इनसाइट, ईशा फाउंडेशन के ईशा एजुकेशन पहल का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो उद्योगपतियों को ऐसे व्यावहारिक तरीके सिखाता है, जो बाहरी हालातों के साथ-साथ अंदरूनी विकास के प्रबंधन की उनकी क्षमता को बढ़ाते हैं।

27 से 30 नवंबर तक चलने वाले 4 दिवसीय कार्यक्रम में भारत के कुछ बेहद मशहूर नाम, जैसे रतन टाटा, जी मल्लिकार्जुन राव और किरण बेदी, शिरकत करेंगे और अपने जीवन के अनुभवों को साझा करेंगे।

 

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पहले दिन की कुछ झलकें...

9 बजे सत्र का शुभारंभ करते हुए सद्‌गुरु ने नेता के तीन मूल गुणों – ईमानदारी, प्रेरणा और अंतर्दृष्टि के बारे में चर्चा की। ईमानदारी के बिना, आप कामयाबी के लिए माहौल तैयार नहीं कर सकते। अगर आप अपने आस-पास के लोगों को प्रेरित नहीं कर सकते और उन्हें जोश नहीं दिला सकते, तो यह काहिली या आलस को पैदा कर सकता है। खास करके अंतर्दृष्टि किसी ऐसी चीज को देख लेने की काबिलियत है, जिसे ज्यादातर लोग नहीं देख सकते।

उन्होंने भागीदारों को न सिर्फ आलोचना को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि विरोधी नजरियों को आमंत्रित करने के लिए भी कहा!
नेता होना किसी जहाज का कप्तान होने जैसा है। आपको कठिन परिश्रम करने की जरूरत नहीं है मगर आपको रास्ता तैयार करना होगा और मार्गदर्शन देना होगा, सद्‌गुरु ने श्री रवि वेंकटेसन के सत्र शुरू होने से पहले कहा।

प्रोफेसर राम चरण ने ‘टीम निर्माण’ सत्र शुरू करते हुए भागीदारों से कहा कि पूरे चार दिनों तक एक साथ 21 प्रतिभावान रिसोर्स नेताओं का साहचर्य मिलना बहुत मुश्किल है। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि कार्यक्रम में जिन बातों पर चर्चा हुई, उनका अभ्यास भी करें क्योंकि अभ्यास ही कामयाबी का आधार है। उन्होंने भागीदारों से कहा कि वे अलग-अलग विषयों पर छोटे-छोटे सामाजिक नेटवर्क बनाएं और जिज्ञासा को प्रोत्साहित करने के लिए उदाहरण प्रस्तुत किये। व्यक्तिगत विकास के लिए जिज्ञासा बहुत जरूरी है। उन्होंने सलाह दी कि जब आप ‍किसी से मिलें, तो उससे किसी भी नई चीज के बारे में पूछने से हिचकिचाएं नहीं। जो दुनिया के लिए नया है, वह नहीं, बल्कि वह पूछें जो आपके लिए नया है।

प्रोफेसर ने कई और अनुभवी टिप्प्णियों के साथ सत्र को जारी रखा। उन्होंने कहा कि तेज सोचने पर कोई ईनाम नहीं मिलता, ज्यादा जरूरी यह है कि हम अच्छी तरह सोच-विचार करें। उन्होंने भागीदारों को न सिर्फ आलोचना को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि विरोधी नजरियों को आमंत्रित करने के लिए भी कहा! नेतृत्व की एक जरूरी आदत के बारे में बताते हुए उन्होंने समूह से कहा कि तेज दिमाग होना और अपनी प्राथमिकताओं पर जोर देना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

इस सत्र के बाद एक भागीदार ने लंच से पहले सद्‌गुरु से आखिरी सवाल पूछा: ‘क्या आदतें हमें कठोर बनाती हैं?’ सद्‌गुरु ने जवाब दिया कि तरल या लचीला होना महत्वपूर्ण है ताकि हम जरूरत के मुताबिक किसी भी परिस्थिति में ढल सकें। मगर जब तक हम तरलता की ऐसी स्थिति तक नहीं पहुंचते, तब तक आदतें, अचेतनता की एक स्थिति में मौजूद लोगों को थोड़ी मजबूती देती हैं। उस तरह से यह जीवन में डटे रहने की एक अच्छी तरकीब है।

 

संपादक की टिप्पणी: इनसाइट ईशा में हर वर्ष आयोजित किया जाने वाला 4 दिवसीय कार्यक्रम है। इस वर्ष यह कार्यक्रम 27 से 30 नवंबर तक चलेगा और इसमें भारत के कुछ बेहद मशहूर नाम, जैसे रतन टाटा, जी मल्लिकार्जुन राव और किरण बेदी, शामिल होंगे...