उन्होंने बताया कि संगीत के माध्यम से क्या-क्या किया जा सकता है। मुझे लगता है कि सद्गुरु ने जो कुछ भी कहा, बिल्कुल सच कहा।
पंडित जसराज: ईशा फाउंडेशन में मैं दूसरी बार आया हूं।
सद्गुरुजी के अंदर मुझे एक सच्चे आध्यात्मिक संत और ज्ञानवान व्यक्ति के दर्शन हुए हैं। उनके ज्ञान के बारे में मैं भला कह ही क्या सकता हूं। लेकिन हां, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके अंदर एक अच्छे लीडर के तमाम गुण हैं, जिनकी मैं व्याख्या नहीं कर सकता, बस उन्हें देख सकता हूं। एक बार आश्रम आकर देखिए, आप भी उनके अभूतपूर्व व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे। सभी लोग उन्हें
सद्गुरु कहते हैं। वाकई वह सच्चे गुरु ही हैं। कल हमारी मुलाकात हुई। घंटे भर तक चली इस मुलाकात में संगीत के बारे में भी काफी चर्चा हुई। इस मुलाकात के बाद मैं एक बात तो दावे से कह सकता हूं कि महाराज काफी ज्ञानवान व्यक्ति हैं और ऐसा मैं ही नहीं कहता, पूरी दुनिया इस बात को जानती और मानती है।
मैं वृंदावन जाता हूं। वहां मेरा एक शिष्य है वेणुगोपाल गोस्वामी। उसके भाई श्रीवतजी गोस्वामी बहुत बड़े विद्वान हैं। वह भी मानते हैं कि सद्गुरु अत्यधिक ज्ञानवान व्यक्ति हैं। मेरे कुछ शिष्य अमेरिका के टेनेसी स्थित उनके आश्रम में जाते हैं। कई मौकों पर सद्गुरु खुद वहां होते हैं और कई बार ऐसा भी होता है कि उनके शिष्य ही आने वाले लोगों को कोर्स कराते हैं। ये कोर्स कई तरह के हैं, लेकिन हर कोर्स को करने के बाद लोगों को काफी अच्छा महसूस होता है और एक तरह की शांति का अहसास होता है। आश्रम में ध्यानलिंग मंदिर भी अपने आप में एक शानदार जगह है। वहां आपको आध्यात्मिक शांति का अहसास होता है।
मैं यह नहीं कर सकता, हां अगर सद्गुरु का आशीर्वाद मिल जाए और उनकी इच्छा हो तो हो सकता है मैं सात दिन तक मौन धारण कर लूं।
मेरे लिए
संगीत ही अपने आप में एक तरह का ध्यान है। संगीत से ही मुझे शांति मिल जाती है। मुझे ऐसा लगता है कि मौन में रहने से या कोई साधना करने से मुझे वैसी शांति नहीं मिल सकती, जो मुझे संगीत की साधना करने से मिलती है।
सद्गुरु के साथ होने पर मुझे ऐसा लगता है, मानो
सद्गुरु मुझसे कह रहे हों, कि सात दिन के लिए मौन में चले जाओ। मैं यह नहीं कर सकता, हां अगर
सद्गुरु का आशीर्वाद मिल जाए और उनकी इच्छा हो तो हो सकता है मैं सात दिन तक मौन धारण कर लूं। मैं बेहद खुश हूं और खुद को धन्य समझता हूं कि मुझे इस आश्रम में आने का मौका मिला। मेरी इच्छा है कि भविष्य में भी मैं यहां आता रहूं। कल मेरा कार्यक्रम भैरवी देवी के सामने था। पिछली बार मैं ध्यानलिंग गया था और इस बार लिंग भैरवी। मैंने दोनों मौकों का ही शानदार तरीके से आनंद लिया। यह बात सही है कि मंदिर तो मंदिर होता है। वहां तो सुखद अहसास होता ही है, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि अगर मंदिर में कोई आध्यात्मिक नेता, पथ प्रदर्शक या
सद्गुरु हो तो वहां की ऊर्जा दोगुनी हो जाती है।
सद्गुरु के साथ बैठकर मैंने ऐसा ही महसूस किया। मैंने बार-बार उन्हें प्रणाम किया और मैं चाहता हूं कि मैं उनकी सेवा करता रहूं।
सद्गुरु से मिलकर एक बात जो मुझे लगती है वह यह है कि वह किसी भी विषय पर बोल सकते हैं।
उन्होंने बताया कि संगीत के माध्यम से क्या-क्या किया जा सकता है। मुझे लगता है कि सद्गुरु ने जो कुछ भी कहा, बिल्कुल सच कहा। अगर सद्गुरु संगीत के विषय में कुछ बता रहे हैं, और मुझे लगता है कि वह बिल्कुल सच कह रहे हैं, तो इसका मतलब है कि जब सद्गुरु दूसरे विषयों पर बोलते हैं तो उन विषयों के विशेषज्ञ यह अच्छी तरह समझ सकते हैं कि वह जो भी कह रहे हैं, वह बिल्कुल सच है। इसीलिए मैं कहता हूं कि अगर कभी सद्गुरु को सुनने का मौका आपको मिले, तो जरूर सुनिए। इस मौके को चूकिए मत। जय हो।