का जुड़ाव, समर्पण, उद्देश्य व अनुशासन की ज़रूरत होगी। जब आप अपनी बुनियादी जीवन ऊर्जा से खेलते हैं, तो आपको कड़ा अनुशासन रखना आना चाहिए। जरा से भटके नहीं कि सब कुछ हाथ से निकल जाएगा। यह न केवल आपके लिए बल्कि मेरे लिए भी बुरा होगा। हम आपके काम को बुरा नहीं होना देना चाहते - उसके लिए फिर किसी और को नियुक्त करना होगा।

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उस जगह के लिए तो यह और भी महत्व रखता है जिसमें बच्चे बड़े हो रहे हों - हर स्कूल में एक प्रतिष्ठित स्थल होना चाहिए।

अगर आपको लगता है कि अगर आपके भीतर ऐसी योग्यता है, तो आप अपना नाम दे दें। हम आपको देखेंगे, आपके अलग-अलग पहलुओं को देखेंगे और देखेंगे कि आपसे किस तरह का काम करवा सकते हैं। कुछ निश्चित(ख़ास) तीव्र कार्य के लिए, आपको पैंतीस वर्ष से कम आयु का होना चाहिए। परंतु ऐसे कई काम हैं जो अधिक आयु वाले व्यक्ति भी कर सकते हैं।

यह उन महत्वपूर्ण कामों में से है, जो इस समय संसार में किए जाने चाहिए - मनुष्य ऊर्जा संपन्न स्थानो में रहें। आपने एक सुंदर इमारत बना ली - इसका मतलब यह नहीं है कि वह रहने के लिए भी अच्छी है। कोई जगह किसी इंसान के विकास में कैसे सहायक हो सकती है, इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। उस जगह के लिए तो यह और भी महत्व रखता है जिसमें बच्चे बड़े हो रहे हों - हर स्कूल में एक प्रतिष्ठित स्थल होना चाहिए।

प्राण-प्रतिष्ठा किसी धर्म से नहीं जुड़ी है

इस दुनिया में अब भी इस हद तक अज्ञानता है कि किसी स्थल की प्राण-प्रतिष्ठा करने पर लोगों को लगता है कि आप उनके जीवन में किसी धर्म को घुसा रहे हैं। यह सोच धीरे-धीरे जाएगी। हम इसे काफी हद तक हल्का करने में सफल रहे हैं। कार्पोरेट घरानों में पहले कभी ऐसी चर्चा नहीं होती थी, अब वे भी अपने ऑफ़िस और अन्य जगहों में ऊर्जा ढाँचे स्थापित करवाना चाहते हैं।

पश्चिमी संस्कृतियों में, आपको सिखाया गया है कि आपको कभी किसी दूसरे के हाथों का साधन नहीं बनना चाहिए। इस रवैए के साथ आप प्राण प्रतिष्ठा का काम नहीं कर सकते।

प्राण-प्रतिष्ठा के मामले में जितना काम किया जाना चाहिए, हम उसका दो से तीन प्रतिशत भी नहीं कर पा रहे, क्योंकि हमारे पास ऐसा करने के लिए समर्पित शक्ति नहीं है। हर कोई दूसरी गतिविधियों में व्यस्त है। इस काम के लिए ऐसा ग्रूप चाहिए जो केवल इसी काम के लिए समर्पित हो, जो जीवन के एक बिलकुल अलग आयाम में काम कर सके। मूल रूप से, इसका मतलब होगा कि आपको कुछ बनाने के लिए साधन बनना होगा। हो सकता है कि आप कभी समझ न सकें कि आप क्या रच रहे हैं लेकिन आपको एक साधन बनना सीखना ही होगा।

पश्चिमी संस्कृतियों में, आपको सिखाया गया है कि आपको कभी किसी दूसरे के हाथों का साधन नहीं बनना चाहिए। इस रवैए के साथ आप प्राण प्रतिष्ठा का काम नहीं कर सकते। लोगों के पास अब भी इसे समझने की परिपक्वता नहीं है - वे हर चीज के बारे में मूर्खतापूर्ण नैतिक अनुमान लगाए जा रहे हैं।

