Sadhguruआपको भोजन वैसा ही करना चाहिए जैसा आपका शरीर पसंद करे; वैसा नहीं जैसा आपके मन या ज़ुबान को पसंद हो। खाना ऐसा हो जिसको खाने पर आपके शरीर में शक्ति और स्फूर्ति का संचार हो। अगर किसी चीज को खा कर आप आलस महसूस करते हैं तो इसका मतलब यह है कि वह आपके शरीर को पसंद नहीं है। आम तौर पर आप तरह-तरह के व्यंजन स्वाद के सुख के लिए खाते हैं। स्वाद का पता लगानेवाली स्वादग्रंथियां जीभ के एक छोटे-से भाग में ही होती हैं। आप इन थोड़ी-सी स्वादग्रंथियों को संतुष्ट करने के लिए अपने पूरे शरीर को कष्ट दे रहे हैं। यह कोई बुद्धिमानी का काम तो नहीं है।

अगर आप अपने शरीर को खुश नहीं रखेंगे तो आपका जीवन जीते जी नर्क के समान हो जाएगा। इसलिए वैसा ही भोजन कीजिए जो आपको प्राण-ऊर्जा दे। यदि आपने सही प्रकार की जागरुकता अपने अंदर पैदा कर ली तो आप सिर्फ छू कर ही यह समझ लेंगे कि खाने की किस चीज का आप पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है। हर प्राणी यह जानता है। आपने देखा होगा कि कुत्ता एक-दो बार सूंघ कर ही यह जान लेता है कि उसके सामने पड़ा खाना उसके खाने लाएक है या नहीं। हर जानवर यह जानता है कि उसे क्या खाना चाहिए क्या नहीं। सिर्फ मनुष्य ही इस मामले में नासमझ है। ऐसा इसलिए क्योंकि वह खाने को अपने शरीर से समझने की बजाय अपने दिमाग से समझने की कोशिश करता है। जब आपका शरीर जागरूकता की एक विशेष अवस्था में पहुंच जायेगा तब आप बड़ी आसानी से यह समझ जायेंगे कि कौन-सी चीज खायी जाये और कौन-सी नहीं।

भोजन के प्रकार

योगविज्ञान में  भोजन का उसके पोषक गुणों के आधार पर विभाजन नहीं किया जाता बल्कि उसके प्राण-शक्ति के आधार पर किया जाता है। इन्हें विटामिन, प्रोटीन आदि वर्गों में न बांट कर, तीन वर्गों में बाँटा जाता है:  सकरात्मक प्राणिक आहार, नकरात्मक प्राणिक आहार और शून्य प्राणिक आहार। सकरात्मक प्राणिक आहार वह है जिसे खाने से हमारे शरीर की प्राण- ऊर्जा बढ‌ जाती है, जबकि नकरात्मक प्राणिक आहार लेने से हमारे प्राण-ऊर्जा का क्षय होता है। दरअसल नकरात्मक प्राणिक आहार शरीर के स्नायु-तंत्रिकाओं को उत्तेजित कर  प्राण-ऊर्जा को बाहर निकाल देते हैं। शून्य प्राणिक आहार से न तो ऊर्जा मिलती है और न ही कम होती है। हम इनको सिर्फ स्वाद के लिए खाते हैं।

नकरात्मक प्राणिक आहार

1.  लहसुन: सही ढंग से इस्तेमाल करने पर लहसुन निश्चित रूप से एक अत्यंत शक्तिशाली दवा है। लेकिन अगर आप इसे हर दिन खाने में डालें तो आपको बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। अगर आप लहसुन का तीस मि.ली. रस एक ही बार में पी लें तो पेट की सफाई के लिए आपको तुरंत अस्पताल भागना पड़ेगा।

2.  प्याज:  इसे खाना तो दूर, बस केवल यह देख लें कि आपका शरीर इसके लिए हां कह रहा है या ना। हमारा शरीर प्याज के लिए जरूर मना करता है; वह उसे पसंद नहीं करता– आपकी आंखें जलने लगती हैं और आंसू बहने लगते हैं।

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3.  हींग: हींग भी एक नकरात्मक प्राणिक आहार है लेकिन आम तौर पर खाने में इसको बहुत थोड़ा-सा इस्तेमाल किया जाता है।

4.  बैंगन: सब्जियों में सिर्फ बैंगन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें सचमुच थोड़ा जहर होता है। बैंगन में एक ऐसा एंजाइम होता है जिसमें मस्तिष्क के हाइपोथैलमस को नुकसान पहुंचाने की क्षमता होती है। खास तौर से बच्चों को बैंगन नहीं खिलाना चाहिए।

5.  मिर्ची:  आप एक प्रयोग कर के देखें: 30 दिन तक मिर्च न खाने के बाद एक दिन थोड़ी-सी मिर्च खा लें। आपको दस्त हो जाएगा। शरीर इस मिर्च को बाहर फेंक देना चाहता है; वह उसको जहर जैसा मानता है।

6.  कॉफी या चाय: ये तंत्रिकाओं को उत्तेजित करने वाले बेहद शक्तिशाली पदार्थ हैं। ऐसे उत्तेजक पदार्थों का लगातार लंबे समय तक सेवन आपकी शक्ति और स्फूर्ति नष्ट कर देता है। खासकर आपका बुढ़ापा बहुत दुखदायी हो जाएगा।

हने की जरूरत नहीं कि सभी नशीली दवाएं और तंत्रिका-उत्तेजक पदार्थ नकरात्मक प्राणिक आहार की श्रेणी मे आते हैं।

भावनात्मक अस्थिरता के पीछे भी आपके खाने का हाथ होता है। अगर आप ऐसा भोजन करें जिसमें नकरात्मक प्राणिक आहार न हों तो आपको भावनात्मक संतुलन बनाये रखने में बड़ी आसानी होगी।

इन 7-8 पदार्थों को छोड़ कर बाकी सभी आहार सकरात्मक या शून्य प्राणिक आहार होते हैं। इनको छोड़ कर आप बाकी सारे खाद्य-पदार्थ खा सकते हैं- हर प्रकार की सब्जियां, फल, मेवे, अंकुरित बीज आदि। लेकिन होता यह है कि मना की गयी 7-8 चीजें ही आपको अपनी तरफ खींचती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपको इन चीजों की आसानी से लत लग जाती है। आप तीन दिन तक लगातार कॉफी पी लें तो चौथे दिन आपको सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ती। कॉफी खुद-ब-खुद आपको अपनी तरफ खींचेगी और पीने को मजबूर करेगी। जिंदगी का यही दस्तूर है।

अच्छे काम करने के लिए आपको जागरूक हो कर कोशिश करनी होती है। लेकिन बुरे काम आप तक खुद पहुँच जाते हैं। फसल उगाने के लिए आपको कितनी मेहनत करनी पड़ती है, पर खर पतवार बिना किसी मेहनत के अपने-आप पनपने और फूलने-फलने लगते हैं, इसके लिए आपको कुछ नहीं करना पड़ता। लेकिन जीवन में सकारात्मक कार्य करने के लिए आपको जागरूक हो कर मेहनत करनी होती है।