वचनबद्धता(कमिट्मेंट), अनुशासन(डिसिप्लिन) व निष्ठा

प्राण प्रतिष्ठा के लिए अलग ही तरह के लोगों की जरूरत है। हम उन्हें तैयार कर सकते हैं, परंतु बुनियादी तौर पर भरोसे और कमिट्मेंट की ज़रूरत होगी। अगर आपको एक शक्तिशाली साधन बनाना है, तो आपको थोड़ा तोड़ना-मरोड़ना होगा। क्या आपको डॉक्टर, इंजीनियर या वैज्ञानिक बनने के लिए कष्ट नहीं सहने पड़ते? छह साल की आयु से आपको स्कूल भेज देते हैं, क्या ये यातना नहीं है? क्या छह साल के बच्चे को स्कूल में बिठा कर एबीसीडी या एक दो तीन चार पढ़ाना यातना नहीं है? लेकिन इसी कष्ट और यातना के बल पर लोग कुछ ऐसा करने में सक्षम हो पाते हैं जो वे उसके बिना नहीं कर सकते थे।

प्राचीन भारत में, हर स्थान की प्राण प्रतिष्ठा की जाती थी। अब ऐसा नहीं होता पर धीरे-धीरे जरुरी रुचि और विश्वास की झलक दिखने लगी है।

अगर कुछ ऐसा करना है जो इंसान की सामान्य सीमाओं से परे हो तो इसके लिए अपने काम में वचनबद्धता(कमिट्मेंट), अनुशासन(डिसिप्लिन) व निष्ठा की ज़रूरत होगी नहीं तो यह कारगर नहीं होगा।

प्राचीन भारत में, हर स्थान की प्राण प्रतिष्ठा की जाती थी। अब ऐसा नहीं होता पर धीरे-धीरे जरुरी रुचि और विश्वास की झलक दिखने लगी है। हमने दिल्ली वाले केंद्र में एक छोटा सा देवी गुड़ी खोला है परंतु पूरे शहर से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया आ रही है। पहले दिन तो, हम बहुत सारे मेहमानों की भीड़ ही नहीं संभाल पाए। उसके खुलने के लगातार तीन दिन तक, दो एकड़ की सारी जगह साधकों और आसपास के लोगों से भरी रही। प्राण प्रतिष्ठा में ऐसी ही ताकत पाई जाती है - यह लोगों को अपनी ओर खींचती है। अभी ऐसी और बहुत सी प्राण-प्रतिष्ठाएं होने की जरुरत है।

ऐसे लोग जो अपने जीवन से परे सोचें

प्राण प्रतिष्ठा का विज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं कि हम कोई किताब लिख दें और आप उसमें से पढ़ कर उसे सीख सकें और आपको उसे आसानी से करना आ जाए। ऐसा नहीं है। आपको इसे अनुभव करना होगा। इसके लिए निश्चित प्रकार का काम और एक खास तरह का जुड़ाव चाहिए।

लेकिन ऐसे लोग कहाँ से लाएँ जो अपने खुद के जीवन के परे की बात सोचेंगे?

आपके भौतिक शरीर, आपके मानसिक ढांचे, आपके भावात्मक ढांचे, आपको कार्मिक ढांचे - आपके जीवन के हर पक्ष को देखना होगा ताकि आपकी जीवन ऊर्जाएं प्रवाहित हो सके। अगर वे तरल होंगी तो आप उन्हें किसी भी रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान केवल दिखावा मात्र रह जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा का असली विज्ञान दम तोड़ देगा। केवल अनुष्ठान भर जीवित रहेंगे - बस आपके सामने कोई कुछ मंत्र बुदबुदा रहा होगा। वे इस बात की परवाह नहीं करेंगे कि वास्तव में कुछ हुआ या नहीं क्योंकि उनके लिए यह केवल पैसा कमाने का धंधा ही होगा।

अगर हम वास्तव में कुछ रचना चाहते हैं, तो हमें एक शक्तिशाली बल का निर्माण करना होगा। हम उसी के अनुसार एक छोटा दल बनाना चाह रहे हैं। यदि हम पचास से सौ लोगों के विशाल बल और समूह का निर्माण कर सकें, तो दुनिया में अद्भुत और उल्लेखनीय कार्य कर सकते हैं। लेकिन ऐसे लोग कहाँ से लाएँ जो अपने खुद के जीवन के परे की बात सोचेंगे?

संपादक की ओर से: यदि आप भी संसार की प्राण-प्रतिष्ठा में रुचि रखते हैं तो निम्न पते पर संपर्क करें: sadhana@ishafoundation.org